डीएनए हिंदी: असम की माघ बिहू त्योहार के दौरान भैंस लड़ाने की पारंपरिक प्रथा रही है. यह काफी हद तक जलीकट्टू प्रथा की तरह होती है, जिस पर गुवाहाटी हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है. पीपुल्स फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) ने इस प्रथा पर रोक लगाने के संबंध में गुवाहाटी हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. हाई कोर्ट ने इस प्रथा पर अस्थाई प्रतिबंध लगा दिया है. इस प्रथा को असम में 'मोह-जु' भी कहा जाता है.
गुवाहाटी हाई कोर्ट के इस फैसले की वजह से अब पूरे असम में भैंसों की लड़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया है. हाई कोर्ट ने असम के सभी जिला प्रशासकों को भैंसों की लड़ाई पर अस्थायी प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया है. यह असम की बिहू परंपरा का हिस्सा रहा है.
जलीकट्टू के फैसले का है असर?
जनवरी में भोगाली बिहू उत्सव के दौरान, असम में भैंसों की लड़ाई आयोजित की जाती है. साल 2015 में तमिलनाडु के जल्लीकट्टू को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गैरकानूनी घोषित किए जाने के बाद असम में इसे रोक दिया गया था. हाई कोर्ट ने असम सरकार को इस मुद्दे के संबंध में एक कार्रवाई रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत करने का आदेश दिया. कोर्ट ने 6 फरवरी तक रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है.
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क्यों हाई कोर्ट ने लगाई है रोक?
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली असम सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले के बाद राज्य में भैंसों की लड़ाई की अनुमति देने के लिए एक प्रक्रिया तय की थी. पेटा ने अपनी याचिका में कहा कि इस खेल को आयोजित करने के दौरान प्रक्रिया का जरा भी ख्याल नहीं रखा गया. यह पशुओं पर क्रूरता है.
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पेटा ने याचिका में भैंसों की लड़ाई पर कई रिपोर्ट का जिक्र किया है. याचिका में कहा गया है कि घायल भैंसों को भी पीट-पीटकर लड़ने के लिए मजबूर किया गया था. भैंसों को भूखा और नशे में धुत्त करके उन्हें लड़ाया गया था. बिना कुछ खाए-पीए भैंसो पर क्रूरता बरती गई, उन्हें जबरन लड़ाया. इसी वजह से भैंसों की लड़ाई पर रोक लगाई गई है.
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असम में भैंसों की लड़ाई पर हाई कोर्ट ने लगाई रोक,वजह क्या है