डीएनए हिंदी: भारत दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश ही नहीं है, बल्कि यहां दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क भी मौजूद है. लगभग 54 लाख किलोमीटर एरिया को कवर करने वाले इस सड़क नेटवर्क में 26,51,000 स्टेट और नेशनल हाईवे शामिल हैं. आपको बता दें की भारत की आजादी के 75 साल बाद भी, लगभग 90% यात्री और औद्योगिक परिवहन सड़कों के माध्यम से ही आवाजाही करते है.
भारत अभी तक रेलवे और हवाई परिवहन पर ज़्यादा निर्भर नहीं हो पाया है. इसकी वजह से भारत के प्रमुख शहरों की सड़कों पर लगभग हर रोज़ भारी ट्रैफिक देखने को मिलता है. सबसे शॉकिंग फैक्ट ये है कि इस भारी ट्रैफिक और रोजमर्रा के जाम के कारण महानगरों में रहने वाले लोग रोजाना अपनी डेली लाइफ का 7% हिस्सा ट्रैफिक में ही गुजारते हैं.
भारतीय प्रति किलोमीटर लगभग 3 मिनट का समय ट्रैफिक में गुजरता है
टॉमटॉम के आंकड़ों के अनुसार, भारत यातायात की भीड़भाड़ से दुनिया में सबसे ज्यादा प्रभावित देश है. दुनिया के 10 सबसे भीड़भाड़ वाले शहरों में से 4 भारत में हैं, जिनमें बेंगलुरु (Bangluru), दिल्ली (Delhi), मुंबई (Mumbai) और पुणे (Pune) शामिल हैं. ट्रैफिक जाम में औसतन एक मुंबईकर अपनी ज़िन्दगी के 209 घंटे सालाना गंवाता है. वहीं, पुणे में 59% ट्रैफिक जाम पीक ऑवर में होता है.
बात करें देश की राजधानी दिल्ली की तो यहां भी 56% लोग पीक ऑवर में ट्रैफिक का सामना करते है. वहीं, भारत में ट्रैफिक जाम की सबसे ख़राब स्थिति बेंगलुरु में है. ट्रेवल टाइम रिपोर्ट के मुताबिक, शहर की सड़कों पर गाड़ियों की भीड़ के कारण आम बंगलोरियन औसतन 243 घंटे (10 दिन, 3 घंटे) के बराबर समय सालाना सड़क पर बर्बाद करता है. आंकड़ों की मानें तो औसतन भारतीय अपने दिन का 7% हिस्सा कार्यालय आने-जाने के दौरान ट्रैफिक में बिताते हैं. इस हिसाब से देखा जाए तो महानगरों में रहने वाले ज्यादातर भारतीय पीक ऑवर में प्रति किलोमीटर लगभग 3 मिनट का समय ट्रैफिक में गुज़ारते हैं.
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पीक ऑवर में होता है भारत में सबसे ज़्यादा ट्रैफिक
भारत की सड़कों पर खासकर शहरों में पीक ऑवर में सबसे ज्यादा ट्रैफिक देखने को मिलता है. पीक ऑवर यानी वो समय जिसमें ज़्यादातर गाड़ियां सड़क पर होती हैं. आम तौर पर ये समय ऑफिस और स्कूल-कॉलेज जाने-आने का होता है. ऐसी स्थितियों में सड़कों की गुणवत्ता को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि अधिकांश सड़कें साल भर अत्यधिक व्यस्त रहती हैं. वहीं, मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में लगातार बढ़ रही जनसंख्या भी मौजूदा सार्वजनिक परिवहन बुनियादी ढांचे पर एक बड़ा दबाव डालती है, जिससे इसकी गुणवत्ता पर भी भारी असर पड़ रहा है.
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निजी वाहनों के कारण भारत में भारी ट्रैफिक
अधिकांश भारतीय शहरों में अभी भी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था खराब है. मुंबई और दिल्ली को छोड़कर जो भी बड़े शहर हैं, वहां ज़्यादातर लोग निजी वाहनों पर ही निर्भर हैं. निजी वाहनों के कारण वर्किंग डेज में शहरी सड़कें अत्यधिक भीड़भाड़ से भरी रहती हैं.
वहीं, इतना अधिक उपयोग सड़कों की गुणवत्ता को तेजी से कम करता है . जिसकी वजह से भारत में सड़कों के विस्तार से ज़्यादा अधिकांश इनके रखरखाव पर खर्च किया जाता है. यह एक ऐसी समस्या है, जो यातायात के लिए नई सड़कों के विकास की गुंजाइश कम कर देती है.
