बचपन में आप भी अगर घंटों टीवी के सामने बैठकर कार्टून और दूसरे प्रोग्राम देखते थे तो आपको भी मालगुडी डेज जरूर याद होगा. मालगुडी डेज याद होगा तो उसके साथ दिखाए जाने वाले स्कैच भी याद होंगे. आज फिर एक बार वो स्कैच इसलिए याद आ रहे हैं क्योंकि उन्हें बनाने वाले देश के मशहूर कार्टूनिस्ट आर.के.लक्ष्मण की आज पुण्यतिथि है. वह कहते थे, 'कार्टून में ऑब्जर्वेशन होता है. सेंस ऑफ़ ह्यूमर होता है. मूर्खताएं होती हैं और विरोधाभास होते हैं. यही बात जिंदगी पर भी लागू होती है. ' आड़ी-तिरछी रेखाओं में गहरी बातें कहने वाले इस कार्टूनिस्ट को हमारा सलाम है. एक नजर उनकी जिंदगी से जुड़ी दिलचस्प बातों पर-
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24 अक्टूबर 1921 को आर.के.लक्ष्मण का जन्म हुआ था. उनका नाम रखा गया था रासीपुरम कृष्णा स्वामी लक्ष्मण. आगे चलकर वह आर.के.लक्ष्मण के नाम से जाने गए. उनके बारे में बताया जाता है कि बचपन से ही वह ड्रॉइंग करने में काफी दिलचस्पी लेते थे. हमेशा दीवारों पर आड़ी-तिरछी रेखाएं खींचते रहते थे. बच्चे अक्सर ऐसा करते हैं, मगर लक्ष्मण कला की इस दुनिया को लेकर काफी गंभीर थे.
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वह जाने-माने लेखक और मालगुडी डेज लिखने वाले आर.के.नारायण के भाई थे. बताया जाता है कि आर.के.नारायण की कहानी दोड़ू आर.के.लक्ष्मण पर ही केंद्रित थी. मालगुडी डेज को जब टीवी पर दिखाया गया तब इसके लिए सारी इल्स्ट्रेशन आर.के.लक्ष्मण ने ही बनाए थे.
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यह भी दिलचस्प है कि उन्हें पहले मुंबई के जे.जे.कॉलेज ऑफ आर्ट्स से रिजेक्ट कर दिया गया था. जब वह करियर के एक मुकाम पर पहुंचे तो इसी कॉलेज में उन्हें बतौर चीफ गेस्ट बुलाया गया था. उन्होंने जब जे.जे.कॉलेज में दाखिले के लिए आवेदन दिया था, तब उन्हें कॉलेज के डीन ने एडमिशन देने से मना कर दिया था. वजह उनमें जरूरी स्किल की कमी बताई गई. जब चीफ गेस्ट के तौर पर आर.के.लक्ष्मण उसी स्कूल में पहुंचे तब उन्होंने अपनी स्पीच में इस बात का जिक्र किया था.
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आर.के.लक्ष्मण देश के पहले ऐसे कार्टूनिस्ट थे, जिनकी एग्जीबिशन लंदन में आयोजित की गई. पुणे के सिंबोसिस इंस्टीट्यूट में उनका एक तांबे का स्टैच्यु भी है जिसे कॉमन मैन नाम दिया गया है. यही नहीं सिंबोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में एक चेयर का नाम भी आर.के.लक्ष्मण के नाम पर रखा गया है.
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आर.के.लक्ष्मण के पॉलिटिकल कार्टून हमेशा ही चर्चा में रहे. खासतौर पर उनका कार्टून 'कॉमन मैन' तो आज भी याद किया जाता है. अपने काम को लेकर उनकी शिद्दत इस घटना से भी सामने आती है. एक समय में बाल ठाकरे और आर.के.लक्ष्मण एक साथ ही नौकरी करते थे. दोनों ही कार्टूनिस्ट भी थे और अच्छे दोस्त भी. जब बाल ठाकरे कार्टूनिंग छोड़कर राजनीति में आ गए और महाराष्ट्र के बड़े नेता बन गए, तब आर.के.लक्ष्मण ने उनके खिलाफ भी पॉलिटिकल कार्टून बनाए थे.