डीएनए हिंदी: Vijay Diwas 2022- भारतीय सेना के शौर्य का सबसे बड़ा नमूना 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध (1971 India Pakistan War) को माना जाता है. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के 13 दिसंबर, 1971 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में रैली को संबोधित करने के दौरान पाकिस्तानी सैबर फाइटर जेट्स ने पंजाब के पठानकोट (Pathankot) और अमृतसर (Amritsar), जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर (Shrinagar), राजस्थान के जोधपुर (Jodhpur) और उत्तर प्रदेश के आगरा (Agra) पर हमला बोला और खुद ही 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम (Bangladesh Liberation War) में भारत की सीधी एंट्री कर दी. इंदिरा गांधी तत्काल रैली छोड़कर दिल्ली के लिए लौटी, लेकिन विमान को लखनऊ में उतारना पड़ा. इंदिरा सड़क मार्ग से रात 11 बजे दिल्ली पहुंची. तत्काल कैबिनेट की इमरजेंसी मीटिंग हुई और उसके बाद कांपती हुई आवाज में इंदिरा गांधी ने युद्ध में उतरने की घोषणा कर दी. इसके बाद शुरू हुई भारतीय जवानों के शौर्य और साहस की दास्तां, जिन्होंने महज 13 दिन बाद ही पाकिस्तानी सेना को ढाका (Dhaka) में घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया. आज से 51 साल पहले 16 दिसंबर, 1971 को ढाका में पाकिस्तानी जनरल एके नियाजी (General AK Niazi) ने 93,000 पाकिस्तानी सिपाहियों के साथ सरेंडर कर दिया. उस दिन क्या माहौल था, आइए जानने की कोशिश करते हैं.
Slide Photos
Image
Caption
ढाका की सड़कों पर जगह-जगह बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी (Bangladesh Mukti Wahini) के लड़ाकों ने कब्जा जमाया हुआ था, जिन्होंने भारतीय सेना की मदद से पाकिस्तान के छक्के छुड़ा रखे थे. इन लड़ाकों के हाथ कोई भी पाकिस्तानी सैनिक लग रहा था, तो उसे सीधे गोली से उड़ा दिया जा रहा था. हालात ये थे कि कई जगह पाकिस्तानी वाहनों का इस्तेमाल कर रहे भारतीय जवानों पर भी गोलियां बरसा दी गईं, जिसके लिए बाद में माफी भी मांगी गई. करीब 24 साल से पश्चिमी पाकिस्तान (मौजूदा पाकिस्तान) का जुल्म सह रहे बांग्ला भाषी पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) के आजाद होने का जश्न ढाका की सड़कों पर जगह-जगह मनाया जा रहा था. मुक्ति वाहिनी के लड़ाके मार्चपास्ट कर रहे थे.
Image
Caption
ढाका में 13-14 दिसंबर की रात में भारतीय मिग-21 फाइटर जेट्स के गवर्नर हाउस के मुख्य भवन पर बम बरसा देने के बाद सरेंडर की भूमिका बन गई थी. तत्कालीन पाकिस्तानी गवर्नर मलिक ने कांपते हाथों से एयररेड शेल्टर में बैठकर अपना इस्तीफा लिखा, लेकिन सवाल था कि सरेंडर कैसे होगा? 15 दिसंबर को भारतीय सेना के मेजर जनरल गंधर्व नागरा ने पाकिस्तानी जनरल नियाजी को फाइनल नोट भेजा. उन्होंने सारा खेल खत्म होने की बात कहते हुए सरेंडर करने की सलाह दी. सरेंडर के लिए तैयार बैठे नियाजी ने उन्हें बातचीत के लिए बुलाने को ढाका गैरिसन के जीओसी जनरल जमशेद को कार में भेजा. मेजर जनरल नागरा ने उनकी गाड़ी से पाकिस्तानी झंडा उतारकर भारतीय 2-माउंटेन डिव का झंडा लगाया और जनरल नियाजी के पास गए. इसके बाद तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख फील्ड मार्शल जनरल सैम मानेकशॉ (Field Marshal Sam Manekshaw) को पाकिस्तानी सेना के सरेंडर के लिए तैयार होने का संदेश भेजा गया.
