डीएनए हिंदी. महाकवि और मशहूर गीतकार गोपालदास नीरज का आज जन्मदिन (Gopaldas Neeraj's Birthday) है. वह आज होते तो हम सब उनका 96वां जन्मदिन मना रहे होते. 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में उनका जन्म हुआ था मगर उनकी जिंदगी का ज्यादातर समय अलीगढ़ में बीता. जिंदगी कई उतार-चढ़ावों से गुजरी. टाइपिस्ट की नौकरी से लेकर बतौर क्लर्क काम करने तक उन्होंने अपनी अजीविका के लिए भी कई तरह के काम किए. आखिर में उन्होंने अपनी कविताओं के जरिए जो नाम और उपलब्धि हासिल की वह बेमिसाल रही.
गोपालदास नीरज ने राजनीति की दुनिया में भी कदम रखा और एक वक्त ऐसा भी आया जब उनका राजनीति से लेकर नेताओं तक सबसे मोह भंग हो गया. गोपालदास नीरज के बेटे शशांक प्रभाकर ने उनसे जुड़े कुछ ऐसे किस्से और बातें बताईं, जिनके बारे में ज्यादा लोगों को मालूम नहीं है.
कई साल तक नहीं दिया वोट
शशांक बताते हैं, ' ये बात ज्यादा लोग नहीं जानते होंगे कि पिता जी ने बीते कई सालों से वोट देना छोड़ दिया था. उनका राजनीतिक बहसों औऱ नेताओं से ऐसा मोहभंग हुआ था कि वह वोट डालने को भी वक्त की बर्बादी कहने लगे थे.' एक समय ऐसा भी था जब नीरज ने कानपुर से निर्दलीय चुनाव भी लड़ा था. सन् 1967 की बात है जब गोपालदास नीरज कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ने वाले थे मगर उन्हें टिकट नहीं मिला. उस वक्त उन्होंने निर्दलीय ही पर्चा भर दिया था. हालांकि उस वक्त वह चुनाव हार गए थे.
नेता जी ने दी थी कभी राजनीति पार्टी से ना जुड़ने की सलाह
उत्तर प्रदेश में जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी तब नेता जी मुलायम सिंह यादव ने गोपाल दास नीरज को खूब सम्मान देने के साथ ही राज्यमंत्री का दर्जा भी दिया. उनके बेटे शशांक कहते हैं, पिता जी ने उस वक्त कृतज्ञता में नेता जी से कहा था कि मैं पार्टी ज्वॉइन करना चाहता हूं. उस वक्त खुद नेता जी ने पिता जी से कहा था - 'आप हमारी ही नहीं कभी भी कोई भी राजनीतिक पार्टी ज्वॉइन मत करिएगा. आप जब किसी भी राजनीतिक दल का चेहरा बन जाओगे तो आपकी छवि उसी के साथ जुड़ जाएगी. हम नहीं चाहते कि ऐसा हो. आप साहित्य और कविता का चेहरा हो. आप वही बने रहो.'
राजनीतिक बहसों से रहते थे दुखी
शशांक बताते हैं कि पिता जी अपने आखिरी समय में राजनीतिक पार्टियों की विचारधारा से भी काफी दुखी रहते थे. नेताओं की भाषा और एक-दूसरे की छिछालेदार करने की प्रवृत्ति को लेकर उनका नेताओं और पार्टियों से भरोसा भी उठ गया था. उनका मानना था कि मैं 80 बरस का हूं. ऐसी राजनीतिक पार्टियों से जुड़कर य़ा उन्हें वोट देकर मैं उन्हें क्यों बढ़ावा दूं?' वह सीधे तौर पर कहते थे कि आज के नेता इस लायक नहीं रह गए हैं कि उन्हें वोट दिया जाए.
कांग्रेस से नाखुश भी रहे, नेहरू जी की तारीफ भी कीं.
राजनीतिक विचारधारा की बात करें तो गोपाल दास नीरज भारत, उसकी प्रगति, उसके संस्कारों-संस्कृति की बात करने वाली हर पार्टी से जुड़े हुए थे. वह समाजवादी आंदोलन से भी जुड़े थे. वह बीजेपी की राष्ट्रीयता की भी प्रशंसा करते थे. कांग्रेस की मुखालफत भी करते थे लेकिन नेहरू जी को वह बहुत पसंद भी करते थे. उन्होंने जेपी आंदोलन का समर्थन किया और इमरजेंसी के दौर में इंदिरा जी के लिए कविता भी लिखी थी- बच ना पाएगी इंदिरा भी जयप्रकाश के नारों से. यही नहीं पद्मभूषण सम्मानित कवि गोपालदास नीरज ने राजनेताओं द्वारा अमर्यादित बयानबाजी से दुखी होकर अगस्त 2016 में भी एक कविता के जरिए अपना संदेश नेताओं तक पहुंचाया था. ये कविता थी- 'अब उजालों को यहां वनवास ही लेना पड़ेगा, सूर्य के बेटे अंधेरों का समर्थन कर रहे हैं.'
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