-प्रकाश के रे 

साहित्य हो या सिनेमा, सेक्स और हिंसा पर आधारित कथाओं एवं तत्वों का हमेशा से बड़ा बाज़ार रहा है. अब जब इंटरनेट तथा स्मार्ट फ़ोन, टीवी और कंप्यूटर के व्यापक विस्तार से ऑनलाइन मनोरंजन की सुविधा बड़ी आबादी तक पहुंचने लगी है, तब दर्शकों का ध्यान खींचने के लिए वेब सीरिज़ में भी पुराने फ़ॉर्मुले को ख़ूब आज़माया जा रहा है. अभी देश में लगभग चार दर्ज़न ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म हैं, जो सीरिज़ और फ़िल्में दिखा रहे हैं. ओवर द टॉप (ओटीटी) कहे जानेवाले ये प्लेटफ़ॉर्म क़रीब चालीस अरब रुपए के बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की होड़ में हैं. बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप का आकलन है कि 2023 तक यह बाज़ार पाँच अरब डॉलर यानी लगभग 400 अरब रुपए जा सकता है.

ओटीटी और कोविड

कोरोना संकट के कारण लगातार लॉकडाउन की आवाजाही हो रही है. अभी भी कुछ समय तक सिनेमाघरों और सामूहिक मनोरंजन के आयोजनों को हरी झंडी मिलने की संभावना नहीं है. थिएटर शुरू भी हो जायेंगे, तो दर्शक भी कम होंगे और सीटें भी सीमित होंगी. ऐसे में ओटीटी पर फ़िल्में या सीरिज़ देखनेवालों की संख्या में स्वाभाविक तौर पर बढ़ोतरी हुई है. कई ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म अपने बैनर के तहत फ़िल्में और सीरिज़ बनवा रहे हैं.

अपराध कथाओं या अश्लीतता की अधिकता की चिंता इन प्लेटफ़ॉर्म की संख्या बढ़ने के साथ ही बढ़ रही है, पर यह भी उल्लेखनीय है कि यह बहसें नयी नहीं हैं और सिनेमा की शुरुआत के साथ इनका सिलसिला भी शुरू हुआ है. पहले भी और अब भी निर्माता-निर्देशक या तो यह तर्क देते हैं कि कहानी की ज़रूरत के कारण उन्हें सेक्स और हिंसा के दृश्य रखने पड़े हैं या यह कलात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है या सेन्सरशिप नहीं होनी चाहिए और दर्शकों को अपनी पसंद के मुताबिक चयन का अधिकार होना चाहिए.prakash key ray

ये बातें कुछ या बहुत हद तक ठीक हो सकती हैं, पर इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि दर्शकों की तुष्टि के लिए ऐसे दृश्यों को परोसा भी जाता है और इन्हें सीरीज़ या फ़िल्म को बेचने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. दूसरी बात यह भी अहम है कि मनोरंजन के इन साधनों को समाज पर बहुत असर पड़ता है. इंटरनेट, फ़ोन, टीवी और कंप्यूटर ने आपत्तिजनक सामग्री तक बच्चों और किशोरों की पहुँच को आसान बना दिया है. ऐसे मामले भी सामने आते हैं, जिनमें अपराधियों को सिनेमा से प्रेरणा मिली. तकनीक ने सामाजिकता का भी संकुचन किया है और उपभोग निरंतर वैयक्तिक होता जा रहा है. सेन्सरशिप के नियमन उदार भी होते गए हैं तथा इंटरनेट पर तो सरकार या उसके बोर्ड का बहुत अधिकार भी नहीं है. गाहे-ब-गाहे किसी कंटेंट पर बहुत बवाल मच जाता है, तो प्लेटफ़ॉर्म या सरकार की ओर से कुछ कार्रवाई होती है, पर इस प्रक्रिया के दुरुपयोग की आशंका भी होती है. निर्माताओं और प्लेटफ़ॉर्म अपनी तरफ़ से संयमित होने का दावा तो करते हैं, शायद कुछ मामलों में ऐसा होता भी होगा, लेकिन इसे आदर्श उपाय नहीं माना जा सकता है.

 

क्यों इतना हिट होती हैं क्राइम स्टोरीज़

अपराध कथाओं के प्रति आकर्षण का एक कारण मनोवैज्ञानिक भी है. हम समाज के उन अंधेरे कोनों में परदे या ख़बरों के माध्यम झाँकना चाहते हैं, जिनसे हमें डर भी लगता है और आम जीवन में उनसे हमारा सामना न के बराबर होता है. इसी तरह सेक्स भी हमारे जैसे पारंपरिक समाज में अनजाना आकर्षण है. ऐसे में इस तरह के अच्छे-बुरे सीरिज़ बनते रहेंगे. समाज का भी दायित्व बनता है कि वह अच्छे कंटेंट को सराहे और ग़लत सामग्री से परहेज़ करे. सीरिज़ तो सीरिज़, मुख्यधारा की फ़िल्मों में धड़ल्ले से ऐसे कंटेंट डाले जा रहे हैं, जो लोगों की कुंठा और ललक का फ़ायदा उठाने के लिए होते हैं.

यह भी संतोष की बात है कि इंटरनेट के जरिये बड़ी मात्रा में साफ़-सुथरा मनोरंजन भी हम तक पहुँच रहा है. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हमारे समाज में लगातार अपराध बढ़ते जा रहे हैं और क्रूरता सामान्य व्यवहार बनती जा रही है. अभद्र भाषा सार्वजनिक जीवन, मीडिया और सोशल मीडिया में ख़ूब इस्तेमाल होने लगी है. ऐसे में अवांछित, अपमानजनक और अश्लील सामग्री के लिए अकेले सीरिज़ निर्माताओं पर दोष नहीं मढ़ा जा सकता है. उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास होना चाहिए, पर बतौर समाज और नागरिक हमें भी सचेत होने की आवश्यकता है.

 

प्रकाश के रे कॉलमनिस्ट, पत्रकार हैं. अपने प्रखर विचारों के लिए प्रसिद्ध हैं. सम-सामयिक मुद्दों पर उनका लिखा पठनीय होता है. 

(यहाँ दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)

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violence and sex in web series what is future
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वेब सीरिज़ में सेक्स और वायलेंस
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