नौकरशाही को हमेशा से राजनीति और पावर रास आती रही है. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक एक लंबी कतार है जो चुनावी मैदान में नजर आ रही है.
अब बात करें तो मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर अरूप पटनायक की तो बीजू जनता दल (BJD) के टिकट पर ओडिशा के पुरी से दूसरी बार लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आज़माने वाले हैं. पटनायक का मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के संबित पात्रा से होना है.
हालांकि इससे पहले भी पटनायक चुनावी मैदान में अपना भाग्य आजमा चुके हैं. 1979 बैच के रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी ने पिछली बार भाजपा की उम्मीदवार, पूर्व IAS अधिकारी अपराजिता सारंगी के खिलाफ मैदान में थे और करीब 21,000 वोटों के अंतर से हार गए थे.
पटनायक आईपीएस रहते हुए भी काफी चर्चित अधिकारी रहे थे. 1993 में हुए मुंबई सीरियल ब्लास्ट मामले में हीरो संजय दत्त की गिरफ्तारी में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. हालांकि पटनायक पहले आईएएस या आईपीएस नहीं है जिन्होंने “खाकी से खादी की छलांग लगाई है और राजनीति में भी अपना हाथ आज़माया है.
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घर वापसी से जेल तक पहुंचाने वाले
आईपीएस अधिकारी संगरूर से सांसद सिमरनजीत सिंह मान भी आईपीएस अधिकारी थे, जिन्होंने नौकरी से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ा था और वह तीन बार संसद पहुंचे.
पंजाब की वरिष्ठ IAS अधिकारी परमपाल कौर भी अपने पद से इस्तीफा देकर राजनीति में प्रवेश करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. पूर्व IPS अधिकारी कुंवर विजय प्रताप सिंह ने अपनी नौकरी छोड़ी थी और अमृतसर नॉर्थ से आम आदमी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते भी.
हालांकि पिछले दिनों टिकट मिलने के बाद भावुक हुए पटनायक ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा था," यह मेरी घर वापसी जैसा है. यह मेरी डेस्टिनी ही है की मेरी जन्मभूमि पर मेरी वापसी हुई है. क्योंकि पुरी मेरा जन्म स्थान है."
पटनायक ने आगे कहा, " मेरी ज्यादातर ज़िंदगी ओड़िशा के बाहर बीती है, मैं खुश हूं और ये मेरे लिए संतोष की बात है कि इस उम्र में, भगवान जगन्नाथ ने मुझे कुछ करने के लिए वापस बुलाया है."
उन्होंने आगे कहा कि मैं इस लोकसभा चुनाव में मुझपर विश्वास करने के लिए मुख्यमंत्री का आभारी हूं.
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नेताओं से लेकर अपराधियों तक को जेल पहुंचाने वाले अधिकारी
अगर ऐसे ही अन्य पुलिस अधिकारियों और पुलिस आयुक्तों और आईएएस की बात करें तो ये कतार लंबी है. 90 के दशक में लालकृष्ण आडवाणी का रथ बिहार में रोकने वाले आईएएस अधिकारी तो याद ही होंगे आपको.जिन्होंने बिहार के समस्तीपुर के सर्किट हाउस में आराम कर रहे आडवाणी का दरवाजा खटखटाया और गिरफ्तार कर लिया. कुछ वर्षों बाद राज कुमार सिंह ने यूपीए ज्वाइन कर लिया और केंद्रीय मंत्री बने. 2014 में भाजपा ज्वाइन की और आरा से मैदान में उतरे और केंद्रीय मंत्री बने.
ऐसे ही एक और आईपीएस अधिकारी रहे हैं सत्पाल सिंह. सत्यपाल महाराष्ट्र कैडर से आते हैं और मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त रहे हैं और 2014 से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत से संसद सदस्य हैं. जब वो पुलिस आयुक्त थे तब उन्होंने कथित तौर पर मुंबई में 1990 में संगठित अपराध सिंडिकेट को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई थी. 2014 में जब पीएम मोदी का पहला कार्यकाल था तब उन्हें कई अहम जिम्मेदारियों दी गई थीं.
वह जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री भी बनाए गए थे. वह तब चर्चा में आए थे जब उन्होंने 2016 में कहा था कि यूपीए सरकार ने उनसे इशरत जहां मुठभेड़ मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फंसाने के लिए कहा था. सिंह की सीट कट गई है क्योंकि राष्ट्रीय लोक दल से गठबंधन के बाद बागपत सीट जयंत चौधरी को दे दी गई है.
इस सब में सबसे अधिक सफल रहे हैं 1963 बैच के अधिकारी रहे निखिल कुमार. निखिल एजीएमयूटी कैडर से अधिकारी रहे हैं और सांसद से राज्यपाल तक का सफर तय किया है. हालांकि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का सदस्य रह चुके निखिल 2004 में कांग्रेस के टिकट पर बिहार के औरंगाबाद सीट से चुनाव लड़ा और जीता भी. उसके बाद नागालैंड और केरल के राज्यपाल भी बनाए गए.
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Lok Sabha Elections 2024: IAS से लेकर IPS तक पावर को रास आती है राजनीति