डीएनए हिंदी: बिहार की राजनीति के चाणक्य कहलाने वाले नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने एक बार फिर भाजपा (BJP) नेतृत्व वाले NDA गठबंधन का साथ छोड़ दिया है. इससे पहले साल 2014 में भी नीतिश NDA का बॉय-बॉय कर चुके हैं, लेकिन 3 ही साल बाद उनकी वापसी हो गई थी.
पुराने साथियों को छोड़कर नया साथी बनाने का उनका यह इकलौता उदाहरण नहीं है, बल्कि ऐसे कई उदाहरणों के चलते ही 'सुशासन बाबू' नीतिश कुमार को कई लोग 'पलटीमार' भी कहकर पुकारते हैं. आइए आपको बताते हैं कि उन्होंने कब-कब राजनीति में पलटी मारकर सबको चौंकाया है.
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1994 में लालू से हुए अलग
साल 1994 से पहले लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और नीतीश एक साथ हुआ करते थे, लेकिन आपसी मतभेद के कारण उन्होंने 1994 में लालू यादव का साथ छोड़कर बिहार में सभी को चौंका दिया. लालू का साथ छोड़ने के बाद उन्होंने जॉर्ज फ़र्नान्डिस (George Fernandis) के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई. साल 1995 के विधानसभा चुनाव में वे अपने पूर्व सहयोगी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन उनकी बुरी तरह हार हुई.
बीजेपी से गठबंधन किया, समता पार्टी को जदयू में बदला
नीतिश कुमार ने 1996 में बीजेपी के साथ समता पार्टी का गठबंधन कर सभी को चौंका दिया, क्योंकि बिहार की राजनीति में बीजेपी एक कमजोर पार्टी मानी जाती थी. यह गठबंधन साल 2000 की चुनावी हार के बाद भी बना रहा. साल 2003 में नीतिश और शरद यादव ने समता पार्टी की जगह जनता दल यूनाइटेड नाम से नई पार्टी बना ली. इसके बाद साल 2005 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन ने राजद को हराकर शानदार जीत हासिल की.
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17 साल बाद बीजेपी का भी छोड़ा साथ
साल 2005 में जीत के बाद नीतिश कुमार ने बीजेपी के साथ गठबंधन में साल 2013 तक राज्य में सरकार चलाई, लेकिन 17 साल बाद दोनों पार्टियों का गठबंधन टूट गया. जब 2013 में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के नरेन्द्र मोदी के नाम की घोषणा की, तब नीतीश कुमार बीजेपी से अलग हो गए. अलग होने की दो वजहें बताई जाती हैं. पहली, नीतीश कुमार का नरेन्द्र मोदी के साथ वैचारिक मतभेद और दूसरी यह कि नीतीश कुमार खुद भी PM बनना चाहते थे. साल 2014 का लोकसभा चुनाव नीतीश कुमार ने बीजेपी के खिलाफ़ लड़ा, लेकिन करारी हार मिली. इसके बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और दलित समाज से आने वाले जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया.
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मांझी को अलग किया, लालू का फिर लिया साथ
बीजेपी से अलग हो चुके नीतीश कुमार ने कुछ समय बाद जीतन राम मांझी को भी अलग कर दिया. उन्होंने साल 2015 विधानसभा चुनाव में फिर से अपने पुराने सहयोगी लालू प्रसाद यादव का हाथ थामा और राजद, कांग्रेस व जदयू ने मिलकर महागठबंधन बनाया. इस विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को बीजेपी से ज्यादा सीट मिली. महागठबंधन में राजद ने ज्यादा सीट जीती थी, लेकिन लालू ने नीतीश को ही मुख्यमंत्री बनाया, जबकि अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को उन्होंने राजद कोटे से उप मुख्यमंत्री बनाया.
तेजस्वी से खटपट के बाद राजद से हाथ खींचा, बीजेपी की बांह थामी
नीतीश ने 20 महीने तक अपने पुराने दोस्त लालू के साथ गठबंधन की सरकार चलाई, लेकिन अप्रैल 2017 में तेजस्वी के साथ खटपट के बाद जुलाई 2017 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उन्होंने एक बार फिर बीजेपी की बांह थाम ली, जो राज्य में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी थी. बीजेपी ने अपने पुराने सहयोगी को समर्थन दिया और नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बन गए.
शरद यादव के साथ जदयू बनाई, बीजेपी के साथ उनसे हुए अलग
साल 2017 में नीतीश कुमार फिर से एनडीए में वापस आ गए, लेकिन इसके लिए उन्हें अपने पुराने साथी शरद यादव (Sharad Yadav) का साथ छोड़ना पड़ा. नीतीश और शरद ने मिलकर जदयू का गठन किया था. साल 2013 तक शरद यादव ही NDA के कन्वेनर भी थे, लेकिन 2017 में वे राजद के ही साथ बने रहने के पक्ष में थे. नीतिश के बीजेपी के साथ वापस आने से शरद नाराज हो गए और दोनों के रिश्ते खराब होते चले गए. ये रिश्ते बाद में इतने खराब हो गए कि शरद यादव राजद में चले गए, लेकिन उनकी राज्यसभा सदस्यता दल-बदल कानून के आधार पर चली गई.
2020 के चुनाव में बीजेपी को ज्यादा सीट
2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू बीजेपी के साथ गठबंधन में थी और चुनाव भी साथ ही लड़ी, लेकिन इस चुनाव में जेडीयू से ज्यादा सीटें बीजेपी को मिली, इसके बावजूद भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनें. इसके चलते दोनों पार्टियों में खटपट चलती ही रही है. खासतौर पर नीतिश कुमार की पार्टी के केंद्र सरकार में शामिल न होकर बाहर से समर्थन देने को भी आपसी खटपट का नतीजा माना गया. ऐसे में यह माना जा रहा था कि दोनों दल अलग हो सकते हैं. अब यह कयास सही साबित हो गया है.
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जोड़तोड़ की बदौलत 17 साल से मुख्यमंत्री बने हुए हैं नीतिश
बुधवार को इस्तीफा देने वाले नीतीश कुमार ने साल 2020 में 7वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. पहली बार वह साल 2005 में जनता दल (यूनाइटेड) का भाजपा के साथ गठबंधन होने से मुख्यमंत्री बने थे. इसके बाद से लगातार मुख्यमंत्री पद पर उन्होंने जोड़तोड़ की बदौलत अपना अधिकार बनाए रखा है. हालांकि बीच में दो बार उन्हें मामूली वक्त के लिए सिंहासन छोड़ना भी पड़ा, लेकिन हर बार अपनी जुगाड़बाजी से उन्होंने दोबारा सत्ता शीर्ष पर वापसी कर ली. ऐसे में यह देखना होगा कि अब दोबारा राजद का हाथ पकड़ने पर भी क्या वे मुख्यमंत्री पद बरकरार रख पाएंगे.
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'सुशासन बाबू' ही नहीं 'पलटीमार' भी है नीतीश कुमार का नाम, जानें किसे कब दिया राजनीतिक झटका