डीएनए हिंदीः देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (First Prime Minister Of India) ने 15 अगस्त, 1947 को दिल्ली में लालकिले के लाहौरी गेट के ऊपर तिरंगा फहराया था. देशभर में उत्साह का माहौल था. दिल्ली की सड़कों पर लोग खुशी से झूम रहे थे. लालकिले से लेकर राष्ट्रपति भवन तक लोगों का हुजूम उमड़ रहा था. कुछ ऐसा ही नजारा हर साल 15 अगस्त को देखने को मिलता है. आखिर हमें 15 अगस्त को ही आजादी क्यों मिली थी? इसके पीछे भी एक खास वजह है. 

15 अगस्त की तारीख का जापान से कनेक्शन
स्वतंत्रता दिवस के लिए आखिर 15 अगस्त की तारीख क्यों चुनी गई इसके पीछे फ्रीडम एट मिडनाइट (Freedom at Midnight) में लॉर्ड माउंटबेटन के हवाले से बताया गया कि ‘मैंने जो तारीख चुनी वो अचानक थी. मैंने यह तारीख एक सवाल के जवाब में चुना. मैं यह बताना चाहता था कि सबकुछ मेरे हाथ में है. उन्होंने जब मुझसे पूछा कि क्या मैंने कोई तारीख तय की है? तो मैं जानता था कि ये जल्दी होना चाहिए. मैंने तब तक कोई तारीख नहीं सोची थी, लेकिन मान रहा था कि ये अगस्त या सितंबर का महीना हो सकता है. इसके बाद मैंने 15 अगस्त कहा. क्योंकि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के आत्मसमर्पण करने की ये दूसरी बरसी थी.’ इसके बाद ही भारत की आजादी के बिल में 15 अगस्त की तारीख तय की गई.

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जवाहरलाल नेहरू ने दिया ऐतिहासिक भाषण
देश की आजादी के समय भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का वो पहला भाषण जो उन्होंने 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि में वायसराय लॉज ( मौजूदा राष्ट्रपति) भवन से दिया था. नेहरू से इस भाषण को पूरी दुनिया ने लाइव सुना था. नेहरू ने अपने पहले भाषण के दौरान देश को संबोधित करते हुए कहा था कि कई साल पहले हमने भाग्य को बदलने का प्रयास किया था और अब वो समय आ गया जब हम अपनी प्रतिज्ञा से मुक्त हो जाएंगे. पूरी तरह से नहीं लेकिन ये महत्वपूर्ण है. आज रात 12 बजे जब पूरी दुनिया सो रही होगी उस समय भारत स्वतंत्र जीवन के साथ नई शुरूआत करेगा.  नेहरू के भाषण ने भारत के लोगों के लिए एक नई उम्मीद की किरण जगा दी. इसी दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दिल्ली में लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था. बता दें कि इस दिन काफी कुछ ऐसा हुआ था, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. 

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बिस्मिल्लाह खां ने शहनाई बजाकर किया था आजादी का स्वागत 
देश की आजादी का उत्साह आम आदमी से लेकर हर खास में था. हर कोई इस दिन को किसी उत्सव के समय नहीं मना रहा है. जब सदियों की गुलामी के बाद आजादी मिलती है तो क्या खुशी होती है वह देशभर में सड़कों पर दिखाई दे रही थी. बिस्मिल्लाह खां ने शहनाई बजाकर आजादी की पहली सुबह का शानदार स्वागत किया था. खास बात यह भी है कि खुद जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि बिस्मिल्लाह खां इस मौके पर अपनी प्रस्तुति दें. इसके लिए तत्कालीन संयुक्त सचिव बदरुद्दीन तैयबजी को बिस्मिल्लाह खां को बुलाने का आदेश दिया गया.  

1947 तक 26 जनवरी को मनाया जाता था स्वतंत्रता दिवस
आपको जानकर थोड़ा आश्चर्य जरूर हो लेकिन ये सच है. 1930 से लेकर 1947 तक स्वतंत्रता दिवस 26 जनवरी को ही मनाया जाता था. इसका फैसला 1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन में हुआ था. यह अधिवेशन लाहौर में किया गया है. इसी अधिवेशन में पूर्व स्वराज की भी घोषणा की गई थी. 

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ज्योतिषी नहीं चाहते थे 15 अगस्त को आजाद हो देश
लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत की आजादी के लिए 15 अगस्त की तारीख तय कर दी थी. हालांकि ज्योतिषी इस तारीख को लेकर नाखुश थे. ज्‍योतिषीय गणना के अनुसार 15 अगस्‍त 1947 का दिन अशुभ और अमंगलकारी था. ऐसे में इस पर विरोध जताते हुए किसी और तारीख की मांग की गई. इसके लिए कई विकल्प भी बताए गए लेकिन  माउंटबेटन 15 अगस्‍त की तारीख पर ही अड़े रहे, ये उनके लिए खास तारीख थी. जब तारीख को लेकर कोई सहमति नहीं बनी तो बीच का रास्ता निकाला गया. 

ज्योतिषियों ने 14 और 15 अगस्‍त की मध्‍यरात्रि का समय सुझाया. ज्योतिषियों ने इसके पीछे अंग्रेजी समय का हवाला दिया. तर्क ये दिया गया कि अंग्रेजी परंपरा में रात 12 बजे के बाद नया दिन शुरू होता है. दूसरी तरफ हिंदी गणना के अनुसार नए दिन का आरंभ सूर्योदय के साथ होता है. इतना ही नहीं ज्‍योतिषी इस बात पर भी अड़े रहे कि सत्‍ता के परिवर्तन का संभाषण 48 मिनट की अवधि में संपन्‍न किया जाए हो जो कि अभिजीत मुहूर्त में आता है. ये मुहूर्त 11 बजकर 51 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 15 मिनट तक पूरे 24 मिनट तक की अवधि का था. ये भाषण 12 बजकर 39 मिनट तक दिया जाना था. इस तय समय सीमा में ही जवाहरलाल नेहरू को भाषण देना था. 

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आखिर ज्योतिषी क्यों नहीं चाहते थे 15 अगस्त को मिले आजादी?
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आखिर ज्योतिषी क्यों नहीं चाहते थे 15 अगस्त को मिले आजादी? जापान से भी जुड़ा है ये खास कनेक्शन