डीएनए हिंदी: अयोध्या जन्मभूमि विवाद (Ayodhya Land Dispute) में राम मंदिर (Shri Ram temple) पर ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाले भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) और राज्यसभा सांसद (Rajya Sabha MP) जस्टिस रंजन गोगोई ( Justice Ranjan Gogoi) एक बार फिर चर्चा में हैं. इसकी वजह उनकी आत्मकथा है, जिसमें उन्होंने अयोध्या के फैसले, न्यायपालिका, यौन शोषण और सरकार के साथ संबंधों के बारे में खुलकर लिखा है. ज़ी न्यूज के 'एडिटर इन चीफ' सुधीर चौधरी ने जस्टिस गोगोई के साथ एक विशेष बातचीत की. पढ़ें साक्षात्कार के अंश-
सुधीर चौधरी: आप 18 साल तक 'My Lord' थे और अब लोग आपको मिस्टर गोगोई, सांसद गोगोई कहते हैं. माई लॉर्ड से मिस्टर गोगोई तक का यह सफर कैसा रहा?
जस्टिस गोगोई: यह पहली बार है जब किसी पत्रकार ने मुझसे यह सवाल पूछा है. सुधीर जी, मैं टीवी पर कम आता हूं लेकिन किताब लिखने के बाद दो-तीन टीवी इंटरव्यू दे चुका हूं. इसकी वजह यह है कि मैंने अपनी किताब जनता के बीच रख दी है. कई चीजें लोगों को बताई गईं अब लोगों के पास कई सवाल हो सकते हैं. इसलिए आपके जरिए प्रश्नों का उत्तर देना मेरा कर्तव्य है. कई इंटरव्यू अयोध्या या राफेल, यौन उत्पीड़न, राज्यसभा से शुरू होते हैं. आप पहले हैं, जिन्होंने कहा कि आपकी जिंदगी में आया बदलाव कैसा था. मैं इस प्रश्न के लिए बहुत आभारी हूं.
सुधीर चौधरी: धन्यवाद सर. हम आपको बेहतर तरीके से जानना चाहते हैं और जब आप 'My Lord' से इस जीवन में प्रवेश करते हैं तो वह भी एक बदलाव रहा होगा जिसे आपने भी महसूस किया होगा.
जस्टिस गोगोई: मेरी किताब में बैक साइड फ्लैप में लिखा है सुधीर जी. एसेंशियली 'फैमिली मैन' जो हमेशा लो प्रोफाइल रखता है और लाइमलाइट से दूर रहता है.
सुधीर चौधरी: और आज आप सुर्खियों में हैं.
जस्टिस गोगोई: सिर्फ माई लॉर्ड कहने से लाइमलाइट में कोई नहीं आता. मैंने 18-19 साल के माई लॉर्ड के कार्यकाल के दौरान एक बहुत ही साधारण पारिवारिक जीवन जिया है और अब माई लॉर्ड के हटने से मुझे कोई समस्या नहीं है. लोगों से मिलना, जनता में जाना, सभाओं में भाषण देना, मुझे कोई दिक्कत नहीं है. मुझे यह पसंद है क्योंकि मैं लोगों के बीच खुलकर चल सकता हूं, उनसे बात कर सकता हूं. यह जीवन का एक चरण है. जीवन का एक और चरण (Phase) है जो अलग है. यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना अच्छा है.
सुधीर चौधरी: 'माई लॉर्ड युग' के बीतने के बाद क्या आप आजाद महसूस करते हैं?
जस्टिस गोगोई: नहीं, यह उदार भावना की बात नहीं है. मैं हमेशा आजाद था. जब जज था तब भी मैं उदार था. अगर आप अभी भी स्वतंत्र हैं तो आप स्वतंत्र हैं. वैसे, मैंने कोई खास परेशानी और बदलाव महसूस नहीं किया है.
सुधीर चौधरी: आज आपकी किताब मेरे पास है. आपने किताब का नाम रखा है 'जस्टिस फॉर द जज.' एक जज जीवनभर जनता को इंसाफ देता है. आपने लोगों के साथ न्याय किया है. किताब के शीर्षक से ऐसा लगता है कि अब न्यायाधीश शायद न्याय मांग रहे हैं?
जस्टिस गोगोई: नहीं, नहीं. कोई न्याय नहीं मांगा गया है. किताब के जरिए हम लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. अपने न्यायाधीशों को अलग तरह से देखें. अपने जजों को जज न करें. अपने जज को पब्लिक सर्वेंट या राजनेता के रूप में न देखें. इस जज की स्थिति थोड़ी अलग है. जज की कुर्सी पर बैठने वालों में अनुशासन होता है. वे बोलते नहीं हैं. आप एक जज की जितनी भी आलोचना कर सकते हैं, उसके फैसलों की आलोचना करते हैं, आप उसके फैसले पर कितना भी कीचड़ उछालें, वह बोलता नहीं है. वह जवाब नहीं देता. एक राजनेता सार्वजनिक मंच पर जवाब देता है लेकिन जज चुप रहता है. इसका मतलब है कि वे न्यायिक अनुशासन का पालन कर रहे हैं, इसका फायदा न उठाएं. इसे कमजोरी न समझें कि आप जो चाहें कह सकते हैं क्योंकि अगर आप इसे ठीक से नहीं देखते हैं, तो आप न केवल जज को नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि आप संस्था और न्यायिक प्रणाली को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं. इस किताब में यही संदेश है.
