सर्दियाँ ख़ूब ज़ोर-शोर से आ गयी हैं. सर्दियों के आने के साथ पूरे उत्तर भारत में ठंडी बयार चलने लगती है. आलम सबसे ठंडा होता है पहाड़ों में. अपने प्राकृतिक सौन्दर्य की ख़ातिर भारत का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में यह मौसम कैसा होता होगा? कोई अनुमान ? कश्मीर में ठण्ड बेहद अधिक पड़ता है और भीषण ठण्ड के इस मौसम को चिल्ले कलां कहा जाता है.
कब से कब तक होता है चिल्ले कलां -
कश्मीर में 21 दिसम्बर 29 जनवरी तक कश्मीर का मौसम बेइन्तहा ठंडा होता है. चालीस दिनों के इस वक़्त को ही चिल्ले कलां कहा जाता है. सबसे अधिक बर्फ भी इसी मौसम में पड़ती है. इस दौरान अक्सर तापमान शून्य से भी कम रहता है. इस दौरान पड़ने वाली बर्फ जम जाती है और लम्बे समय तक बनी रहती है. इस दौरान पड़ने वाली बर्फ घाटी के ग्लेशियरों में भी इज़ाफ़ा करती है. घाटी की प्रसिद्ध डल झील इस दौरान जम जाती है. चिल्ले कलां के बाद होने वाली बर्फ़बारी अधिक समय तक नहीं टिकती.
कहाँ से आया है यह शब्द
चिल्ले कलां फ़ारसी शब्द फ़ारसी भाषा से आया हुआ है, जिसका अर्थ होता है ‘बेहद ठंडा.’
चिल्ले कलां का आम जन-जीवन पर प्रभाव
चिल्ले कलां आम कश्मीरी जीवन को काफ़ी प्रभावित करता है. इस दरमियाँ ठण्ड से छुटकारा पाने के लिए परमपरागत कश्मीरी पोशाक फेरन पहनी जाती है. उन की बनी यह पोशाक काफ़ी हद तक ठण्ड दूर करने में सक्षम होती है. कांगड़ी का इस्तेमाल आम हो जाता. यह मिट्टी की बनी हांडी होती है, जिसमें जलते कोयलों को रखकर तापा जाता है. इस भीषण ठण्ड के मौसम की शुरुआत को स्थानीय व्यंजन हरीसा खाकर उत्सवी रंग दिया जाता है.
21 दिसम्बर को विश्व फेरन दिवस भी मनाया जाता है. कश्मीर की ठण्ड का वास्तविक रूप और बर्फ़बारी देखने के लिए इस दौरान कई टूरिस्ट घाटी की ओर रुख करते हैं.
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