~ देवेश पथ सारिया

'ऑक्सीयाना और अन्य कहानियां' युवा कहानीकार नितिन यादव का पहला कहानी संग्रह है और इसे पढ़कर यह कहा जा सकता है कि पहले संग्रह के हिसाब से कहानीकार ने चुनौतीपूर्ण विषयों का चयन किया है.  

मोटे तौर पर नितिन यादव को राजनीतिक चेतना का कहानीकार कहा जाए तो यह उनका पूर्ण परिचय नहीं होगा.  नितिन यादव विडंबनाओं और अंतर्विरोधों के प्रस्तुतकर्ता भी हैं.  ये कहानियां केवल तात्कलिकता को संबोधित नहीं हैं, बल्कि इनकी जड़ें गहरी हैं.  विडंबना को प्रस्तुत करने के लिए समकालीन समाज और उसके इतिहास की गहरी जानकारी जरूरी है, जो कि नितिन यादव के पास मौजूद है.  ज़रूरत के अनुसार भाषा में चुटीलापन, व्यंग्यात्मकता और भदेसपन का उपयोग इन कहानियों को प्रभावी बनाता है.  

Book Review : नींद और जाग के बीच की पुकार है अनिरुद्ध उमट की ‘नींद नहीं जाग नहीं’ किताब

संग्रह की पहली कहानी 'स्वतंत्र भाला' प्राचीन यूनान के राजनैतिक संदर्भों को वर्तमान से जोड़ती है.  यहीं से कहानीकार के इरादों एवं दृष्टि का शुरुआती परिचय पाठक को हो जाता है.  कथा का नायक सोशल मीडिया का उपयोग राजनैतिक प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए करता है:

"भले ही वह राजनीतिक दल के साथ काम करता था, लेकिन उसकी नज़र सब सेलिब्रिटीज़ पर रहती थी.  जो भी लोकप्रिय था, जिसकी थोड़ी बहुत साख थी, वह उसके लिए कभी भी उपयोगी हो सकता था क्योंकि भले ही यह सेलिब्रिटी अलग अलग दुनिया से आते हों लेकिन राजनीति की नुकीली घास पर उनके कदम जब-तब पड़ जाते थे.  उसके नेताओं की मजबूत छवियां गढ़ने और सवारने में ये सेलिब्रिटीज़ बहुत काम के थे.  राजनीति तो खेल ही छवियों का है. "

और ऐसा भी नहीं कि वह अपने राजनीतिक दल के प्रति ईमानदार है.  अपना पाला वह इस तरह बदलने को तत्पर है.  जैसे, वाद-विवाद प्रतियोगिता में कोई प्रतियोगी सहूलियत देखकर अपना पक्ष बदल ले.  नायक को अपने काम में अप-टू-डेट रहना पड़ता है क्योंकि किसी भी 'मसाले' की एक्सपायरी डेट बहुत निकट हो सकती है.  सोशल मीडिया कंटेंट तुरत-फुरत का खेल है.  फिर भी वह कोई जमीनी बदलाव नहीं ला सकता...

"... कभी तुमने फिल्मों में बारिश के दृश्यों पर ध्यान दिया है? नायक, नायिका या अन्य किरदारों पर पानी की टंकी से फव्वारे द्वारा बारिश की जाती है.  जो यह बारिश कर रहे होते हैं, उनके हाथ सूखे होते हैं. "

कहानीकार की व्यंग्यात्मक क्षमता उभरती नज़र आ रही है

'द बैटल ऑफ द ऐप्स' मोबाइल एप्लीकेशंस के आपसी संवाद की कहानी है.  यहां नितिन उस तरफ भी इशारा करते हैं कि आपका स्मार्टफोन निरंतर आपकी गतिविधियों की सर्विलेंस कर रहा है.  इस कहानी में नितिन यादव की व्यंग्यात्मक क्षमता स्पष्टतः देखी जा सकती है.  कहानी के ट्रीटमेंट में एक नवाचार है.  

