डीएनए हिंदीः मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का निधन हो गया है. गिनती उन चुनिंदा नेताओं में होती है, जिन्हें जनता का भरपूर साथ मिला. पहलवानी से लेकर उनके मुख्यमंत्री बनने तक का सफर संघर्षों से भरा रहा. समाजवादी आंदोलन से उभरे नेताओं में उनका नाम काफी आगे थे. राजनीति के माहिर खिलाड़ी रहे मुलायम सिंह ने भाजपा से लेकर बसपा तक सभी के साथ गठबंधन किया. हालांकि निजी जिंदगी को लेकर भी वह चर्चा में रहे. पहली पत्नी के होते हुए भी उन्होंने गुपचुप तरीके से पार्टी की 20 साल छोटी कार्यकर्ता के साथ दूसरी शादी कर ली. इसका खुलासा कई सालों बाद हुआ. आइये एक नजर डालते हैं मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक सफर पर
उपवास रख गांववालों ने जुटाया चंदा
साल 1967 का विधानसभा चुनाव हो रहा था. इस चुनाव में मुलायम के राजनीतिक गुरु और जसवंतनगर के विधायक नत्थू सिंह ने अपनी सीट से मुलायम को मैदान में उतारने का फैसला लिया. मुलायम सिंह इस सीट से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे. मुलायम के पास प्रचार के लिए कोई संसाधान नहीं था. ऐसे में उनके दोस्त दर्शन सिंह ने उनका साथ दिया. मुलायम सिंह और दर्शन सिंह साइकिल से गांव-गांव प्रचार के लिए जाते थे. इस बीच चुनाव प्रचार के लिए एक पुरानी अंबेस्डर कार खरीदी. इस गाड़ी में ईंधन के लिए इनके पास पैसे नहीं थे. जब ईंधन की कमी हुई तो गांव के ही सोनेलाल काछी ने कहा कि उनके गांव से कोई पहली बार विधायकी का चुनाव लड़ रहा है, ऐसे में उसके लिए पैसों की कमी नहीं होने देंगे. गांव के लोगों ने फैसला लिया कि हम हफ्ते में एक दिन एक वक्त खाना खाएंगे. उससे जो अनाज बचेगा, उसे बेचकर अंबेस्डर में तेल भराएंगे. मुलायम की लड़ाई कांग्रेस के दिग्गज नेता हेमवंती नंदन बहुगुणा के शिष्य एडवोकेट लाखन सिंह से थी. मुलायम सिंह चुनाव में जीत हासिल कर सिर्फ 28 साल की उम्र में प्रदेश के सबसे के उम्र के विधायक बने.
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पहलवान से बने नेताजी
मुलायम सिंह यादव की गिनती अच्छे पहलवानों में होती थी. जसवंत नगर में एक कुश्ती के दंगल में युवा मुलायम सिंह पर विधायक नत्थू सिंह की नजर पड़ी. मुलायम ने एक पहलवान को इस कुश्ती में पलभर में चित कर दिया. इसके बाद नत्थू उनके मुरीद हो गये और अपना शागिर्द बना लिया. इसी दौरान मुलायम सिंह ने अपनी पढ़ाई को भी जारी रखा. इटावा से बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद बैचलर ऑफ टीचिंग की पढ़ाई की पूरी करने के लिए शिकोहाबाद चले गये और पढ़ाई पूरी होते ही 1965 में करहल के जैन इंटर कॉलेज में नौकरी लग गयी.
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तीन बार बने मुख्यमंत्री
21 नवंबर 1939 को मैनपुरी के सैफई में जन्मे मुलायम सिंह तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. 1967 में मुलायम सिंह यादव पहली बार विधायक और मंत्री भी बने. इसके बाद 5 दिसंबर 1989 को पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. अब तक तीन बार वह मुख्यमंत्री और केंद्र में रक्षा मंत्री रह चुके हैं. केन्द्र और उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी और वह राज्य सरकार में मंत्री बनाये गये. चौधरी चरण सिंह की पार्टी लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष बने। विधायक का चुनाव लड़े और हार गए. 1967, 74, 77, 85, 89 में वह विधानसभा के सदस्य रहे. 1982-85 में विधानपरिषद के सदस्य रहे. इसके अलावा आठ बार राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे. मुलायम सिंह ने 1992 में समजावादी पार्टी का गठन किया.
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बसपा के साथ भी बनाई सरकार
1993 में मुलायम सिंह यादव ने बसपा के साथ सरकार बनाई. जब बसपा नेता मायावती ने समर्थन वापस लिया तो गेस्ट हाऊस कांड हो गया. जगदंबिका पाल के नेतृत्व में एक दिन की सरकार बनवाने में भी मुलायम ही शिल्पी थे. इसके बाद भाजपा के सहयोग से 2003 में मुलायम ने उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई.
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20 साल छोटी साधना गुप्ता से छुपकर की शादी
औरेया की रहने वाली साधना गुप्ता समाजवादी पार्टी की कार्यकर्ता थीं. विधूना में जन्मी साधना गुप्ता की पहली शादी 1986 में फर्रुखाबाद के रहने वाले चंद्रप्रकाश गुप्ता से हुई थी. शादी के एक साल बाद 1987 में साधना ने एक बेटे को जन्म दिया, जिनका नाम प्रतीक है. पति चंद्रप्रकाश से अनबन के बाद उन्होंने पति का घर छोड़ दिया. हालांकि दोनों का आधिकारिक तौर पर तलाक 1990 में हुआ. 1980 के दशक में पहली बार साधना की मुलायम यादव से मुलाकात हुई थी. मुलायम से शादी से पहले साधना गुप्ता राजनीति में सक्रिय थीं. वह समाजवादी पार्टी में महिला कार्यकर्ता थीं लेकिन साल 2003 में जब मुलायम सिंह यादव की पहली पत्नी का निधन हुआ तो उसके कुछ दिनों बाद ही साधना गुप्ता और मुलायम सिंह ने शादी कर ली. शादी के बाद साधना गुप्ता ने राजनीति पूरी तरह से छोड़ दी. जब मुलायम सिंह साधना से शादी करके उन्हें घर लाए थे तब अखिलेश ने पिता का विरोध भी किया था.
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