डीएनए हिंदीः यूक्रेन पर रूस के हमले (Russia Ukraine War) के बाद वहां फंसे छात्रों की वापसी के लिए भारत सरकार ऑपरेशन गंगा चला रही है. यूक्रेन के कई शहरों में लगातार हो रहे हमलों से भारतीय परिवारों में चिंता का माहौल है. यूक्रेन के पड़ोसी देशों के रास्ते इन छात्रों को वापस लाया जा रहा है. युद्ध के इस माहौल में हर किसी के मन में सवाल है कि आखिर मेडिकल छात्र विदेश और खास तौर पर यूक्रेन में पढ़ाई के लिए क्यों जाते हैं. 

नीट परीक्षा में शामिल 5 फीसदी छात्रों का ही दाखिला 
आंकड़ों के मुताबिक 2021 में नीट (NEET) परीक्षा के लिए देशभर में कल 16 लाख 14 हजार 777 छात्रों ने रजिस्ट्रेशन कराया जबकि एमबीबीएस के लिए सिर्फ 83,075 सीटें ही मौजूद हैं. ऐसे में 15 लाख से अधिक छात्र ऐसे थे जो मेडिकल की पढ़ाई तो करना चाहते थे लेकिन नीट परीक्षा पास नहीं कर पाए.  

WHO के मानक से कम हैं डॉक्टर
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए हजार लोगों पर एक डॉक्टर का मानक तय किया है. वहीं भारत में यह आंकड़ा 1445 लोगों पर सिर्फ एक डॉक्टर का है. स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक भारत ने 2024 तक इस आंकड़े तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है. 

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मैनेजमेंट कोटा से पढ़ाई का खर्च 1 करोड़ रुपये तक 
देश में मैनेजमेंट कोटा से पढ़ाई काफी खर्चीली है. जानकारी के मुताबिक देश के अलग-अलग राज्यों में मैनेजमेंट कोटे से पढ़ाई के खर्च 12 से 25 लाख रुपये तक सालाना आता है. नीट में शामिल होने वाले परीक्षार्थियों को ही इसमें मौका दिया जाता है. अगर महाराष्ट्र की बात करें तो यहां एमबीबीएस से पढ़ाई का सालाना खर्च 25 लाख रुपये तक आता है. 

राज्य सीटें औसत सालाना फीस (रुपये में)
कर्नाटक  2026 14-17 लाख 
महाराष्ट्र 2200 14-25 लाख
तमिलनाडु और पुडुचेरी 2200 18-24 लाख 
अन्य राज्य 048 12-24 लाख 

यूक्रेन में पढ़ाई का खर्च 
भारत के मुकाबले यूक्रेन में पढ़ाई का खर्च काफी कम है. यूक्रेन की कीव स्थित बोगोमोलेट्स नेशनल मेडिकल  यूनिवर्सिटी (Bogomolets National Medical University) की बात करें तो यहां पहले साल पढ़ाई का खर्च 6000 अमेरिकी डॉलर आता है. वहीं करीब 1800 डॉलर हॉस्टल और इंश्योरेंस का सालाना खर्च आता है. यानि भारतीयों को करीब 5.85 लाख रुपये पहले साल देने होते हैं. वहीं दूसरे से छठवें साल तक का खर्च करीब 4.72 लाख रुपये सालाना आता है. ऐसे में करीब 30 लाख रुपये में वह यूक्रेन से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर लेते हैं.

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विदेश में मेडिकल की पढ़ाई के लिए क्यों जाते हैं छात्र?
केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी के मुताबिक जो छात्र विदेश से मेडिकल की पढ़ाई करते हैं उनमें से सिर्फ 10 फीसदी ही ऐसे छात्र होते हैं जो इंडियन मेडिकल काउंसिल की परीक्षा पास कर सकते हैं. भारतीय छात्रों के विदेश जाकर मेडिकल एजुकेशन लेने की दूसरी अहम वजह ये है कि वहां मेडिकल स्कूल में दाखिला लेने के लिए कोई एंट्रेस एग्जाम नहीं देना पड़ता फिर वहां पढ़ाई के लिए अंग्रेजी भाषा का ही इस्तेमाल होता है तो बाकी सब कुछ भी आसान ही हो जाता है उन्हें कोई अन्य विदेशी भाषा सीखने की भी जरूरत नहीं पड़ती है. जब ये छात्र विदेश से एमबीबीएस की डिग्री लेकर भारत लौटते हैं तो उन्होंने भारत में प्रैक्टिस करने का लाइसेंस लेने के लिए नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन्स फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम पास करना होता है. हर साल 4000 छात्र ये परीक्षा देते हैं, जिनमें से लगभग 700 ही पास हो पाते हैं. 

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Ukraine Russia War Medical students go abroad not only because of cheap studies
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Ukraine Russia War: सस्ती पढ़ाई नहीं इस वजह से भी विदेश जाते है मेडिकल स्टूडेंट 
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