डीएनए हिंदी : ठीक-ठीक नहीं याद शब्दों के उस जादूगर से पहली मुलाक़ात कब हुई थी. कोई भूतों का किस्सा था. कसौली के एक स्कूल की कोई कहानी थी या मसूरी की उड़ती हवा. इतना सोचते हुए दूरदर्शन के किस्सों का रस्टी साक्षात प्रकट हो जाता है. बात भारत के अपने बॉन्ड, रस्किन बॉन्ड की हो रही है. भारतीय किस्सागोई को नया आयाम देने वाले रस्किन बॉन्ड हमेशा ख़ुद भी किस्सों का हिस्सा ही रहे. 19 मई को भारत के यह अपने कहानीकार बॉन्ड 88 साल के हो रहे हैं.
एंग्लो इंडियन हैं रस्किन बॉन्ड
रॉयल एयर फ़ोर्स में अफसर पिता ऑब्रे बॉन्ड थे. जब रस्किन आठ साल के थे, मां और पिता अलग हो गए थे. दोनों के अलग होने के बाद रस्किन को शिमला के बिशप कॉटन स्कूल भेज दिया गया. वहीं दस साल की उम्र में उन्हें मालूम हुआ कि पिता द्वितीय विश्व युद्ध में मारे गए. यह छोटे रस्किन के लिए झटका था. बाद में रस्किन को उनकी मां और उनके सौतले पिता हरी ने देहरादून में पाला.
देहरादून में बीते कैशोर्य को रस्किन बॉन्ड ने कुछ हद तक अपने पहले उपन्यास 'द रूम ऑन द रूफ' में भी दर्ज किया है. सेमी ऑटोबायोग्राफिकल माने जाने वाले इस नॉवेल में रस्किन 16/17 के एंग्लो इंडियन अनाथ लड़के रस्टी के देहरादून में बीते जीवन की दास्तान लिखते हैं. यह उपन्यास उनके लेखन के सुन्दर सफर की शुरुआत थी. आने वाले सालों में बॉन्ड बस लिखते गए.
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कई फ़िल्म और सीरियल उनके किस्सों पर बनी हैं
बॉन्ड के किस्सों के बारे में ख़ास बात यह है कि वे हमेशा हक़ीक़त और कल्पना की दरमियानी के बीच घूमते रहे हैं. हिमालय की तराइयों में बनी गई उनकी कहानियां बेहद पुख्ता ढंग से अपने सच होने का आभास करवाती हैं, साथ लेखक के समर्थ कल्पनाबोध का अहसास भी जल्द ही करवा देती हैं. उनके किस्सों के इस तत्व ने बॉलीवुड के फिल्मकारों को भी ख़ूब आकर्षित किया है. दो मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल और विशाल भारद्वाज उनकी किताबों पर कहानियों पर बेहद शानदार फ़िल्में बना चुके हैं.
उनकी किताब सुजैना'स सेवन हसबैंड पर विशाल भारद्वाज ने सात खून माफ़ फिल्म बनाई थी, वहीं श्याम बेनेगल ने द फ्लाइट ऑफ़ पिजन पर जुनून फिल्म बनाई. उनकी किताब पर ही बनी बच्चों की फिल्म ब्लू अम्ब्रेला को राष्ट्रीय पुरुस्कार भी मिल चुका है.
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