डीएनए हिंदी: उद्धव ठाकरे... पिछले एक महीने में देश के सियासी गलियारों में शायद इस नाम का जिक्र सबसे ज्यादा बार किया गया हो. इसकी वजह से किसी से छिपी नहीं है. आज 27 जुलाई को उद्धव ठाकरे का जन्मदिन है. यह उनके जीवन का सबसे मुश्किल जन्मदिन भी हो सकता है. पिता बाल ठाकरे की विरासत को आगे बढ़ा रहे उद्धव ठाकरे के सामने इस समय विकट संकट खड़ा है. उनके भरोसेमंद और पार्टी के कद्दावर नेताओं ने ही न सिर्फ उनकी कुर्सी छीन ली है बल्कि इस समय वह पार्टी पर अपना कंट्रोल स्थापित करने में भी जूझ रहे हैं. इसके अलावा पार्टी का सिंबल बचाना भी उद्धव ठाकरे के लिए मुश्किल दिखाई दे रहा है.
उद्धव ने अपनाई पिता से अलग राह
साल 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले तक बहुत लोगों ने नहीं सोचा होगा कि शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे पुरानी सहयोगी भाजपा के साथ दशकों पुराने गठबंधन को तोड़कर मुख्यमंत्री बनेंगे और NCP व कांग्रेस के साथ नामुमकिन माने जाने वाला गठबंधन कर सरकार का नेतृत्व करेंगे. पिता बाला साहेब ठाकरे के आक्रामक रुख के उलट मृदु भाषी माने जाने वाले उद्धव ने नवंबर 2019 में तीन पार्टियों के गठबंधन MVA के मुखिया के तौर पर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
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उद्धव ठाकरे परिवार के पहले सदस्य थे जिन्होंने कोई सार्वजनिक पद ग्रहण किया था. उनके पिता, जिन्होंने शिवसेना की स्थापना की थी ने कभी सार्वजनिक पद ग्रहण नहीं किया था लेकिन वर्ष 1995-99 में बनी पहली शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार को "रिमोट कंट्रोल" की भांति चलाया. कुशल फोटोग्राफर उद्धव ठाकरे स्वभाव से मिलनसार हैं लेकिन 2019 के चुनाव के बाद ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री पद की मांग भाजपा के सामने रखते हुए उन्होंने अपने पिता की तरह ही आक्रामक रुख का प्रदर्शन किया था.
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मुख्यमंत्री बनने के नहीं थे इच्छुक!
उद्धव ठाकरे ने स्वयं कई बार कहा था कि महा विकास आघाडी बनने के बाद वह मुख्यमंत्री बनने के इच्छुक नहीं थे लेकिन राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने उनके शीर्ष पद की जिम्मेदारी लेने पर जोर दिया. मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ठाकरे (62 वर्षीय) की राजनीतिक पारी पिछले महीने के अंत में अचानक उस समय समाप्त हो गई जब शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे ने उनसे बगावत कर दी और पार्टी के अधिकतर विधायक बागी गुट में चले गए. बाल ठाकरे के सबसे छोटे बेटे उद्धव ठाकरे जिन्हें "दिग्गा" के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने पिता की पार्टी के कार्यों में 1990 से ही मदद करनी शुरू कर दी थी.
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उद्धव को बढ़ाने पर टूटी थी पार्टी!
उद्धव ठाकरे को 2001 में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया जबकि उनके चचेरे भाई राज ठाकरे को अधिक करिश्माई और आक्रामक नेता माना जाता था. उद्धव ठाकरे की इस पदोन्नति से अंतत: पार्टी में टूट हुई. वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यंत्री नारायण राणे ने भी राज ठाकरे का अनुकरण किया और वर्ष 2005 में शिवसेना से अलग हो गए. हालांकि, इस झटके के बावजूद शिवसेना अहम बृह्नमुंबई महानगरपालिका और ठाणे निगम चुनाव वर्ष 2002,2007, 2012 और 2017 में जीतने में सफल रही.
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बाला साहेब के निधन के बाद पार्टी को संभाला
वर्ष 2012 में जब बाल ठाकरे का निधन हुआ तो पार्टी के कई आलोचकों का कहना था कि शिवसेना समाप्त हो सकती है. लेकिन इन बातों को गलत साबित करते हुए उद्धव ठाकरे पार्टी को एकजुट रखने में सफल रहे. उन्होंने इसके साथ ही सड़क पर लड़ने वाली पार्टी की पुरानी छवि में बदलाव ला कर शिवसेना को अधिक परिपक्व राजनीति दल बनाने पर जोर दिया. उद्धव ठाकरे वन्य जीव फोटोग्राफर हैं. महाराष्ट्र के कुछ किलों की उनकी तस्वीरें दिल्ली में स्थापित नए महाराष्ट्र सदन की दीवारों पर लगी हैं. वर्ष 2014 में जब शिवसेना और भाजपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, तब उद्धव ठाकरे ने पार्टी के प्रचार की जिम्मेदारी संभाली और शिवसेना विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के बाद दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरा. हालांकि, बाद में शिवसेना ने दोबारा भाजपा से हाथ मिलाया और राज्य में सरकार बनाई.
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Uddhav Thackeray Birthday: उद्धव के जीवन का सबसे मुश्किल जन्मदिन, कैसे बचाएंगे पिता की विरासत?