डीएनए हिंदीः उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव (Assembly Election) का दौर एक शतरंज के खेल की तरह होता है जिसमें हर खेमा एक-दूसरे को हराने के लिए अवसरों और नई रणनीतियों की तलाश में रहता है. इस बार उत्तर प्रदेश के चुनाव का मुद्दा कर्नाटक में जन्मा. 5 राज्यों में चुनाव का बिगुल बजते ही कर्नाटक के उडुपी में हिजाब (Hijab) विवाद छिड़ गया. जाति और धर्म की राजनीति का हमेशा से गढ़ रहे उत्तर प्रदेश में हिजाब का मुद्दा गरम आलू चाट साबित हुआ जिसे सपा, बसपा, कांग्रेस, बीजेपी समेत हर दल ने चटकारे ले कर खाया. पढ़ें हिजाब मामले में आरती राय की विशेष रिपोर्ट
चुनाव के हर चरण के दौरान राजनीतिक बयानबाजी से परे इस मामले में लोगों के ड्राइंग रूम और सड़क किनारे चाय और पान की दुकानों तक में हिजाब के मुद्दे पर बहस चलती रही. हिजाब एक ऐसा विषय बना जिससे प्रदेश में मुस्लिम और गैर-मुस्लिमों में पहचान को ले कर चर्चा शुरू हुई और आखिरी चरण तक चलती रही.
वास्तव में, इस तरह की घटनाओं से बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों समुदायों में असुरक्षा पैदा होती है और ये असुरक्षा चुनावों के दौरान राजनीतिक ध्रुवीकरण (Polarisarion) के लिए चारे का काम करती हैं. हालांकि, अल्पसंख्यक समुदाय के लिए यह डर उनकी मानसिकता को ट्रिगर कर सकता है. उनके इसी डर को भुनाने के लिए और अल्पसंख्यक समुदाय के वोट को अपनी तरफ खींचने के लिए इस मुद्दे को कई पार्टियों ने सभी चरणों में उठाया.
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जानकारों की मानें तो हिजाब मुद्दा राज्य भर में चुनावी राजनीति को प्रभावित कर सकता था. पश्चिम में पहले चरण के चुनाव के साथ पूर्वांचल में आजमगढ़ और मऊ जैसे जिलों में जहां बड़ी मुस्लिम आबादी है उनके लिए हर राजनैतिक पार्टी ने इस मुद्दे का इस्तेमाल अपने अपने हिसाब से किया. यूपी में महीने भर चलने वाले चुनावों में, चुनाव के लिए जाने वाले निर्वाचन क्षेत्रों या क्षेत्रों के हिसाब से अभियान के मुद्दे बदले. ये सच है कि हर विवाद की शेल्फ लाइफ सीमित होती है पर ऐसे मुद्दे देश में लम्बे समय तक धार्मिक पहचान-आधारित चुनावी राजनीति को मजबूत करने में भूमिका निभा सकते हैं.
क्या यूपी चुनाव को प्रभावित कर पाया हिजाब का मुद्दा?
उत्तर प्रदेश की राजनीति के जब भी चुनाव के दौर आता है तो जाति और धर्म का मुद्दा सबसे अहम होता है. उत्तर प्रदेश में मतदान से ठीक पहले ही देश में हिजाब विवाद ने दस्तक दी. जानकारों की मानें तो कर्नाटक में उठे हिजाब के मुद्दे को उत्तर प्रदेश की राजनैतिक जमीन पर भुनाने का सभी पार्टियों ने अपने अपने तरीके से प्रयास किया.
