डीएनए हिंदीः 48 साल के बाद विश्व डेयरी समिट (World Dairy Summit) का आयोजन भारत में हो रहा है. पीएम नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) ने सोमवार को इसका उद्घाटन किया. इस समिट में दुनिया के 50 देशों के 1500 प्रतिभागी शामिल हो हुए हैं. दुनिया के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक देश भारत में हो रहे इस बार के विश्व डेयरी समिट की थीम "पोषण और आजीविका के लिए डेयरी" है. आइये जानते हैं सहकारी मॉडल से कैसे डेयरी उद्योग ने कैसे देश को पोषण और आजीविका दोनो स्तरों पर लाभ पहुंचाया.
विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक भारत
भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है. दुनिया का एक चौथाई दूध (23 फीसदी) उत्पादन भारत में ही होता है. दूध भारत की अर्थव्यवस्था में 5 फीसदी का योगदान करते हैं जिससे देश के 8 करोड़ किसान सीधे तौर से जुड़े हैं. भारत अमेरिका की तुलना में 50 फीसदी अधिक और चीन से तीन गुना ज्यादा दूध का उत्पादन करता है.
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भारतीयों की आजीविका में डेयरी का योगदान
तीन दशक पहले 1990 तक बाजार में दूध का कुल उत्पाद मूल्य गेहूं और चावल से काफी कम होता था. आंकड़े बताते है कि साल 1990-91 में दूध का उत्पाद मूल्य 28200 करोड़ रुपये था जबकि गेहूं और धान का कुल उत्पाद मूल्य 40,400 करोड़ से कम था. धीरे धीरे दूध का बाजार बेहतर होता गया. साल 2018-19 में दूध का उत्पाद मूल्य 7.27 लाख करोड़ रुपये पार हो गया जबकि गेहूं और धान का कुल उत्पाद मूल्य करीब 4.97 लाख करोड़ रुपये रहा. इस तरह दूध का उत्पाद मूल्य गेहूं और चावल से 50 प्रतिशत ज्यादा हो गया है. इस वक्त डेयरी उद्योग 8 करोड़ से ज्यादा किसानों को लाभ पहुंचाता है.
भारतीयों को पोषण देता डेयरी उद्योग
भारत में एक बड़ी आबादी शाकाहारी है. ऐसे में प्रोटीन के लिए लोगों को दालों और दूध पर निर्भर रहना पड़ता है. साल 2010-11 में भारत का दूध उत्पादन 127 लाख मिलियन टन था जो कि साल 2019-20 में 198 लाख मिलियन तक पहुंच गया. डेयरी उद्योग के कारण ही भारतीयों का प्रति व्याक्ति दूध उपलब्धता 406 ग्राम प्रतिदिन हो गई है. वहीं दुनिया की दूध की उपलब्धता 330 ग्राम प्रतिदिन है. भारतीयों की दूध उपलब्धता दुनिया की औसत से लगभग 30 प्रतिशत ज्यादा है.
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भारत का डेयरी मॉडल अनूठा
दुनिया के मुकाबले भारत का डेयरी उद्योग का मॉडल अनूठा है. भारत का डेयरी उद्योग सहकारी मॉडल पर आधारित है जिसमें छोटे और सीमांत डेयरी किसान विशेषरुप से महिलाएं शामिल हैं. ये सब मिल्क कोआपरेटिव के बिना संभव नहीं होता. पिछले 40 सालों में मिल्क कोआपरेटिव की संख्या लगभग 15 गुना बढ़ गई. साल 80-81 में देश में मिल्क कोआपरेटिव (सहकारी) संगठनों की संख्या 13284 थी, जो कि साल 2020-21 में 196,114 हो गई है. वहीं अगर मिल्क कलेक्शन की बात की जाए तो 80-81 में रोजाना 25.62 लाख किलो ग्राम दूध कोओपरेटिव द्वारा संग्रहित किया जाता था. साल 2020-21 में ये बढ़कर 5 करोड़ 18 लाख 83 हजार किलो ग्राम प्रतिदिन हो गया है.
मिल्क कोऑपरेटिव में नंबर-1 गुजरात
राज्यवार आंकड़े खंगालने पर पता चलता है कि देश में मिल्क कोआपरेटिव द्वारा संग्रहित कुल दूध का लगभग आधा एक राज्य गुजरात से आता है. इसके बाद दूसरे नंबर पर कर्नाटक का नाम आता है जहां करीब देश का 15 प्रतिशत मिल्क कोआपरेटिव संग्रहित होता है. इसके बाद तमिलनाडू (3691 TKgPD), महाराष्ट्र (3515 TKgPD) और राजस्थान (2557 TKgPD) का स्थान आता है.
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इन पांच राज्यों से आता है देश का 50 फीसदी दूध
दूध उत्पादन में दुनिया में नंबर-1 बनाने में देश के कई राज्यों का अहम योगदान है. देश का एक तिहाई दूध का उत्पादन उत्तर प्रदेश (14.9 फीसदी) और राजस्थान (14.6 फीसदी) में होता है. इसके बाद मध्य प्रदेश (8.6 फीसदी) , गुजरात (7.6 फीसदी) और आंध्र प्रदेश (7 फीसदी) का स्थान आता है. देश का आधे से ज्यादा दूध इन्ही पांच राज्यों से आता है.
देश का 50 फीसदी दूध देती हैं भैंसे, उत्पादन में क्रॉसब्रीड गाय अव्वल
देश का करीब आधा दूध भैंस (49 फीसदी) से मिलता है, जबकि बाकी आधा क्रॉसब्रीड गाय (28 %) और देसी गाय (20%) से हासिल होता है. वहीं अगर प्रति पशु दूध उत्पादन की बात करें तो ये अभी दुनिया की औसत से काफी कम है. देश में क्रॉसब्रीड गाय सबसे ज्यादा दूध देती है. क्रॉसब्रीड गाय औसतन 8 किलो प्रतिदिन दूध देती है. वहीं भैंस 6.4 किलो प्रतिदिन औऱ देसी गाय 3.9 किलो प्रतिदिन दूध देती है.
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