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ट्रैफिक जाम से प्रदूषण भी बनता है बड़ी समस्या
ट्रैफिक जाम की वजह से न सिर्फ जाम की समस्या पैदा होती है, बल्कि कई अन्य समस्याएं भी पैदा होती हैं. वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण दो प्रमुख मुद्दे हैं. दिल्ली और भारत के अन्य महानगरों में बढ़ता प्रदूषण पूरे देश के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है. यह न केवल उन लोगों को प्रभावित करता है, जो वास्तव में गाड़ी चला रहे हैं बल्कि उन लोगों को भी प्रभावित करते हैं, जो घर के अंदर रह रहे हैं. ये समस्या वरिष्ठ नागरिकों और बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए बड़ी समस्या पैदा कर रहे हैं.
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क्या है ट्रैफिक जाम की समस्या से निपटने के विकल्प
बढ़ते ट्रैफिक को कम करने के लिए कुछ सालो में दिल्ली सरकार द्वारा समय समय पर ऑड-इवन स्कीम ने दुनिया भर में काफी तारीफ बटोरी है. दिल्ली सरकार को कई नेशनल और इंटरनेशनल मंच पर इसके लिए सराहना तो मिली है पर ये परमानेंट सोल्युशन नहीं है.
दुनिया भर में ट्रैफिक समस्या को कम करने के लिए कई नए तरीके इस्तेमाल में लाए जा रहे हैं. विशेषज्ञों और आर्किटेक्ट्स द्वारा सुझाए गए कई नए दिलचस्प समाधान हैं ,और भारत सरकार इन समाधानों पर विचार भी कर रही है. WEF के अनुसार, आने वाले समय में दुनिया भर के कई शहर अपने परिवहन प्रणालियों में सुधार के लिए समाधान के रूप में समय के मुताबिक रोड टैक्स लगाने पर विचार कर रहे हैं.
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कहां लागू है कंजेशन चार्ज की व्यवस्था
न्यूयॉर्क (Newyork) शहर सड़क यातायात को कम करने के लिए अगले साल से एक दिन में 23 डॉलर तक का ट्रैफिक कंजेशन चार्ज लगाने की योजना बना रहा है. इस व्यवस्था के लागू होने के बाद न्यूयॉर्क में यात्री वाहन चालक को पीक समय में सड़क पर चलने के लिए 9 से 23 डॉलर तक के चार्ज का भुगतान करना पड़ सकता है, जबकि रात भर के लिए टोल 5 डॉलर जितना कम हो सकता है. वहीं, लंदन में भीड़भाड़ का शुल्क प्रतिदिन 15 पाउंड है. दूसरी ओर, सिंगापुर में एक ड्राइवर को कंजेशन चार्ज के रूप में प्रतिदिन 1.30 डॉलर का भुगतान करना पड़ता है.
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क्या भारत को भी कंजेशन शुल्क लागू करना चाहिए?
दिल्ली सरकार ने 2020 में दिल्ली से राइड-हेलिंग सेवाओं की सभी यात्राओं पर एक भीड़ शुल्क लगाने की योजना बनाई थी. इसका ज़िक्र दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने दिल्ली इलेक्ट्रिक वाहन नीति 2020 की घोषणा करते वक़्त किया था.
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क्या हैं दूसरे विकल्प?
मूल रूप से जब राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) और महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPCB) जैसी एजेंसियों ने मुंबई में भीड़ कर लगाने का सुझाव दिया है. वहीं, बेंगलुरु ट्रैफिक पुलिस ने ट्रैफिक जंक्शनों पर प्रतीक्षा समय को कम करने के लिए Google के साथ साझेदारी की है. इसके मुताबिक, शहर में पीक ऑवर में गूगल मैप्स लाइव रोड क्लोजर दिखाएगा और वैकल्पिक सड़कों का भी सुझाव देगा, जिन पर ट्रैफिक को पीक ऑवर में डायवर्ट किया जा सकता है.
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क्या सही होगा कंजेशन चार्ज का विकल्प
क्या भारत को नए विकल्प लागू करने चाहिए? हालांकि, भारत में कहीं भी कंजेशन चार्ज नहीं है, लेकिन वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम (World Economic Forum) के अनुसार, जिन शहरों ने भीड़भाड़ शुल्क लागू किया है, उनमें सड़क यातायात के कारण होने वाले प्रदूषण में गिरावट देखी गई है. वहीं, दूसरी तरफ कंजेशन चार्ज की वसूली से मिलने वाले टैक्स से सड़क के रखरखाव में भी आसानी हो जाती है.
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