डीएनए हिंदी: आज यानी 11 अगस्त को एक ऐसे ही शहीद खुदीराम बोस (Khudiram Boss) का शहादत दिवस है, जिन्होंने साल 1908 में महज 18 साल की उम्र में अंग्रेज सत्ता को चुनौती देते हुए फांसी का फंदा चूम लिया था. आइए आपको खुदीराम बोस समेत उन 5 शहीदों के बारे में बताते हैं, जो खेलने-कूदने की उम्र में फांसी चढ़ गए.

1. खुदीराम ने फेंका था सेनानियों को कोड़े लगवाने वाले मजिस्ट्रेट पर बम

पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के केशपुर तालुके के हबीबपुर गांव में 3 दिसंबर, 1989 को जन्मे खुदीराम बोस बचपन से ही अंग्रेजों की नाक में दम रखते थे. साल 1906 में वह महज 16 साल की उम्र में वंदेमातरम लिखे पर्चे बांटते हुए मिदनापुर (Midnapur) में पकड़े गए, लेकिन घूंसा मारकर सिपाही की नाक तोड़ दी और फरार हो गए. दो महीने बाद पकड़े गए, लेकिन कम उम्र होने के कारण छोड़ दिए गए.

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खुदीराम कलकत्ता के प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट डगलस एच किंग्सफ़ोर्ड से बेहद नाराज रहते थे, जो स्वतंत्रता सेनानियों को कोड़े लगवाने के लिए कुख्यात था. खुदीराम ने 30 अप्रैल, 1908 को अपने एक अन्य साथी प्रफुल्ल चाकी के साथ मिलकर किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंक दिया, लेकिन उस दिन किंग्सफोर्ड क्लब में रुक गया था और बग्घी में बैठी दो अन्य यूरोपियन महिलाओं के चीथड़े उड़ गए. बाद में खुदीराम पकड़े गए. उन्हें फांसी की सजा मिली और महज 18 साल 8 महीने की उम्र में वे हाथ में गीता लेकर 11 अगस्त 1908 को फांसी के तख्ते पर चढ़ गए.

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2. महज 12 साल के बालक बिशन का सिर कटा, लेकिन अंग्रेज कमिश्नर की दाढ़ी नहीं छोड़ी

स्वतंत्रता संग्राम की राह में सभी को 1857 के गदर की याद है, लेकिन इसके अलावा भी देश में इलाकावार विद्रोह चलते रहे, जिन्होंने अंग्रेजों को नाकों चने चबवाए. ऐसा ही विद्रोह पंजाब में साल 1871-72 के दौरान हुआ था, जिसे कूका विद्रोह (Kooka Agitation) कहते हैं. इन कूका विद्रोहियों को पकड़कर अंग्रेजों ने लाइन लगवाकर तोप से उड़ा दिया था.

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इसी लाइन में 50वें नंबर पर खड़ा था 12 साल का बालक बिशन सिंह (Bishan Singh), जिसने तोप के सामने आते ही लुधियाना के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर कॉवेन की दाढ़ी पकड़ ली. ब्रिटिश सिपाहियों ने बिशन सिंह के हाथों पर डंडे, बंदूक की बट से जमकर पिटाई की, लेकिन उसने कॉवेन की दाढ़ी नहीं छोड़ी. आखिरकार तलवार से उसके दोनों हाथ काट दिए गए. इसके बाद तलवार से ही उसका गला काटकर उसे शहीद कर दिया, लेकिन नन्हीं सी उम्र में शहीद होने से पहले दिखाई बहादुरी के लिए बिशन सिंह अमर हो गया.

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3. 8वीं क्लास की शांति घोष ने मार दी थी कलेक्टर को गोली

पश्चिम बंगाल की शांति घोष (Shanti Ghosh) और उनकी सहेली सुनीति चौधरी (Suniti Choudhary) की कहानी आपको बहादुरी की नई पायदान दिखा सकती है. कलकत्ता (अब कोलकाता) में शांति घोष का जन्म 22 नवंबर 1916 को प्रोफेसर देवेन्द्र नाथ घोष के घर हुआ था. क्रांतिकारियों से प्रेरित शांति ने सुनीति के साथ 14 दिसंबर 1931 को त्रिपुरा के कलेक्टर सीजीवी स्टिवेन को उसके बंगले पर जाकर गोली मार दी थी. उस समय वे महज 15 साल की उम्र की थीं और कोमिल्ला के फैजुनिशां बालिका स्कूल में कक्षा-8 में पढ़ती थीं. कलेक्टर को गोली मारने के लिए उन्हें आजीवन काले पानी की सजा दी गई.

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4. ब्रिटिश अफसर को गोली मारकर फांसी चढ़ गए थे अनंत कान्हेरे

महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के खेड़ा तालुका के अंजनि गांव में 21 दिसंबर, 1891 को अनंत लक्ष्मण कान्हेरे (Anant Laxman Kanhere) का जन्म हुआ. छोटी उम्र में ही इंदौर (Indore) में पढ़ाई के दौरान अनंत क्रांतिकारियों से जुड़ गए थे. उस दौरान एक ब्रिटिश जासूस अफसर जैक्सन के कारण कई क्रांतिकारी पकड़े गए तो अनंत ने उसे गोली मारने की ठानी. उन्होंने 21 दिसंबर 1909 को जैक्सन की गोली मारकर हत्या कर दी, लेकिन पकड़े गए. अंग्रेजों ने 11 अप्रैल 1910 को महज 19 साल की उम्र में अनंत को फांसी पर लटका दिया. उनके जीवन पर बनी एक फिल्म भी 10 जनवरी 2014 को रिलीज हो चुकी है.

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5. स्वदेशी के समर्थक हेमू 19 साल की उम्र में चढ़े फांसी

महात्मा गांधी (Mahatama Gandhi) के स्वदेशी अपनाओ आंदोलन के पक्के समर्थक हेमू कालानी ने अंग्रेजों के सामान से भरी ट्रेन लूटकर उसे जलाने की योजना बनाई, लेकिन पर्याप्त हथियार नहीं होने से फेल हो गए. नतीजा 21 जनवरी, 1943 को महज 19 साल 10 महीने की उम्र में उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया.

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हेमू का जन्म सूक्कर सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) में पेसुमल कालानी और जेठा बाई के घर 23 मार्च 1923 को हुआ था. वे बचपन से ही विदेशी सामानों का बहिष्कार करने और गांधी जी के स्वदेशी आंदोलन को अपनाने का प्रचार गांव-गांव घूमकर करने लगे थे. भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने अंग्रेजों की नाक में खूब दम किया था. 

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Independence Day 2022 latest updates do you know these 5 youngest revolutionary in indian freedom fighting
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हाथ में गीता लेकर फांसी चढ़े थे खुदीराम बोस, जानिए 5 क्रांतिकारियों की गाथा
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Indepandence day 2022: हाथ में गीता लेकर फांसी चढ़े थे खुदीराम बोस, जानिए 20 साल से छोटे 5 क्रांतिकारियों की गाथा