डीएनए हिन्दी: साल-दर-साल असम (Assam Flood) की बाढ़ भयावह रूप लेती जा रही है. असम की बाढ़ से इस वर्ष अब तक 108 लोगों की जान जा चुकी है. डिब्रूगढ़ से बरपेटा तक लोग बाढ़ से परेशान हैं. राज्य के 32 जिलों में बाढ़ प्रभावित लोगों की संख्या 54.5 लाख के करीब है. हमने असम की इस बाढ़ की भयावहता को समझने के लिए पर्यावरणविद दिनेश मिश्र से बातचीत की. आइए हम उन्हीं की जुबानी जानते हैं असम की इस बाढ़ के पीछे की कहानी...

बाढ़ और असम का रिश्ता बहुत पुराना है. असम (Assam) और मेघालय (Meghalaya) भारत के सर्वाधिक वर्षा वाले इलाके हैं. असम का लाइफ लाइन ब्रह्मपुत्र है. ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra River) के दोनों तरफ पहाड़ियां हैं. दोनों तरफ की पहाड़ियों के बीच का जो इलाका है, यानी घाटी है वह करीब 80 किलोमीटर चौड़ा और 550 से 600 किलोमीटर लंबा है. ब्रह्मपुत्र नदी का कैचमेंट एरिया काफी बड़ा है. चूकि यह सार्वाधिक बारिश वाला इलाका है, इसिलए जब पहाड़ों पर बारिश होती है तो नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ता है और बाढ़ का रूप ले लेता है.

brahmaptra

यहां ब्रह्मपुत्र के अलावा छोटी-बड़ी कई नदियां हैं. वास्तव में यह पूरा इलाका नदियों का ही है. लेकिन, कालांतर में धीरे-धीरे यहां आबादी विकसित होती गई. शुरू में यहां रहने वाले लोगों को खुद को प्रकृति के साथ ढाल लिया. यहां के घरों के डिजाइन पारंपरिक रूप से ऐसे थे जो बाढ़ प्रूफ थे. इस इलाके में अफरात लकड़ियां थीं. बांस भी खूब थे. इसी बांस और लकड़ियों की मदद से लोग घर बनाते थे. बाढ़ आती थी और इनके घरों के नीचे से निकल जाती थी. लोग प्रकृति के साथ मजे की जिंदगी जी रहे थे. दोनों के बीच एक सामंजस्य था. 

assam house

लेकिन, विकास की हमारी आधुनिक अवधारणा ने सबकुछ बदल कर रख दिया. हमने बाढ़ नियंत्रण के नाम नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को रोकने का काम किया. हमारी सोच प्रकृति के साथ न चलकर प्रकृति को ललकारने की रही. उसी के साइड इफेक्ट्स देखने को मिल रहे हैं. अब तबाही ज्यादा हो रही है. 

असम के इस इलाके में आबादी बढ़ी. खास कर पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी. हमने बांध बनाकर नदी पर नियंत्रण करने की कोशिश की. लोगों के अवागमन के लिए सड़कों का जाल बिछाया जिससे नदियों के पानी का प्राकृतिक प्रवाह बंद हो गया. पानी निकलने के रास्ते धीरे-धीरे कम हो गए. पहले बरसात में बाढ़ का पानी जो कुछ दिनों तक ठहरता था अब वह महीनों रह जा रहा है. अब आधुनिक मकान भी बनने लगे हैं. ये असम के प्राकृतिक आबोहवा के हिसाब से ठीक नहीं हैं. 

high way

हमने विकास तो की, लेकिन समग्रता में नहीं. यानी हमने बाढ़ रोकने के लिए सख्ती दिखाई, न कि युक्ति. हमने बांध के बहाने नदियों के पानी को रोकने की कोशिश की लेकिन जल निकासी पर हम मौन रहे. इसके दुष्परिणाम तो आएंगे ही. वही तबाही के रूप में सामने आ रहे हैं. 

बाढ़ नियंत्रण के नाम पर आजादी के बाद हमने बाढ़ का क्षेत्र कितना बढ़ा लिया है इसे आंकड़ों की मदद से समझ सकते हैं. 1952 तक बिहार में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 25 लाख हेक्टेयर था. अब इसमें तीन गुना बढ़ोतरी हुई है. यह बढ़कर 73 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है. वहीं देश के स्तर पर यह 250 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 500 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है. यानी हमने बाढ़ नियंत्रण के चक्कर में इसका दायरा और बढ़ा दिया है.

जब तक हम जल निकासी को लेकर नहीं सोचेंगे तब तक हमें बाढ़ की समस्या का स्थाई समाधान नहीं मिलने वाला है. साथ ही हर क्षेत्र की विशेषता होती है जिसके बारे में वहां के स्थानीय लोग ज्यादा जानते हैं. सरकार को चाहिए कि जब वह योजना बनाए तो उसमें उस इलाके के स्थानीय लोगों को जरूर शामिल करे. तभी वास्तविक और स्थाई विकास संभव होगा. कुल मिलकार यह कहना होगा कि हम प्रकृति से टकराए नहीं, उसके साथ सामंजस्य बनाएं. इसी में सबका कल्याण है. 

dinesh

दिनेश मिश्र पर्यावरणविद हैं

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Assam floods More people affected now than ever evolve an integrated response to floods
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Assam Flood: 'हमें बाढ़ से निपटने के लिए शक्ति नहीं, युक्ति दिखानी होगी'
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Assam Flood: 'हमें बाढ़ से निपटने के लिए शक्ति नहीं, युक्ति दिखानी होगी'