सुधीर चौधरी: इसलिए मैं एक नया प्रश्न जोड़ रहा हूं क्योंकि आपने ऐसा कहा था. क्या आपने अपने कार्यकाल में कभी ऐसा महसूस किया है? आपके बारे में आपके फैसले भी अखबार में छपे हैं. कभी अच्छे तो कभी बुरे. ज्यादातर बुरा इसलिए क्योंकि मीडिया का स्वभाव पहले नकारात्मक बिंदुओं पर फोकस करना है. क्या आपको कभी घुटन महसूस हुई है कि आप कुछ भी नहीं कह पा रहे हैं?
जस्टिस गोगोई: नहीं, ऐसा नहीं हुआ है. किसी ऐसी चीज के बारे में सोचना गलत है जिसे करना आपके लिए सही नहीं है, या आप नहीं कर सकते. निर्णयों की आलोचना अच्छी है क्योंकि यह न्यायाधीश को सीखने का मौका देती है. यह जानना जरूरी है कि किस फैसले में क्या कमी है. जज इसी से सीखते हैं.
आज मीडिया में निजी हमले हो रहे हैं. कहा जा रहा है कि ऐसे जज ने ऐसा फैसला इस वजह से दिया है यह गलत है. दोनों में यही अंतर है. अगर आप निर्णय की आलोचना करते हैं, तो यह व्यवस्था के लिए अच्छा है. अगर आप न्यायाधीश की आलोचना करते हैं, तो यह व्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है.
सुधीर चौधरी: जस्टिस गोगोई, जज आमतौर पर रिटायरमेंट के बाद किताबें भी नहीं लिखते हैं.
जस्टिस गोगोई: सुधीर जी, आपने कहा था कि मैं मिस्टर गोगोई बन गया और आप मुझे जस्टिस गोगोई कह रहे हैं. देखिए ये 18 साल की आदत है. आपके लिए कितना मुश्किल है? हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं है. आप मुझे गोगोई कहते हैं, पहले नाम से बुलाते हैं या जस्टिस कहते हैं, इसकी परवाह नहीं है.
सुधीर चौधरी: मैं वास्तव में आजाद महसूस कर रहा हूं, रंजन जी. हम आपसे जानना चाहते हैं कि जज आमतौर पर बाद में किताबें भी नहीं लिखते हैं लेकिन आपने अपनी आत्मकथा लिखने का फैसला किया है. आपने यह फैसला क्यों किया कि आप अपनी आत्मकथा लिखेंगे और अपनी कहानी लोगों को बताएंगे?
जस्टिस गोगोई: सुधीर जी, मेरे कार्यकाल के दौरान मेरे निर्णयों समेत कई मुद्दों पर बहुत चर्चा हुई. ये चर्चा मेरे मुताबिक गलत सूचना, अर्धसत्य और झूठे तथ्यों पर आधारित थी. यह किताब उन लोगों के लिए है जो सच्चाई जानना चाहते हैं. जो लोग मेरा पक्ष सुने बिना पहले से ही सही तथ्यों को जानते हैं, यह पुस्तक उनके लिए नहीं है. यह किताब उन लोगों के लिए है जो सही तथ्य जानना चाहते हैं, यह किताब उन्हीं के लिए लिखी गई है.
सुधीर चौधरी: आप नहीं जानते कि आपने अपने जीवन में कितने निर्णय दिए होंगे, न जाने कितने लंबे निर्णय लिखे होंगे लेकिन निर्णय लिखने और किताब लिखने में क्या अंतर है. आपके लिए यह बदलाव कैसा रहा? निर्णयों के बाद इस पुस्तक को देखने का आपका अनुभव कैसा रहा और क्या आपने इसे पाठकों के अनुकूल बनाया है?
जस्टिस गोगोई: मुझे नहीं पता था कि मैं अपनी किताब को रीडर फ्रेंडली बना सकता हूं या नहीं. मैंने कोशिश की है लेकिन आप मेरी किताब की आखिरी लाइन देखिए. मेरी पुस्तक की अंतिम पंक्ति, पृष्ठ संख्या 218, पृष्ठ 218 पर अंतिम वाक्य देखें.
सुधीर चौधरी: 'यह मेरी जिंदगी रही है. यह मेरी कहानी है. और भी कई रहस्य राय और भावनाएं हैं जिन्हें मैं अपनी कब्र पर ले जा सकता हूं या नहीं, केवल समय ही बताएगा.'
जस्टिस गोगोई: फैसला लिखना आसान है क्योंकि जज का कोई पक्ष नहीं है, कोई राय नहीं है, कोई व्यक्तिगत हित नहीं है. तथ्यों के आधार पर मामले की सुनवाई की जाती है. मेरे हिसाब से सबसे आसान काम है फैसला देना लेकिन किताब लिखना अलग है. खासकर आत्मकथा जो मेरे बचपन से शुरू हो रही है. 50 साल को 1970 से 200 पेज तक समेट कर 14 साल पुरानी घटनाओं का जिक्र करना आसान नहीं है. आखिरी लाइन आपने पढ़ी और सुनी है, इसमें पूरी कहानी छिपी है कि किताब लिखना कितना मुश्किल है. मैं अभी तक आपके लिए पूरे 100 के 100 रहस्य या तथ्य नहीं लाया हूं. इसके कई कारण हैं, इसके तथ्य कभी सामने आएंगे या नहीं, मैं नहीं कह सकता.
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