डीएनए हिन्दी: वर्तमान में पूरी दुनिया महंगाई से लड़ रही है. उसे मंदी का भय भी सता रहा है. क्या इन परिस्थितियों में भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी विकास की गति को बरकरार रख पाएगी? रोजगार के नए अवसर पैदा कर लोगों की आमदनी बढ़ाई जा सकती है? भले दुनिया में महंगाई बढ़ रही हो लेकिन भारत इस पर कंट्रोल करने में सफल रहेगा? ये तमाम सवाल उठ रहे हैं.
अभी के समय में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) लिटमस टेस्ट से गुजर रही हैं. कई मायनों में उनके लिए यह निर्णायक समय साबित होने वाला है. ग्लोबल स्लोडाउन (Global Slowdown) की आहट के बावजूद सीतारमण के पास भारतीय अर्थव्यवस्था की गति को बनाए रखने का फॉर्म्यूला है. वह कैपिटल एक्सपेंडिचर योजना (Capital Expenditure Scheme) के सहारे भारतीय विकास की कहानी को ट्रैक पर रखने की योजना बना रही हैं.
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नरेंद्र मोदी सरकार की महत्वपूर्ण कैपिटल एक्सपेंडिचर योजनाएं विकसित देशों खासकर अमेरिका के बड़े सरकारी खर्चे वाली योजनाओं की तर्ज पर है.
क्या है कैपिटल एक्सपेंडिचर
कैपिटल एक्सपेंडिचर यानी पूंजीगत व्यय सरकार द्वारा किया जाने वाला वह खर्च है जो आने वाले समय में देश की अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी साबित होता है. कैपिटल एक्सपेंडिचर का इस्तेमाल करखाने, इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट, मशीन, कंप्यूटर आदी खरीदने के लिए किया जाता है. जैसे-जैसे बिजनस का विस्तार होता है कैपिटल एक्सपेंडिचर का अर्थव्यवस्था पर मल्टिपल (गुणक) प्रभाव पड़ता है. इससे बाजार में मांग बढ़ती और अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिलती है.
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वित्त मंत्री सीतारमण और उनकी टीम को उम्मीद है कि कैपिटल एक्सपेंडिचर से सप्लाई-चेन की अड़चनें दूर होंगी और बाजार में मांग में सुधार होगा. कैपिटल एक्सपेंडिचर इकोनॉमी की प्रोडक्शन क्षमता को बढ़ा सकता है, लेकिन इसका लंबे समय में पॉजिटिव असर पड़ता है. इससे रोजगार के नए अवसर भी पैदा होते हैं. यह एक टेस्टेड रणनीति है. कई विकसित देश पहले ही इसे अपना चुके हैं.
सीतारमण और उनकी टीम पहले ही कैपिटल एक्सपेंडिचर पर भरोसा कर रही थी. इस बजट में सरकार ने इस वित्त वर्ष के लिए कैपिटल एक्सपेंडिचर के लिए 27 पर्सेंट की बढ़ोतरी की घोषणा की थी.
सीतारमण को भरोसा है कि अर्थव्यस्था में सरकारी खर्च से प्राइवेट सेक्टर का भी निवेश बढ़ेगा. एक्सप्रेसवे, लॉजिस्टिक्स पार्क, मेट्रो सिस्टम और आवास पर सरकार की खास ध्यान है. इन सरकारी कामों का ज्यादातर हिस्सा प्राइवेट कंपनियों को मिलने वााल है.
लंबे समय से सरकार का कैपिटल एक्सपेंडिचर पर उतना जोर नहीं होता था. इसमें निजी क्षेत्र को लेकर भी सरकार चिंतित रहती थी. लेकिन, अब सरकार की मानसिकता में बदलाव देखने को मिल रहा है.
पिछले वर्ष सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने कहा था कि कैपिटल एक्सपेंडिचर से विकास को बढ़ावा मिलता है. इससे बचत में वृद्धि होती है जिससे प्राइवेट इन्वेस्टमेंट में बढ़ोतरी देखने को मिलता है.
अगर ऐसा होता है तो निश्चिततौर पर कैपिटल एक्सपेंडिचर योजना भारत के विकास की नई कहानी लिखेगी.
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क्या "Slowdown" से गुज़र रहा है भारत ? FM ने की सीधी बात