कर्नाटक के उडुपी से उठा हिजाब का मुद्दा उत्तर प्रदेश के चुनावों के दौरान बवंडर की तरह फैला. इसे सबसे पहले AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने पहले और दूसरे चरण के मतदान से पहले उठाया था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तकरीबन 26.21 फीसदी मुस्लिम वोट को भुनाने के लिए सभी पार्टियों इसे अहमियत दी. कर्नाटक सहित कई राज्यों में हुए प्रदर्शन के साथ ये मुद्दा सबसे पहले अलीगढ़ पहुंचा. अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज प्रशासन ने हिजाब और भगवा स्कार्फ को बैन कर दिया. इसी के साथ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के बंद रहने के बाद भी छात्रों के प्रदर्शन किया. तमाम टीवी चैनलों ने भी इसे खूब तूल दिया था लेकिन पहले चरण में मतदान के दौरान इस मुद्दे का कोई खास असर देखने को नहीं मिला था.
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दूसरे चरण से पहले योगी आदित्यनाथ ने भी उठाया मुद्दा
दूसरे चरण के मतदान से एक दिन पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी ये कहकर ध्रुवीकरण करने की कोशिश की थी कि देश ‘शरीयत’ से नहीं बल्कि ‘संविधान’ से चलेगा. उन्होंने ‘गजवा-ए-हिंद’ का ज़िक्र तो किया था लेकिन हिजाब का ज़िक्र नहीं किया था. हालांकि उनका इशारा इसी तरफ़ था.
दूसरे चरण में प्रदेश में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले रामपुर के साथ ही मुरादाबाद, संभल, बिजनौर, अमरोहा, सहारनपुर, बरेली और शाहजहांपुर जैसे ज़िलों में मतदान था. जहां रामपुर में 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है वहीं बाकी जिलों में भी मुसलमानों की आबादी 30 से 47 फीसदी है. तमाम कोशिशों के बावजूद दूसरे चरण में भी हिजाब के मुद्दे का चुनाव पर खास असर होता नहीं दिखा. मतदान के दौरान मुस्लिम महिला और लड़कियां हिजाब का समर्थन जरूर करती दिखी थीं लेकिन इसकी कोई खास प्रतिक्रिया नहीं थी. तीसरे चरण के मतदान से पहले फिर गरमा रहा है मुद्दा अब तीसरे चरण के मतदान से ठीक पहले जिस तरह प्रदेश में ये मुद्दा गरमा रहा है. सड़कों पर हिजाब बनाम भगवा स्कार्फ या शॉल का मुकाबला होता रहा और चुनाव चलता रहा.
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जहां मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन हिजाब पहन लड़कियों को सड़कों पर उतारकर हिजाब के मुद्दे को गरमा रहे थे , वहीं इसके जवाब में हिंदू संगठन भी भगवा गमछा, दुपट्टा, शॉल या फिर स्कार्फ के साथ सड़कों पर उतार रहे थे. देश भर में इससे सामाजिक तनाव पैदा होने का ख़तरा बढ़ा. प्रदेश के कई ज़िलों से कर्नाटक की तर्ज पर स्कूलों में हिजाब बनाम भगवा का संघर्ष छिड़ने की खबरें भी आई पर नतीजे पर कोई बड़ा असर नहीं डाल पाई.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यूपी की कई चुनावी रैलियों में हिजाब का नाम लिए बग़ैर ये मुद्दा उठा चुके हैं. पहले सहारनपुर में और फिर कानपुर की रैली में उन्होंने कहा था कि तीन तलाक़ से आज़ादी मिलने के बाद मुस्लिम महिलाओं ने चुपचाप बीजेपी को वोट देना शुरू कर दिया है लेकिन धर्म के ठेकेदारों को ये बात हजम नहीं हुई तो वो अब मुस्लिम बेटियों को भड़का रहे हैं. ज़ाहिर है उनका इशारा हिजाब के समर्थन में देशभर में सड़कों पर उतर रहीं मुस्लिम लड़कियों का तरफ ही था. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हिजाब का मुद्दा उत्तर प्रदेश के चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की एक कोशिश था. जो समय के साथ और चुनाव के खत्म होते ही ठंडे बस्ते में चला गया.
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Hijab: चुनावी लहर के जाते ही शांत हो गया हिजाब का मुद्दा ,आखिर क्यों?