डीएनए हिंदी: देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले शहीद ए-आजम भगत सिंह की आज 115वीं जयंती (Bhagat Singh Jayanti 2022) है. इस मौके पर पूरा देश अपने हीरो को याद कर रहा है. भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था. काफी छोटी उम्र में ही भगत सिंह ने देश की आजादी की लड़ाई में काफी अहम योगदान दिया था. फिर चाहे सेंट्रल असेंबली में बम फेंकना हो, जेल में रहकर भूख हड़ताल करनी हो या फिर ब्रिटिश शासन के एक पुलिस अफसर से बदला लेने की घटना हो.
भगत सिंह का जन्म पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब के गांव बांगा में हुआ था. उनका परिवार पहले से ही आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ रहा था, बाद में भगत सिंह भी इसी राह पर चल पड़े थे. अंग्रेज हुकूमत को हिलाने वाले भगत सिंह को सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था. जेल में अंग्रेजों को टॉर्चर झेलने के बाद भी उन्होंने आजादी का मांग को जारी रखा. उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि भयभीत ब्रिटिश हुक्मरान ने 23 मार्च 1931 मात्र उन्हें फांसी पर लटका दिया था.
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दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में फेंके थे बम
भगत सिंह अपनी लड़ाई की आवाज को पूरे देश में पहुंचाना चाहते थे. लेकिन उन दिनों सोशल मीडिया जैसे कोई माध्यम नहीं थे. इसलिए उन्होंने अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अत्याचार और उनकी हुकूमत को चुनौती देने के लिए दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम धमाका करने का प्लान बनाया. भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त 8 अप्रैल 1929 की सुबह करीब 11 बजे असेंबली दो बम फेंके और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए. उस वक्त असेंबली में ब्रिटिश अधिकारी सर जॉन साइमन वहां मौजूद था. दिल्ली असेंबली में बम धमाके बाद खबर छपी, जिसमें लिखा था कि बहरों को सुनने के लिए जोरदार धमाके की जरूरत होती है. इसके बाद भगत सिंह और उनके साथ बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया.
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भगत सिंह की फांसी का देश में होने लगा था विरोध
अंग्रेजी हुकूमत में अदालत ने भगत सिंह के साथ राजगुर और सुखदेव को मौत की सजा सुनाई. तीनों क्रांतिकारियों को 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी लेकिन इस खबर के बाद से देशवासी भड़के हुए थे. लोग देश के तीनों सपूतों की फांसी का विरोध करने लगे और आंदोलन शुरू हो गया. देश के लोगों में आक्रोश था और अंग्रेजों के खिलाफ जिस विरोध को भारतीयों की नजरों में देखना चाहते थे, वह धीरे-धीरे बढ़ रहा था.
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भगत सिंह को एक दिन पहले दे दी गई थी फांसी
देश के वीर सपूतों के प्रति देश में उबल रहे गुस्से देख अंग्रेजी हुकूमत भी डरने लगी थी. वह भारतीयों का विरोध का सामना नहीं कर पा रही थी. ऐसे में इस विरोध से बचने के लिए अंग्रेजों ने गुपचुप तरीके से तय समय से एक दिन पहले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी देने रणनीति बनाई और 23 मार्च 1931 को शाम साढ़े सात बजे तीनों वीर सपूतों को फांसी पर लटका दिया गया.
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असेंबली में बम फेंकना, भूख हड़ताल... एक दिन पहले फांसी, जानें भगत सिंह से जुड़ी अहम बातें