कांग्रेस में चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर के शामिल होने की चर्चा चल रही है. पीके अब तक टीएमसी और वाईएसआर की पार्टी से भी जुड़ चुके हैं. कांग्रेस में उनके शामिल होने को लेकर बहुत से सवाल भी जारी हैं. कहा जा रहा है कि पीके के शामिल होने पर उनकी सक्रियता बहुत से वरिष्ठ और पुराने कांग्रेसियों को असहज कर सकती है. खास तौर पर जी-23 ग्रुप को लेकर असमंजस की स्थिति अभी से बन रही है.
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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी के दूसरे बड़े नेताओं के साथ मीटिंग के बाद यह तय है कि प्रशांत किशोर पार्टी में शामिल होने वाले हैं उन्होंने कांग्रेस के लिए आगे का रोडमैप भी तैयार किया है. माना जा रहा है कि 2024 के चुनावों के लिए वह अभी से कांग्रेस के लिए रणनीति बना चुके हैं. कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पीके की भूमिका के लिए एक कमिटी बनी है जो इस पर सुझाव देगी.
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कांग्रेस के पुराने और दिग्गज चेहरे पीके की भूमिका कैसे स्वीकार करेगी, इसे लेकर असमंजस की स्थिति है. जी-23 पहले से ही नाराज चल रहा है और बार-बार अपनी भूमिका के लिए सवाल कर रहा है. ऐसे में पीके का बढ़ता कद कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा और गुलाम नबी आजाद जैसे नेताओं के लिए स्वीकार करना सहज नहीं होगा. माना जा रहा है कि कांग्रेस की संस्कृति में अपनी पैठ बनाने के लिए पीके को खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है.
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कई राज्यों में लगातार हार के बाद इस वक्त कांग्रेस पार्टी में कलह चरम पर है. आलम यह है कि राज्यों की गुटबाजी खुलकर सामने आ रही है और इसका फायदा विपक्षी दलों को मिल रहा है. ऐसे में अगर पीके कांग्रेस में शामिल होते हैं तो जाहिर है कि वह एक बड़े पद पर निर्मणायक ताकतों के साथ ही शामिल होंगे. ऐसे में पहले से पालों और खेमों में बंटी कांग्रेस को एकजुट करना बेहद मुश्किल होगा. कांग्रेस के पुराने दिग्गज पहले से ही पीके जैसे चुनावी रणनीतिकारों के लिए अपनी नाखुशी जाहिर करते हैं.
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कांग्रेस से नाराज चल रहे जी-23 के सभी नेता राजनीति के पके हुए चावल हैं. उन्होंने कांग्रेस के उभार और पराभव के दौर देखे हैं और उसमें भी अपनी अहमियत बनाए रखना बखूबी जानते हैं. ऐसे में शशि थरूर, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, मणिशंकर अय्यर जैसे नेताओं पर हाई कमान न तो सीधे कार्रवाई कर सकती है और न ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा सकती है. दूसरी ओर इन नेताओं के अनुभव की जरूरत बिखरी हुई पार्टी को है और ऐसे में उन्हें मनाना और नई भूमिकाओं के लिए तैयार करना कोई आसान काम नहीं होगा.
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प्रशांत किशोर सफल चुनावी रणनीतिकार जरूर हैं लेकिन कांग्रेस के लिए काम करना उनके लिए आसान नहीं होने वाला है. टीएमएसी और वाईएसआर कांग्रेस जैसी पार्टियों को जीत दिलाना एक प्रदेश की राजनीति भर की बात थी. ध्यान देने की बात है कि इन पार्टियों का संगठन बेहद मजबूत माना जाता है. लोकसभा चुनाव के लिए पीके को देश के लिए रणनीति बनाना है. कांग्रेस के पास संगठन ज्यादातर राज्यों में लुप्तप्राय की कगार पर है. बीजेपी के पास पीएम नरेंद्र मोदी के तौर पर दमदार चेहरा है. ऐसे में आम जनता को लुभाने के लिए पीके के लैपटॉप से कौनसी रणनीति निकलती है, यह देखना होगा.