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जब पैर दबाने के बदले मिर्ज़ा ग़ालिब ने दिया था मायूस करने वाला जवाब, आम ना खाने वालों को कहते थे-गधा

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Submitted by Himani.diwan@z… on Mon, 12/27/2021 - 08:12

मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) शायद इकलौते ऐसे शायर हैं जिन्हें चाहने वालों की हदें किसी सरहद को नहीं देखतीं. वह भारत और पाकिस्तान में जितने मशहूर हैं, दुनिया के दूसरे कोनों में भी उनकी शायरी उतनी ही बुलंद है. कोई शक नहीं कि जन्मदिन होने की वजह से सोशल मीडिया पर आज जितना ट्रेंड सलमान करेंगे, उससे कहीं ज्यादा वायरल होंगे मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से. आज उनके जन्मदिन के मौके पर ऐसे ही मजेदार किस्सों पर एक नजर-

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मुफलिसी में भी नौकरी को कहा- ना
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एक बार मिर्ज़ा ग़ालिब को दिल्ली कॉलेज में पढ़ाने का प्रस्ताव मिला. ग़ालिब की शायरी के एक कद्रदान ने कॉलेज के प्रिंसिपल से उन्हें नौकरी पर रखने की गुजारिश की. कॉलेज का प्रिंसिपल उन दिनों एक ब्रिटिश व्यक्ति था. नौकरी के पहले दिन ग़ालिब अच्छे से तैयार होकर गेट तक पहुंचे और गेट से ही नौकरी को ना करके लौट आए. हुआ यूं कि ग़ालिब के गेट पर पहुंचने की खबर सुनकर कॉलेज का प्रिंसिपल उनका स्वागत करने गेट तक आया और उसने कहा- आपका पहला दिन है इसलिए मैं आपका स्वागत करने आया हूं लेकिन इसके बाद ऐसा नहीं होगा. आपको खुद ही कॉलेज के भीतर आना होगा क्योंकि अब आप यहां नौकरी करते हैं. ये सुनकर ग़ालिब ने तुरंत नौकरी से इनकार कर दिया और कहा कि जो नौकरी मेरे सम्मान को ठेस पहुंचाए, वो मुझे मंजूर नहीं. इस पर उनका शेर भी था-
'करते हो मुझको माना-ए-कदम बोस किस लिए
क्या आसमान के भी बराबर नहीं हूं मैं'

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हमने भी दाबे, तुमने भी दाबे
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मिर्ज़ा ग़ालिब के खास शागिर्द और दोस्त अक्सर शाम के वक़्त उनके पास जाते थे. एक रोज़ मीर मेंहदी मजरूह उनके पास बैठे थे और मिर्ज़ा दर्द से बेहाल थे. मीर मेंहदी ने उनके पांव दबाने शुरू कर दिए. इस पर ग़ालिब ने कहा कि तुम मुझे पैर दबाकर गुनाहगार मत बनाओ. फिर भी मीर मेंहदी नहीं माने और कहने लगे अगर आपको इतनी ही तकलीफ है, तो पैर दबाने के बदले उजरत दे दीजिएगा. पैर दबा चुकने के बाद मीर ने कहा अब उजरत दीजिए. इस पर मिर्ज़ा ने कहा- भैया कैसी उजरत? तुमने हमारे पांव दाबे, हमने तुम्हारे पैसे दाबे। हमने भी दाबे तुमने भी दाबे…

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कितने रोजे रखे
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ग़ालिब अपनी हाज़िरजवाबी के लिए भी मशहूर थे. एक बार रोज़े का महीना ख़त्म हुआ तो ग़ालिब किले में गए. बादशाह ने पूछा –'मिर्ज़ा तुमने कितने रोज़े रखे?'
ग़ालिब ने जवाब दिया –'पीर मुर्शिद – एक नहीं'
अब बादशाह उनके जवाब की तह तक जाने के लिए क़शमकश करते रहे.

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आधा मुसलमान
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ये उस दौर की बात है जब अंग्रेज मुस्लिमों को शक की नज़र से देखते थे. एक दिन शक में कुछ फिरंगी मिर्ज़ा ग़ालिब को भी पकड़कर कर्नल के सामने ले गए. उनकी पोशाक देखकर कर्नल ने पूछा कि क्‍या तुम मुसलमान हो..! हाजिरजवाब ग़ालिब ने कहा- आधा. उन्‍होंने पूछा कि आधा यानी क्‍या. जवाब मिला कि शराब तो पीता हूं लेकिन सुअर नहीं खाता. यह सुनकर कर्नल अपनी हंसी ना रोक सके और गा़लिब को छोड़ दिया.

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आम पसंद गालिब
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मिर्ज़ा ग़ालिब को आम बहुत पसंद थे. दरबारी कवि होने की वजह से कई नवाब उन्हें आम भेजते. उन्होंने शायरी में इस बात का जिक्र भी किया है कि उन्होंने 400 आम की किस्में खाई हैं. वहीं इनके कई दोस्त ऐसे भी हैं जिनको आम पसंद नहीं थे. एक बार वह दोस्तों के साथ बैठे हुए थे, रास्ते पर आम की छिलके और गुठली को गधे ने सूंघा लेकिन खाया नहीं. इस पर उनके दोस्त बोले- देखो गधा भी आम नहीं खाता इसलिए छोड़ दिया. इस पर ग़ालिब बोले गधे ही आम नहीं खाते यानी जो आम नहीं खाते वो गधे ही होते हैं :) 

Section Hindi
डीएनए स्पेशल
लेटेस्ट न्यूज
Authors
हिमानी दीवान
Tags Hindi
मिर्जा गालिब
शायरी
दिल्ली
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happy birthday mirza ghalib unknown facts shayaris and famous stories of his life
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Himani.diwan@zeemedia.esselgroup.com
Updated by
swatantra.mishra@dnaindia.com
Published by
swatantra.mishra@dnaindia.com
Language
Hindi
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Mirza Ghalib
Date published
Mon, 12/27/2021 - 08:12
Date updated
Mon, 12/27/2021 - 08:12