दुनिया भर में अलग-अलग रीति-रिवाज को मानने वाले लोग रहते हैं, लेकिन जब बात नए साल की आती है तो सबका सेलिब्रेशन 1 जनवरी को ही होता है. कभी आपने सोचा है कि साल की शुरुआत आखिर 1 जनवरी को ही क्यों होती है? साल का पहला महीना जनवरी ही क्यों होता है? साल में 365 दिन ही क्यों होते हैं? इस नये साल जान लीजिए इन सभी सवालों के जवाब-
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साल के जनवरी महीने को पहले जानूस कहा जाता था. यहीं से जनवरी नाम आया. जानूस रोम के देवता का नाम होता है. इनके नाम पर महीने का नाम पड़ा. बाद में जानूस को जनवरी कहा जाने लगा. इसी तरह की कहानी मार्च महीने के नाम को लेकर भी है. मार्च का नाम मार्स के नाम पर पड़ा. रोम में मार्स युद्ध के देवता को कहा जाता है. उनके नाम पर महीने का नाम मार्च रखा गया था.
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ये जानकर भी आपको हैरानी हो सकती है कि सदियों पहले कैलेंडर में सिर्फ 10 महीने ही होते थे. उन दिनों एक साल में 310 दिन होते थे. एक सप्ताह में 8 दिन होते थे. तब रोम के शासक जूलियस सीजर ने खगोलविदों से जाना कि पृथ्वी 365 दिन और छह घंटे में सूर्य की परिक्रमा करती है. इसके बाद सीजर ने साल के दिनों को बढ़ाकर पूरे 365 दिन का किया और रोमन कैलेंडर के अनुसार साल की शुरुआत 1 जनवरी से की गई.
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वैसे तो भारत में भी 1 जनवरी को ही नया साल माना और मनाया जाता है. फिर भी देश के अलग-अलग हिस्सों में नव वर्ष की मान्यता अलग-अलग महीनों से जुड़ी है. पंजाब में बैसाखी के तौर पर नए साल की शुरुआत होती है, जो 13 अप्रैल को होती है. वहीं सिख अनुयायी नानकशाही के कैलेंडर के मुताबिक मार्च में होली के दूसरे दिन से नया साल मनाते हैं. जैन धर्म के अनुयायी दिवाली के अगले दिन नया साल मनाते हैं. हिंदू चैत्र महीने में पहले नवरात्र से नया साल मानते हैं.
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Pope Gregory XIII ने सन् 1582 में नया कैलेंडर पेश किया. इसमें लीप ईयर से आने वाले दिनों की समस्या का समाधान शामिल था. इस कैलेंडर के अनुसार नये साल की शुरुआत 1 जनवरी से बताई गई. इटली, फ्रांस, स्पेन उन देशों में शामिल थे, जिन्होंने इस नए कैलेंडर को तुरंत प्रभाव से मंजूर कर लिया. और वहां आज भी नये साल का जश्न 31 दिसंबर रात के 12 बजे बाद से शुरू हो जाता है.
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वहीं ग्रेट ब्रिटेन और अमेरिकी उपनिवेश देशों में सन् 1752 तक 25 मार्च को ही नया साल मनाया जाता रहा. इसके बाद से ही यहां ग्रेगोरियन कैलेंडर को मान्यता मिली और नए साल की शुरुआत 1 जनवरी को मानी गई.