डीएनए हिंदी: 'एक औरत क्या ही कर सकती है!' से लेकर 'एक औरत क्या नहीं कर सकती!' तक के बीच का जो फासला है उसे तय करना एक औरत के लिए बहुत मुश्किल होता है. मेहरुनिस्सा शौकत अली ने ना सिर्फ ये फासला तय किया बल्कि दुनिया भर की औरतों के लिए एक मिसाल बन गईं. सहारनपुर जैसे छोटे शहर में एक  मुस्लिम परिवार में उनका जन्म हुआ. घर का माहौल इस बात के इर्द-गिर्द ही घूमता था कि एक औरत कर ही क्या सकती है और एक औरत को करना ही क्या है सिर्फ खाना पकाना, शादी, बच्चे और परिवार की देखभाल.

इस परिवेश से निकलकर आज मेहरुनिस्सा देश की पहली महिला बाउंसर के रूप में अपनी एक सशक्त पहचान बना चुकी हैं. छोटे शहर की लड़की सीरीज में आज जानते हैं मेहरुनिस्सा की ये दिल छू लेने वाली कहानी खुद उन्हीं की जुबानी-

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12 साल की उम्र में हो गई थी मंगनी
मेहरुनिस्सा बताती हैं, 'सहारनपुर में एक गुर्जर मुस्लिम परिवार में मेरा जन्म हुआ. एक ऐसा परिवार जहां लड़के-लड़की में काफी अंतर किया जाता है. मगर पढ़ाई का विरोध दोनों के लिए बराबर ही था. लड़कों को शुरू से ही बाहर के काम करवाने पर जोर दिया जाता था और लड़की को घर के काम सिखाने पर. किसी की भी पढ़ाई के लिए कोई कोशिश नहीं थी. पापा ने खुद लव मैरिज की थी और मम्मी हिंदू परिवार से आई थीं. शादी से पहले मम्मी पढ़ाई कर रही थीं उनकी वजह से हमारी पढ़ाई शुरू जरूर करवाई गई,लेकिन उसमें भी मुश्किलें बहुत थीं. हम चार बहनें और तीन भाई हैं. मैं तीसरे नंबर पर हूं.  शुरुआती स्कूल के बाद मुझसे बड़ी और छोटी दोनों बहनों की शादी बहुत कम उम्र में कर दी गई थी. 10 साल की उम्र में मेरी छोटी बहन की मंगनी हो गई थी और 14 साल की उम्र में वो एक बेटे की मां भी बन गई. उसके बाद मेरी शादी की तैयारी चल रही थी. 12 साल की उम्र में मेरी भी मंगनी हो गई थी. मगर जब शादी का समय आया तो मुझे टाइफाइड हो गया. बस इसी के चलते शादी रुक गई.

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मां की जिद से फिर शुरू हुई पढ़ाई
टाइफाइड के बाद जब मैं ठीक हुई तो मां ने जिद करके मेरी पढ़ाई दोबारा शुरू करवा दी. उसी दौरान पापा को अपने काम में काफी घाटा हुआ. उस वक्त मैं परिवार की मदद के लिए काम करना चाहती थी. मेरा सपना तो आर्मी में जाने का था, पर हालात ऐसे बन गए कि मुझे लगा पहले नौकरी करना जरूरी है. तब मैं दिल्ली आई अपने किसी रिश्तेदार के पास. यहां नागलोई में मैंने पहली बार एक बाउंसर को देखा और वहां नौकरी की बात की. वहां एक इवेंट के लिए मुझे बतौर बाउंसर रख लिया गया. यहां मैंने देखा कि महिला बाउंसर और पुरुष बाउंसर के बीच काफी भेदभाव होता है. महिला बाउंसर को वैसा सम्मान नहीं मिलता जैसा कि पुरुष बाउंसर को मिलता है. मैंने इन चीजों का विरोध शुरू किया. हासिल ये हुआ कि महिला बाउंसर्स को भी सम्मान दिया जाने लगा. उसके बाद एक के बाद एक कई इवेंट्स में मैंने महिला बाउंसर के तौर पर कमान संभाली. इंडियन आइडल की टीम में महिला बाउंसर के तौर पर कमान संभालने के साथ ही मैंने सोनू निगम के एक कॉन्सर्ट तक कई बड़े इवेंट्स में बाउंसर का काम किया है.

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2021 में शुरू की अपनी कंपनी
इस सबके बाद 2021 में मैंने अपनी सिक्योरिटी कंपनी शुरू की. इसका नाम रखा- मर्दानी बाउंसर. मेरी कंपनी के साथ 1500 लड़कियां जुड़ी हैं. मेरा उद्देश्य है कि लड़कियों को इस फील्ड में पूरा मान-सम्मान और नाम मिले. उन्हें सिर्फ सिक्योरिटी गार्ड ना समझा जाए. सिक्योरिटी गार्ड का काम सिर्फ चेकिंग करना होता है और आपकी सुरक्षा को लेकर सतर्क रहना होता है. बाउंसर की जिम्मेदारी इससे आगे और काफी ज्यादा होती है. बाउंसर आपके लिए ऐसा सुरक्षा घेरा तैयार करता है जिसे लांघने पर वह दूसरे व्यक्ति के खिलाफ ठोस कदम भी उठा सकता है.

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First Female Bouncer of India special interview story of Mehrunissa Shaukat Ali
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First Female Bouncer of India: सहारनपुर की वो लड़की जिसने हर पाबंदी पर मारा पंच
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