डीएनए हिंदी: नवंबर 09, 2021 दिन मंगलवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ram Nath Kovind) द्वारा झारखंड की छुटनी महतो (Chutni Mahato) को पद्मश्री (Padma Shri) से नवाजा गया. छुटनी देवी की पहचान एक ऐसी वीरांगना के रूप में है जिन्होंने पूरे झारखंड में डायन-भूतनी कहकर प्रताड़ित की गई महिलाओं को नरक जैसी जिंदगी से बाहर निकाला है. जबकि एक ऐसा भी दिन था जब उनको भी 'डायन' बताकर ससुराल और गांव वालों ने खूब यातनाएं दी थीं.
गांव में बैठी पंचायत ने उनपर जो जुल्म किए थे उसकी टीस आज भी जब उनके सीने में उठती है तो जख्म एक बार फिर से हरे हो जाते हैं. हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में छुटनी देवी कहती हैं, '1978 में महज 13 साल की उम्र में मेरी शादी कर दी गई थी. सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन तीन सितंबर 1995 के दिन सब कुछ बदल गया. मुझे वो तारीख अच्छी तरह याद है. घर में भाभी की बेटी बीमार पड़ी हुई थी और इसका जुर्म मेरे माथे पर मढ़ दिया गया. कहा गया कि तुम डायन हो. जादू-टोना करके बच्ची की जान लेना चाहती हो.'
पंचायत ने उनपर 500 रुपये का जुमार्ना ठोंका. दबंगों के खौफ से छुटनी देवी ने जुमार्ना भर दिया लेकिन बीमार बच्ची अगले रोज भी ठीक नहीं हुई. इसके बाद चार सितंबर को एक साथ 40-50 लोगों ने उनके घर पर धावा बोला. उन्हें घर से खींचकर बाहर निकाला. उनके तन से कपड़े खींच लिए गए. बेरहमी से पीटा गया. इतना ही नहीं उनपर मल-मूत्र तक फेंका गया.
वह बताती हैं, '4 सितंबर की घटना के बाद मेरा ससुराल में रहना मुश्किल हो गया. मुझे जान से मारने की कोशिश की गई लेकिन मैं अपने तीन बच्चों को लेकर भाग गई. एक रिश्तेदार के यहां रुकी पर यहां भी उन्हें डायन करार देनेवाले लोगों से खतरा था. पति ने भी साथ छोड़ दिया. इसके बाद उफनती हुई खरकई नदी पार कर किसी तरह आदित्यपुर में अपने भाई के घर पहुंचीं लेकिन बदकिस्मती ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा. कुछ रोज बाद मां की मौत हो गई और तो मुझे यह घर भी छोड़ना पड़ा. फिर गांव के ही बाहर एक पेड़ के नीचे झोपड़ी बनाकर सिर छिपाने का इंतजाम किया. आठ-दस महीने तक मेहनत-मजदूरी करके किसी तरह अपना और बच्चों का पेट भरती रही.'
ये छुटनी महतो का अतीत है. वह अब तक 125 ऐसी महिलाओं की मदद कर चुकी हैं जिन्हें अंधविश्वास के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है. वर्ष 1996-97 में छुटनी देवी की मुलाकात फ्री लीगल एड कमेटी (फ्लैक) के कुछ सदस्यों से हुई. इसके बाद उनकी कहानी नेशनल ज्योग्राफिक चैनल (National Geographic) तक पहुंची.
साल 2000 में गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस (आशा) ने उन्हें समाज परिवर्तन और अंधविश्वास के खिलाफ अभियान से जोड़ा. यहां रहकर उन्होंने समझा कि कानून की मदद से कैसे अंधविश्वासों से लड़ा जा सकता है. साल 2014 में काला सच: दि डार्क ट्रुथ के नाम से छुटनी देवी के संघर्ष पर फिल्म भी आ चुकी है और आज वह किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं.
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