डीएनए हिंदी: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन में अलगाववादी क्षेत्रों डोनेट्स्क और लुहान्स्क में सैनिकों की तैनाती कर दी है. इस घटना के बाद ब्रेंट क्रूड की कीमतें मंगलवार को 96.7 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गईं, जो सितंबर 2014 के बाद से उच्चतम अंक है. वहीं पश्चिमी देशों ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का घोर उल्लंघन करार दिया है. बढ़ते वैश्विक तनाव और यूक्रेन में आक्रमण के खतरे ने तेल की कीमतों में वृद्धि की है और इसी की वजह से शेयर बाजार में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है.
1 दिसंबर 2021 से तेल की कीमतों में लगभग 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. बता दें कि बीएसई में बेंचमार्क सेंसेक्स मंगलवार को शुरुआती कारोबारी घंटों में 1,250 अंक से अधिक गिर गया और एक दिन के निचले स्तर 56,394 पर पहुंच गया है. रुपया भी 33 पैसे या 0.44 प्रतिशत टूटकर 74.84 डॉलर पर आ गया है.
तेल की कीमतों में भारी उछाल क्यों दिख रहा है?
रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है जो कच्चे तेल का उत्पादन करता है. रूस और यूक्रेन के बीच तनाव के बाद आपूर्ति को लेकर चिंता के कारण पिछले कुछ महीनों में तेल की कीमतें बढ़ रही हैं. डेटेड ब्रेंट की कीमत या भौतिक उत्तरी सागर कच्चे तेल कार्गो (North Sea crude oil cargoes) की कीमत पहले ही 100 डॉलर प्रति बैरल को पार कर चुकी हैं. कच्चे तेल के अलग अलग ग्रेड होते हैं. इन्ही में से एक है डेटेड ब्रेंट. एस एंड पी ग्लोबल प्लैट्स (S&P Global Platts) द्वारा स्थापित डेटेड ब्रेंट 16 फरवरी को अपने उच्चतम $ 100.8 प्रति बैरल पर पहुंच गया जो सितंबर 2014 के बाद का उच्चतम स्तर है.
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यह भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करेगा?
कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से मुद्रास्फीति, राजकोषीय और बाहरी क्षेत्र के जोखिम पैदा होते हैं. कच्चे तेल से संबंधित उत्पादों की WPI बास्केट में 9 प्रतिशत से अधिक की प्रत्यक्ष हिस्सेदारी है और बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस की एक रिपोर्ट के मुताबिक कच्चे तेल में 10 प्रतिशत की वृद्धि से लगभग WPI मुद्रास्फीति में 0.9 प्रतिशत की वृद्धि होगी.
भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत से ज्यादा तेल आयात करता है. तेल की बढ़ती कीमतें चालू खाते के घाटे को प्रभावित करेंगी जिसकी वजह से आयात और निर्यात की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों के बीच अंतर आएगा.
सबनवीस ने अपनी रिपोर्ट में कहा, "वित्त वर्ष 22 में तेल की कीमतों में वृद्धि होने से भारत के कुल आयात में तेल आयात की हिस्सेदारी बढ़कर 25.8 प्रतिशत (अप्रैल-दिसंबर '21) हो गई है. तेल की कीमतों में फिर से तेजी के साथ तेल आयात बिल में और वृद्धि होने की संभावना है. इसका असर भारत की बाहरी स्थिति पर पड़ेगा. रिपोर्ट के मुताबिक तेल की कीमतों में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी से भारत के सीएडी (CAD) में 15 अरब डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 0.4 प्रतिशत की वृद्धि होगी. इसका भारतीय रुपये पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.” कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से एलपीजी और केरोसिन पर सब्सिडी बढ़ने की भी उम्मीद है, जिससे सब्सिडी बिल में बढ़ोतरी होगी.
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आम उपभोक्ता पर क्या होगा असर?
कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी होने से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में भी वृद्धि होगी. साल 2021 में देश भर में पेट्रोल और डीजल की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं.केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में क्रमशः 5 रुपये और 10 रुपये प्रति लीटर की कटौती की और अधिकांश राज्यों ने मूल्य वर्धित कर (Value Added Tax) में कटौती की जिसकी वजह से नवंबर में पंप की कीमतें गिर गईं.
देश की राजधानी में पेट्रोल और डीजल फिलहाल 95.3 रुपये और 86.7 रुपये प्रति लीटर पर बिक रहा है.नवंबर में टैक्स कटौती के बाद से तेल विपणन कंपनियों ने कीमतों में बदलाव नहीं किया है. यहां तक कि ब्रेंट क्रूड नवंबर की शुरुआत में लगभग 84.7 डॉलर प्रति बैरल से गिरकर दिसंबर की शुरुआत में 70 डॉलर से कम हो गया था. कच्चे तेल की ऊंची कीमतों का परिणाम अब यह हो सकता है कि उपभोक्ताओं को ईंधन के लिए ऊंची कीमत देनी पड़ सकती है.
निवेशकों की धारणा और बाजार पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के कारण पिछले कुछ दिनों में निवेशक काफी प्रभाविक हुए हैं. विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक शुद्ध विक्रेता बन गए हैं और जनवरी और फरवरी के बीच भारतीय इक्विटी से 51,703 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की है. इसका असर इक्विटी बाजार पर देखने को मिल रहा है. इससे शेयर बाजार में गिरावट और अस्थिरता आई है.डॉलर के मुकाबले रुपया 1.4 फीसदी कमजोर होकर 12 जनवरी को 73.8 डॉलर प्रति बैरल से मंगलवार को 74.84 डॉलर पर आ गया है. फंड मैनेजरों का कहना है कि भू-राजनीतिक चिंताओं को लेकर निकट भविष्य में बाजार में उतार-चढ़ाव बना रह सकता है.
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