Image
Caption
भारतीय सेना की पूर्वी कमान के तत्कालीन स्टाफ ऑफिसर लेफ्टिनेंट जनरल जेएफआर जैकब को 16 दिसंबर की सुबह 9.15 बजे ढाका पहुंचने का आदेश मिला. उन्हें जिम्मेदारी दी गई जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा (General Jagjit Singh Arora) के ढाका पहुंचने से पहले जनरल नियाजी से मिलकर सरेंडर की सारी तैयारियां करने की.
Image
Caption
जनरल नियाजी ने ढाका एयरपोर्ट पर जनरल जैकब को रिसीव करने के लिए अपनी कार भेजी थी. जनरल जैकब ने बाद में मीडिया से बातचीत में कहा, जब वे एयरपोर्ट से चले तो बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी के लड़ाकों ने पाकिस्तानी जनरल मानकर कार पर गोलियां बरसा दीं. उन्होंने कार से कूदकर जान बचाई और अपने भारतीय जनरल होने की जानकारी दी. इसके बाद ही आगे जा सके.
Image
Caption
जनरल जैकब के मुताबिक, जब नियाजी को सरेंडर की शर्तें सुनाई गई तो वह रोने लगे. कई शर्तों पर उन्हें ऐतराज था. इस पर जनरल जैकब ने उन्हें पहले समझाया, फिर 30 मिनट का फाइनल समय दिया और कहा कि इसके बाद पाकिस्तानी सेना पर फिर से बमबारी शुरू हो जाएगी. जनरल जैकब के मुताबिक, ढाका में उस समय 26,000 पाकिस्तानी जवान थे, जबकि हमारे 3,000 जवान ढाका के अंदर नहीं करीब 3 किलोमीटर दूर थे.
Image
Caption
जनरल जैकब ने मीडिया से बातचीत में बताया था कि उन्होंने जनरल नियाजी को जनरल अरोड़ा के सामने तलवार सरेंडर करने की सलाह दी. उन्होंने कहा, पाकिस्तानी सेना तलवार नहीं रखती. इस पर मैंने उन्हें कहा कि टोपी या बेल्ट सबके सामने उतारना आपकी बेइज्जती होगा, इसलिए आप एक पिस्टल साथ ले लीजिए और उसे सरेंडर कर दीजिएगा.
Image
Caption
युद्ध का माहौल, सरेंडर की बातचीत, इसके बावजूद जनरल नियाजी की तरफ से भारतीय सेनाधिकारियों के लिए शानदार लंच का इंतजाम था. करीने से टेबल थी. कांटे-छुरी लगे हुए थे. खाना खाकर जनरल जैकब और नियाजी एयरपोर्ट के लिए रवाना हुए, जहां जनरल अरोड़ा पहुंच रहे थे. जनरल जैकब के काफिले को रास्ते में फिर से बांग्लादेशी लड़ाकों ने रोक लिया, जो जनरल नियाजी को अपनी हिरासत में लेना चाहते थे. जनरल जैकब के साथ महज दो भारतीय पैराट्रूपर थे. इसके बावजूद उन्होंने बांग्लादेशी लड़ाकों को धमकाते हुए वहां से चले जाने को कहा. इसके बाद बांग्लादेशी लड़ाके पीछे हटे. इसके बाद जनरल नियाजी को भारतीय जवानों ने घेर लिया और अपनी सुरक्षा में सरेंडर के लिए लेकर गए.
Image
Caption
जनरल अरोड़ा 5 MQM हेलिकॉप्टर से अपने जवानों के साथ एयरपोर्ट पर उतरे और रेसकोर्स मैदान पर सरेंडर प्रक्रिया शुरू हुई. सरेंडर के कागजों पर जनरल अरोड़ा और जनरल नियाजी के हस्ताक्षर हुए. इसके बाद नियाजी ने अपने सैन्य बिल्ले उतार दिए और अपनी रिवाल्वर जनरल अरोड़ा को सौंपकर सरेंडर कर दिया. तत्काल इसकी जानकारी फोन से दिल्ली दी गई.
Image
Caption
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस समय संसद भवन के अपने ऑफिस में विदेशी मीडिया को इंटरव्यू दे रही थी. इंटरव्यू के बीच में ही उनके लाल फोन की घंटी बजाकर जनरल मानेकशॉ ने जीत की जानकारी दी. इसके बाद इंदिरा गांधी तत्काल इंटरव्यू बीच में ही छोड़कर लोकसभा में पहुंची और कहा- ढाका अब एक स्वतंत्र देश की राजधानी है.
Short Title
51 साल पहले 16 दिसंबर को कैसे हुआ था पाकिस्तानी आर्मी सरेंडर