डीएनए हिंदी: सोमवार को महिंदा राजपक्षे के घर में प्रदर्शनकारियों ने आग लगा दी थी. अब तक मिली खबर के अनुसार, नाराज प्रदर्शनकारियों का हुजूम सड़कों पर उतरा है और लगातार हिंसक प्रदर्शन और आगजनी की घटनाएं हो रही हैं. सरकार और राजपक्षे परिवार के खिलाफ लोगों का असंतोष महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे के बाद भी नहीं कम हुआ है. समझें इस आक्रोश के पीछे की पूरी कहानी.
महिंदा राजपक्षे ने दिया इस्तीफा
दो करोड़ बीस लाख की आबादी वाला श्रीलंका वित्तीय और राजनीतिक संकट से जूझ रहा है. प्रदर्शनकारी कर्फ्यू के विरोध में सड़कों पर उतर रहे हैं. और सरकार के मंत्री सामूहिक इस्तीफे दे रहे हैं. महिंदा राजपक्षे भी इस्तीफा दे चुके हैं. इसके बाद भी लोगों का गुस्सा अब तक कम नहीं हुआ है.
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राजपक्षे सरकार की नीतियों को लेकर लोगों में गुस्सा
श्रीलंका की मौजूदा खराब आर्थिक हालात के लिए बहुत से लोग राजपक्षे परिवार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. पिछले 2 दशक में ज्यादातर वक्त तक राजपक्षे परिवार का श्रीलंका की राजनीति में वर्चस्व रहा है. कुछ महीने तक देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री तीनों प्रमुख पद पर राजपक्षे परिवार के 3 भाई थे. विपक्षी दलों के साथ ज्यादातर लोगों की भी राय है कि सत्ता में अपने वर्चस्व के लिए इस परिवार ने गलत नीतियों को बढ़ाया, भाई-भतीजावाद की वजह से भ्रष्टाचार चरम पर पहुंचा और गलत आर्थिक नीतियों ने देश को बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया है.
सरकार में रहते राजपक्षे ने लिए कई गलत फैसले
पिछले एक दशक के दौरान श्रीलंकाई सरकार ने सार्वजनिक सेवाओं के लिए विदेशों से बड़ी रकम कर्ज के रूप में ली थी. बढ़ते कर्ज के अलावा कई दूसरी चीज़ों ने भी देश की अर्थव्यवस्था पर चोट की है. अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने करों में कटौती की कोशिश की थी. यह नीति पूरी तरह से नाकाम हो गई. सरकार के राजस्व पर बुरा असर पड़ा. इसके चलते रेटिंग एजेंसियों ने श्रीलंका को लगभग डिफ़ॉल्ट स्तर पर डाउनग्रेड कर दिया, जिसका मतलब कि देश ने विदेशी बाज़ारों तक पहुंच खो दी. चीन के साथ संबंधों को प्रमुखता देने की वजह से श्रीलंका की विदेश नीति भी चीन परस्त लगने लगी थी. इस वजह से वैश्विक मंचों पर भी श्रीलंका की छवि धूमिल हुई. चीन के कर्ज के मकड़जाल में फंसकर श्रीलंका की स्थिति आज बेहाल हो चुकी है.
सिंहली बौद्ध राष्ट्रवाद ने बढ़ाया असंतोष
राजपक्षे परिवार के शासनकाल में भी लिट्टे संगठन पूरी तरह से खत्म हुआ है. हालांकि, महिंदा राजपक्षे पर सिंहली बौद्ध राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया जाता है. पिछले 2 दशक में उनकी नीतियां खास तौर पर सिंहली बौद्ध राष्ट्रवाद की ओर झुकी रही हैं. इस वजह से देश के तमिल और मुस्लिम अल्पसंख्यकों में असुरक्षा और अलगाव की भावना बढ़ने लगी थी. आतंकी हमलों के बाद देश भर में बुर्का, हिजाब पर प्रतिबंध के साथ कई कठोर नियम लागू किए गए थे. इन कारणों से भी देश के अंदर असंतोष भड़का था.
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प्राकृतिक आपदाओं ने भी बिगाड़ी स्थिति
साल 2016 में श्रीलंका में में भारी बारिश और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं आई थीं. पहले से संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को बारिश और बाढ़ से खासा नुकसान हुआ था. इसके अलावा, सरकारी नीतियों ने भी कृषकों को कोई राहत नहीं दी थी. सरकार की ओर से रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिबंध लगाने की वजह से किसानों की फसल बर्बाद हुई. बाढ और प्राकृतिक आपदाओं ने देश के टूरिज्म इंडस्ट्री, मछली पालन जैसे उद्योगों को बर्बाद कर दिया था.
राजपक्षे परिवार के खिलाफ सड़कों पर हैं लोग
विदेशी एजेंसियों का दावा है कि प्रदर्शनकारी महिंदा राजपक्षे को ही मारने के लिए आए थे. हालांकि, उन्होंने घर में आग लगा दी थी. अब तक मिली जानकारी के मुताबिक, महिंदा राजपक्षे और उनके परिवार के सदस्यों को सेना ने सुरक्षित ठिकाने पर छुपाकर रखा है.
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Sri Lanka Protest: क्या है राजपक्षे परिवार से आम लोगों की गुस्से की वजह, समझें