डीएनए हिंदी: एक मां अपने बच्चों के लिए हर तकलीफ सहती है, लेकिन उन्हें कोई कष्ट नहीं सहने देती. बच्चों का अनाथ होना इस दुनिया की सबसे बड़ी तकलीफ कहा जा सकता है. ऐसे में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अनाथ बच्चों के लिए भी मां-बाप बन जाते हैं. भारत की मदर टेरेसा के नाम से मशहूर सिंधुताई सपकाल ऐसी ही शख्सियत थीं. आइए इस Mothers Day के मौके पर सिंधुताई के बारे में जानें कि कैसे उन्होंने 1400 बच्चों के गोद लिया और उनका पालन-पोषण किया...
सिंधुताई का जीवन परिचय
महाराष्ट्र के वर्धा जिले की रहने वाली सिंधुताई सपकाल का संबंध एक चरवाहा परिवार से था. उनका परिवार इतना गरीब था कि ठीक से खाने तक को नहीं मिलता था. वह खुद भी भैंस चराने जाती थीं. घर की आर्थिक स्थिति के चलते उन्हें कक्षा चार के बाद पढ़ाई भी छोड़नी पड़ गई.
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कम उम्र में हो गई शादी
सिर्फ़ नौ-दस साल की उम्र में उनकी शादी 35 साल के पुरुष से कर दी गई थी. बेहद कम उम्र में ही वह गर्भवती भी हो गईं. वह बताती हैं कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उनके ससुराल वालों ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया था. मायके वालों ने भी उन्हें रखने से इनकार कर दिया. सिंधुताई ने दर-दर की ठोकरें खाईं और अकेले ही अपनी बच्ची को जन्म दिया.
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पहले गर्भावस्था, फिर नवजात की भूख. इन परिस्थितियों ने सिंधुताई को इस कदर लाचार किया कि उन्हें स्टेशन पर भीख मांगकर पेट भरना पड़ा. कभी भीख नहीं मिली तो सिर्फ़ 10 दिन की बेटी को लेकर वह श्मशान भी गईं और लाशों के ऊपर फेंके गए आटे से रोटी बनाकर खाई. खुद 'अनाथ' जैसा महूसस कर रही इस मां के अंदर अनाथ बच्चों के प्रति प्रेम यहीं से जागा.
रेलवे स्टेशन पर मांगी भीख
मजबूरी और गरीबी में हालात कुछ ऐसे बन गए थे कि सिंधुताई ने अपनी ही बेटी को मंदिर के भरोसे छोड़ दिया था. बाद में उन्हें रेलवे स्टेशन पर एक अनाथ बच्चा मिला तो उनकी आंखेंखुल गईं. उन्होंने यहीं से अनाथ बच्चों का पेट भरना शुरू कर दिया. खुद के पास तो पैसे थे नहीं, इस वजह से सिंधुताई रेलवे स्टेशन पर ही भीख मांगने लगीं और अनाथ बच्चों के लिए खाने-पीने का इंतजाम करने लगीं.
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धीरे-धीरे सिंधुताई का यह परिवार बढ़ता गया. कोई भी अनाथ बच्चा उन्हें मिलता तो उसका पालन-पोषण करतीं. इस तरह उन्होंने लगभग 1400 बच्चों को गोद ले लिया था. इन बच्चों से सिंधुताई 1000 से ज्यादा बच्चों की दादी मां भी बनीं. बताया जाता है कि उनके इस परिवार में 207 दामाद और 36 बहुए हैं. सिंधुताई की मेहनत और परिश्रम के चलते इसमें से कई डॉक्टर, इंजीनियिर, वकील भी बन गए. इतना ही नहीं, इन बच्चों ने भी अपनी जिम्मेदारी समझी और कई ऐसे हैं जो अब खुद भी अनाथ बच्चों का पालन-पोषण करते हैं.
सैकड़ों पुरस्कारों से हुईं सम्मानित
सिंधुताई को अपने इस काम के लिए देश से लेकर विदेश तक पहचान मिली. उन्हें सैकड़ों पुरस्कार मिले जिसमें देश का प्रतिष्ठित पुरस्कार पद्मश्री भी शामिल है. इसके अलावा उन्हें महाराष्ट्र का 'अहिल्याबाई होल्कर पुरस्कार' भी मिला. पुरस्कार में मिलने वाली राशि का इस्तेमाल भी वह अनाथालय बनाने और बच्चों का ध्यान रखने में खर्च कर देती थीं.
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80 साल की उम्र में लौटे पति को माना बेटा
सिंधुताई को कम उम्र में ही छोड़ देने वाले उनके पति जब 80 साल के हो गए तो उनको सिंधुताई की याद आई. उम्र के आखिरी पड़ाव में वह सिंधुताई के पास रहने आए. हालांकि, सिंधुताई ने कहा कि अब वह सिर्फ़ एक मां हैं. इसी वजह से सिंधुताई ने अपने पति को अपने बेटे के रूप में स्वीकार किया.
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जनवरी 2022 में हो गया सिंधुताई का निधन
लगभग 73 साल की उम्र में सिंधुताई सपकाल का निधन 4 जनवरी 2022 को हुआ. निधन से पहले सिंधुताई सपकाल का एक ऑपरेशन हुआ था. ऑपरेशन के बाद वह पुणे के अस्पताल में भर्ती थीं. बताया गया कि अस्पताल में ही हार्ट अटैक के चलते उनका निधन हो गया. उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दुख व्यक्त किया.
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