- धीरेंद्र अस्थाना
राज नर्तकी,नगरवधु घोषित होने के बाद अम्बपाली ने इस उपाधि उर्फ पराधीन गौरव को स्वीकार करने से पूर्व जो शर्तनामा उर्फ घोषणापत्र अपनी निर्भीक आवाज में सार्वजनिक किया वह अम्बपाली मात्र का नहीं, समस्त स्त्री वर्ग का प्रातिनिधिक हस्ताक्षर बन वैशाली की दिशाओं में इस तरह गूंजा कि सभागार ही नहीं वन प्रांतर तक सिहर उठा.यह गर्जना ही इस उपन्यास का परचम और प्राण है.
मैं इतिहास का ज्ञाता तो क्या छात्र भी नहीं रहा. इसलिए मैं इस बात पर चकित हूं कि ऐसी कितनी अनिंद्य सुन्दरी थी अम्बपाली कि मगध सम्राट बिंबिसार को उससे याचक की तरह प्रेम निवेदन करना पड़ा या इस लिच्छवी कन्या की एक झलक भर के लिए वैशाली गणराज्य के धन बल संपन्न पुरुष प्रेम विपन्न जैसी स्थिति में अभागों की तरह अवाक खड़े अम्बपाली को विजेता की तरह अपना मान मर्दन कर रथारूढ़ हो जाते देखते रहे. इस जिज्ञासा के जवाब में पेज एक सौ सत्ताईस इस शीर्षक के साथ खुलता है-- वैशाली की स्त्रियों में इतना साहस और विश्वास कहां से आता है? अर्थात यह उपन्यास अपने भीतर से उठते प्रश्नों का समाधान भी स्वयं जुटा देता है.
उपन्यास का प्रधान चरित्र अम्बपाली नहीं वैशाली गणराज्य है
दो सौ नब्बे पेज का उपन्यास "अम्बपाली " मैं तीन दिन की सिटिंग में पढ़ता चला गया, इसके बावजूद कि मोटे उपन्यास पढ़ने से मैं बचता रहा हूं.पूरा उपन्यास पढ़ने के बाद यह सूत्र हाथ आया कि उपन्यास का प्रधान चरित्र अम्बपाली नहीं वैशाली गणराज्य है. अम्बपाली तो उस गणराज्य में घटित हो रही है.इस उपन्यास की पठनीयता ऐंद्रजालिक रूप से सम्मोहक है.यह स्त्री विमर्श और स्वाधीनता का वह परचम है जो ढाई हजार साल पहले वैशाली गणराज्य में लहरा दिया गया था--" बदलना होगा सबको,संघ को, सामंतों को, राजाओं को, संविधान को, पवित्र पुस्तक को, संशोधन समय की मांग है और अब इसका सही समय आ गया है."
एक अद्भुत प्रेम कहानी है
यह एक अद्भुत प्रेम कहानी भी है. लेकिन इसमें कामनाओं के मकबरे जहां तहां मौजूद हो कर एक श्मशानी वैराग्य खड़ा कर देते हैं. गीताश्री ने अम्बपाली के माध्यम से प्रेम के दुर्लभ सौंदर्य और दुर्भाग्य की हृदयविदारक पटकथा लिखी है.अंत में इतना ही कि यह उपन्यास प्रेम का स्वर्ग और नरक तो है ही, उससे मुक्त होने का मंत्र भी है. जो किताबें अल्मारियों में बची रह जाएंगी, उनमें अम्बपाली भी इठलाती हुई रहेगी.
अम्बपाली - एक उत्तरगाथा
लेखिका : गीताश्री
वाणी प्रकाशन
(धीरेंद्र अस्थाना वरिष्ठ लेखक हैं. उनकी लिखी कहानियों को मील का पत्थर माना जाता है)
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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