एक वक्त था जब भारत की राजधानी कलकत्ता हुआ करती थी. फिर एक फैसला हुआ और राजधानी कोलकाता से दिल्ली को बना दिया गया. इसी के बाद बसी नई दिल्ली. इन दोनों ही ऐतिहासिक घटनाओं की कहानी ना सिर्फ रोचक है बल्कि जानना जरूरी भी है.
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मुगलों के पतन के बाद दिल्ली पर अंग्रेजों का कब्जा हुआ और 1911 में ब्रिटेन के महाराजा जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक के लिए दिल्ली में एक दरबार सजाया गया. दरबार के लिए दिल्ली के एक सुदूर इलाके बुराड़ी को चुना गया था.
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भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित किए जाने का फैसला अंत समय तक गोपनीय रखा गया. 12 दिसंबर 1911 को किंग जॉर्ज पंचम ने जब हजारों लोगों की भीड़ के सामने अचानक ये घोषणा की तो सब सन्न रह गए.
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उन्होंने कहा, 'हमें भारत की जनता को यह बताते हुए बेहद हर्ष होता है कि सरकार और उसके मंत्रियों की सलाह पर देश को बेहतर ढंग से प्रशासित करने के लिए ब्रिटिश सरकार भारत की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली से स्थानांतरित कर रही है.'
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इससे पहले 1877 और 1903 में भी दिल्ली दरबार आयोजित हो चुके थे. लेकिन 1911 का ये आयोजन इतना भव्य और प्लान के साथ आयोजित हुआ था कि ब्रिटिश सरकार ने इस दरबार पर 1000 पन्नों की एक भव्य किताब प्रकाशित की. दिल्ली दरबार के आयोजन के लिए लगभग 20 हजार श्रमिकों को लगाया गया. आज उस जगह पर कोरोनेशन पार्क बनाया जा चुका है.
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मेहमानों के लिए हजारों की संख्या में शिविर लगाए गए. दिल्ली दरबार की अपनी रेलवे व्यवस्था थी और शाही जोड़ा जिस शिविर में ठहरा, उससे सभागार तक आने के लिए एक अलग रेलवे लाइन बिछाई गई.
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जॉर्ज पंचम की घोषणा के बाद 15 दिसंबर 1911 को पुरानी दिल्ली के पास नई दिल्ली की नींव रखी गई. लेकिन बाद में एडविन लुटियंस ने नई दिल्ली बसाने के लिए रायसीना हिल को चुना. इस बारे में यह भी कहा जाता है कि भारतीय ठेकेदार सोभा सिंह ने अपनी साइकिल पर नींव का पत्थर रातों रात रायसीना हिल स्थानांतरित किया था.
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जब अंग्रेजों ने दिल्ली में निर्माण कार्य शुरू किया, तो उनका मकसद था आलीशान इमारतों के जरिए अपनी शानो शौकत दिखाना. एडविन लुटियंस ज्यादातर शाही इमारतों के चीफ आर्किटेक्ट रहे. यही वजह है कि आज भी नई दिल्ली को लुटियंस दिल्ली के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा हर्बर्ट बेकर और रॉबर्ट टॉर रसल जैसे वास्तुकारों ने भी नई दिल्ली को सजाया संवारा.