'ऑक्सीयाना' पर्यावरण चेतना की लंबी कहानी है जो गैस त्रासदी की घटना को आधार बनाती है.  इसमें एक काल्पनिक उपन्यास के माध्यम से उसे रोचक बनाने का प्रयास किया गया है ‌‌.  ऑक्सीयाना नाम की पात्र उस माहौल से दूर जाना चाहती है.  लेकिन उसका पति उसे टालता रहता है.  और इसी टालमटोल का दंश उसके परिवार को झेलना पड़ता है.  और यह परिवार महज़ एक उदाहरण है, वरना उस शहर में जाने कितने परिवारों को आपदा का सामना करना पड़ता है.  कहानी के कुछ हिस्सों में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भारत के माहौल का अनुभव आपको होगा.  यहां एक मार्मिक पंक्ति उद्धृत करना चाहूंगा:

"सरकार और न्यायालय ने तय किया था कि बुजुर्गों की बजाय युवाओं और बच्चों को इलाज में प्राथमिकता दी जाएगी क्योंकि संसाधन सीमित थे.  बुजुर्गों के लिए कब्रिस्तान जाने वाली सड़क का रास्ता चौड़ा कर दिया गया.  बूढ़े दरख़्तों की भला कौन परवाह करता है?"

जीवन की कहानियां हैं

'एकलव्य 2.0' और लंबी कहानी 'होठूका' दोनों ही कोचिंग तंत्र के मकड़जाल की बातें करती हैं.  इनमें से पहली कहानी में अपना परिवेश, संघर्ष एवं भूतकाल भूलकर पैसे के गुलाम हो जाने वाले डॉ. मलिक हैं:

 

"उन्होंने तय कर लिया, अब वे पगडंडियों पर नहीं राजमार्ग पर चलेंगे.  मोर अब जंगल में नहीं नाचेगा.  वह राजमहल की सबसे ऊंची प्राचीर पर नृत्य करेगा. "

यह कैसी दौड़ है कि एक गरीब अभ्यर्थी के लिए राजधानी हमेशा दूर ही होती है—

"जब वह इंटरव्यू देने राजधानी गया, तब उसे पहली बार महसूस हुआ कि राजधानी उसके गांव से जितना वह सोचता था, उससे भी ज़्यादा दूर थी. "

यहां हजरत निजामुद्दीन का वचन और वरिष्ठ कवि सवाई सिंह शेखावत की कविता पंक्तियां याद आती है: "दिल्ली अभिशप्त है/दिल्ली नहीं पहुंचने के लिए/फिर भी हर सुबह/आदमी करता है कूच/ दिल्ली के लिए".

'होठूका' काफी सधी हुई कहानी है.  यहां जातिवाद एक अंडरटोन के रूप में उपस्थित है.  पर वह मुख्य मुद्दा नहीं है.  मुख्य रूप से कोचिंग संस्थानों का हौआ है, साप्ताहिक टेस्ट जैसे तामझाम हैं जो विद्यार्थियों को कोल्हू का बैल बना देते हैं.  डॉक्टर बनने की या माता-पिता द्वारा डॉक्टर बनाने की अंधी आकांक्षा में बच्चे साल-दर-साल पिसते रहते हैं.  जाने कितने गरीब होठूका हर साल छिटक कर नेपथ्य में चले जाते हैं, खुद को बर्बाद करने के लिए.  इस कहानी में नितिन ने 'रिपीटर्स' वाले बिंदु को बारीकी से पकड़ा है.  कहानी का अंत त्रासद है और सोशल मीडिया पर दिखावे की संस्कृति का नंगा सच उजागर करता है.  

'ध्रुवतारा' कहानी भी शिक्षा व्यवस्था और समाज द्वारा बच्चे की परख सिर्फ पढ़ाई के आधार पर करने की स्थिति पर बात करती है.  इस कहानी की शुरुआत चुनावी भीड़ जुटाने वाले प्रसंग से करना नितिन के कहानीकार के रूप में विकास होने की ओर इशारा करता है.  फिर चर्चा में आते हैं, मोबाइल में घुसे हुए लोग.  एक ही घर में कई, कई पीढ़ियां, मोबाइल की गुलाम.  कहानी का अंत कुछ गंभीर सवाल खड़े करता है, लेकिन इस वजह से कहानी के बीच में आई कुछ चुस्त पंक्तियों पर निगाह छूटनी नहीं चाहिए:

"फलानी फीस, ढिकड़ी फीस करके मेरे बेटे जीरो जोड़ने में मिनट नहीं लगाते. " यहां 'मेरे बेटे' अलवर की स्थानीय बोली से आता है, जिसका प्रयोग यहां कोचिंग वालों के लिए किया गया है.  

संग्रह की दो कहानियां मुझे औसत लगीं.  इन दोनों कहानियों पर एडिटिंग की जरूरत मुझे महसूस हुई.  इस श्रेणी की पहली कहानी है, "आधा सच बनाम भारत का प्रधानमंत्री कौन!" जिसमें मानसिक स्वास्थ्य की बात की गई है.  कहानी की पात्र शीला को शायद 'मल्टीपल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर' है.  लेकिन कुल मिलाकर कहानी का संयोजन बेहतर हो सकता था.

