डीएनए हिंदी: एक लड़की होना. फिर इतने बड़े देश के एक छोटे से शहर में जन्म लेना. फिर फिर माता-पिता की एक साथ असमय सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो जाना. जीवन के संघर्ष की कहानी में जब ये तीन तथ्य एक साथ जुड़ जाएं तो जीवन जीने के बारे में सोचना भी मुश्किल लगने लगता है. मगर हमारी सीरीज 'छोड़े शहर की लड़की'से जुड़ी हर कहानी सोच को बदलती हुई नजर आती है. ऐसी ही कहानी है बिहार के कटिहार में पैदा हुई रुचिश्री की.
सड़का दुर्घटना में माता-पिता की मौत
सन् 1984 में बिहार के कटिहार जिले में रूचि श्री का जन्म हुआ. पिता बिहार शिक्षा सेवा में कार्यरत थे. कटिहार के हरिशंकर नायक हाई स्कूल से 1999 में रूचि ने मैट्रिक पास की. फिर साइंस विषयों के साथ 12वीं की पढ़ाई पूर्णिया महिला कॉलेज से शुरू हुई.इसी दौरान सन् 2000 में एक सड़क दुर्घटना में एक ही साथ माता पिता का निधन हो गया. उस वक्त रुचि की उम्र सिर्फ 16 साल थी. इस दुर्घटना के दौरान रुचि को सिर में गहरी चोट लगी. इस घटना के बारे में बताते हुए रुचि का भावनाओं पर काबू नहीं रहता.
मगर इसी के साथ जिंदगी और मौत के बीच चली उनकी खुद की लड़ाई में जीत का श्रेय वह सिलीगुड़ी के न्यूरोसर्जन डॉ.चांग को देना नहीं भूलती हैं. बताती हैं, 'तीन भाई बहनों में मैं सबसे बड़ी थी. छोटे भाई और और बहन की जिम्मेदारी मुझे ही निभानी थी. इस सबमें मामा ने बहुत मदद की. उन्होंने पढ़ाई के लिए दिल्ली भी भेजा.
दो दशक दिल्ली में
दिल्ली में रुचि का सफर पढ़ाई से शुरू हुआ और यहां बतौर अध्यापक पढ़ाने तक जारी रहा. बताती हैं, ' JNU, दिल्ली के सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज से 2004 से 2014 तक एम.ए, एम.फिल और पीएचडी की पढ़ाई की. शोध का विषय 'पानी की राजनीति के विभिन्न आयाम' रहा. इस बीच 2010 में ही दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामलाल आनंद कॉलेज में अतिथि प्राध्यापक के तौर पर पढ़ाना शुरू किया. इसके बाद सन् 2012 में ही रुचि की शादी हुई और उनकी एक सात साल की बेटी भी है. 2019 में बिहार में BPSC द्वारा चयन हुआ और भागलपुर में स्नातकोत्तर राजनीति विज्ञान विभाग में ज्वॉइन किया.'
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भागलपुर से लंदन का सफर
इन दिनों रुचि भागलपुर तिलकमांझी यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. हाल ही में उन्हें लंदन यूनिवर्सिटी से रिसर्च फेलोशिप भी मिली है.इसके बारे में बताती हैं, ' साल 2006 में छत्तीसगढ़ की शिवनाथ नदी के 22.6 किमी. हिस्से के निजीकरण की खबर पर रिसर्च कर रही थी.तभी एक सवाल मन में कौंधा कि आखिर नदियां क्या हैं? क्या सिर्फ पानी का स्रोत या जीवित इकाई? राज्य की संपत्ति या किसी की निजी बपौती? तभी बिहार में चंपा नदीं के पुनरुत्थान अभियान ने मेरा ध्यान खींचा. इसी के बाद मेरा शोध विषय तैयार हुआ. मैं नदियों को लेकर कानून और उनके अस्तित्व पर मंडराते खतरों पर शोध कर रही हूं.
इसके लिए यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन जो फेलोशिप मिली है, उससे काफी मदद होगी.' बता दें कि इस फेलोशिप के लिए दुनिया भर से करीब 4000 आवेदन आए थे. इनमें से 200 को चुना गया. भारत से चुने गए लोगों में रुचि का नाम शामिल है.
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