इसी तरह 'छठी की रात' कहानी की शुरुआत में कुछ पात्रों को बहुत ही स्पेस दे दी गई है जो कहानी की गति मंद करते हैं.  इस कहानी की सफलता अन्य दो पात्र हैं: राम सिंह और कमला.  यही दोनों अंत में रोचक रूप में पाठक के मन में रह जाते हैं.  अपनी शैली में नितिन इस कहानी में भी 'व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से अर्जित ज्ञान' जैसी समसामयिक समस्या की ओर ध्यान दिलाते हैं.   

एक राजनीतिक पार्टी के अभ्युदय की कथा

'नोटा' कहानी अन्ना आंदोलन और उसके उपरांत एक राजनीतिक पार्टी के अभ्युदय की कथा है.  हालांकि यहां कुछ नाटकीय परिवर्तन किए गए हैं.  कहानी की मूल कथा यह है कि नई पीढ़ी बड़ी ख्वाबीदा होती है.  और राजनीति की घिरनी पर चलते रहने से वह भी अंत में गंदला पानी ही संभावनाओं के कुएं से निकालकर लाने लगती है.  ‌यह बेहद कसी हुई कहानी है.  कहानी का अंत कुछ वस्तुनिष्ठ-सा है, जैसा कि इन दिनों देखने को मिलता है.  

दसवीं और अंतिम कहानी 'लोकतंत्र के तार-तार' अपने संतुलन और सटीकता की वजह से इस पुस्तक की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में से है.  कितनी बेनामी दुकानें होती हैं जिनके कोई नाम कभी रखे नहीं जाते, ऐसी ही एक दुकान हरदयाल की है.  और उस दुकान के पास है एक होटल जिसमें विधायकों को ख़रीद-फरोख्त के लिए रखा गया है.  उन्हीं के मनोरंजन के लिए एक बुजुर्ग हरमन को लाया जाता है.  कहानी में तीन पक्ष हैं जिनकी समांतर कहानियां चलती हैं: हरमन के परिवार की घरेलू कलह, मुख्यमंत्री द्वारा विधायकों पर होल्ड बनाए रखने की कोशिश और इस सबसे प्रभावित हो रहे लोग जिनमें पत्रकार, पुलिस वाले और चायवाला शामिल हैं.  

 

अंत में कुछ बिंदु जिन पर नितिन यादव मेहनत कर सकते हैं.  पहला और सबसे महत्वपूर्ण बिंदु तो यही है कि नितिन को अपनी कहानी के गौण किरदारों पर मेहनत करने की ज़रूरत है.  कई बार वे नितिन द्वारा 'फिलर' के तौर पर इस्तेमाल किए जाते दिखाई देते हैं.  दूसरा बिंदु उस चुनौती से संबंधित है जो ऐसी कहानियां लिखने में शामिल होती हैं— कहां लाउड होना है, कहां नहीं, व्यंग्य एवं राजनैतिक विमर्श का सही समावेश आदि.  इस दूसरे बिंदु के बारे में अलग-अलग पाठकों के मत भिन्न हो सकते हैं. नितिन यादव को इन परिपक्व और विविध विषयों पर कहानियां लिखने के लिए बधाई एवं भविष्य के लिए शुभकामनाएं.  

May be a close-up of 1 person, sunglasses and indoor

 

पुस्तक: ऑक्सीयाना और अन्य कहानियां
लेखक: नितिन यादव
प्रकाशक: न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन
मूल्य: ₹175 (पेपर बैक)
वर्ष: 2022

(देवेश पथ सारिया नई उम्र के बेहद संजीदा लेखक हैं. उनकी रचनाओं से गाहे-बगाहे रुबरु होना सुख है. यहां प्रस्तुत विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है) )

 

Book Review : “अद्भुत प्रेम की दास्तान है अम्बपाली” - धीरेंद्र अस्थाना

 

Url Title
Book Review of book on AAP by Nitin Yadav famous poet Devesh Path Sariya writes about it
Short Title
समसामयिक भारत में अंतर्विरोधों का आख्यान है 'ऑक्सीयाना और अन्य कहानियां'
Article Type
Language
Hindi
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
Oxiyana Book Review Nitin Yadav
Date updated
Date published
Home Title

Book Review : समसामयिक भारत में अंतर्विरोधों का आख्यान है 'ऑक्सीयाना और अन्य कहानियां'