डीएनए हिंदी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने पिछले 15 दिनों में दूसरी बार रेवड़ी कल्चर से देश को चेताया है.पीएम मोदी ने बताया कि देश की बिजली उत्पादन और वितरण करने वाली कंपनियों के 2.5 लाख करोड़ रुपये राज्यों के पास फंसे हुए हैं. देश के विद्युत वितरण कंपनियों का कुल घाटा साल 2020 में ही 5 लाख करोड़ पार कर चुका है. ऐसे में जानिए आपके राज्य का बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों पर कितना बकाया है?
PM मोदी ने क्या कहा?
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "देश में बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों (GENCOs) का राज्यों पर बकाया एक लाख करोड़ से ज्यादा हो चुका है. वहीं, इसके अलावा राज्यों के कई विभागों को स्थानीय निकायों को बिजली वितरण करने वाली कंपनियां (DISCOMs) को करीब 60,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की धनराशि चुकानी है. इसके साथ-साथ सरकार द्वारा सब्सिडी के तौर पर घोषित करीब 75,000 करोड़ रुपये भी बिजली वितरण कंपनियों को समय से नहीं मिल रहे हैं."
प्रधानमंत्री ने आगे सवाल उठाया कि देश के नागरिकों द्वारा बिजली का बिल ईमानदारी से चुकाने के बाद राज्य लगातार बकाया क्यों रखे हुए हैं ? ये राजनीति नहीं बल्कि राष्ट्रनीति और राष्ट्र निर्माण का मुद्दा है.
GENCO का DISCOM पर 1 लाख करोड़ से ज्यादा बकाया
बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों (Generation Company) को आमतौर पर यानि GENCOS कहा जाता है. उपभोक्ताओं को बिजली देने वाली कंपनियों (Distribution Company) को हम DISCOMs के नाम से जानते हैं.
पिछले कुछ सालों से बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों को बकाया 6 गुना बढ़ गया है. जुलाई 2017 में Genco का कुल बकाया 17,038 करोड़ था जो कि इस साल जुलाई 2022 में 1,08,049 करोड़ हो चुका है.
GENCO का कुल 50% बकाया दक्षिण भारत के राज्यों से
बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों का सबसे ज्यादा बकाया रखने वाले राज्यों में तमिलनाडू (25,553 करोड़ रुपये) पहले स्थान पर है. जहां GENCO के कुल बकाया का करीब 25 प्रतिशत है. इसके बाद इन सूची में महाराष्ट्र (19,763 करोड़ ), तेलंगाना (19,745 करोड़ ) और आंध्र प्रदेश (11,683 करोड) और उत्तर प्रदेश ( 10,755 करोड़ रुपये) का नाम आता है.
DISCOMs का कुल घाटा 5 लाख करोड़ रुपये के पार
बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) का कुल घाटा लगातार तेजी से बढ़ता जा रहा है. मार्च 2017 तक देश की सारी बिजली वितरण कंपनियों का कुल घाटा 4.44 लाख करोड़ था. जो मार्च 2020 तक आते-आते ये बढ़कर 5.22 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है.
क्यों बढ़ रह है DISCOMS का घाटा
उर्जा मंत्री आर के सिंह ने मार्च 2022 में सदन को बताया था कि DISCOMs के घाटे का मुख्य कारण AT&C (Aggregate Technical and Commercial Losses) नुकसान, बिजली की दरों और लागत में अंतर, राज्य सरकारों द्वारा देरी से और अपर्याप्त भुगतान और अपर्याप्त कॉरोपोरेट प्रशासन व्यवस्थाओं का होना है.
क्या होता है ACS और ARR? मोदी सरकार में सुधरी स्थिति
बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) के बही खाते की जब भी बात आती है तो हमेशा ACS और ARR का जिक्र होता है. बिजली के कुल औसत लागत मूल्य (Average Cost of Supply) को ही ACS कहते हैं. वहीं, कुल औसत प्राप्त आय (Average Revenue Realised) को ARR कहते हैं. वित वर्ष 2016 में लागत मूल्य और प्राप्त आय के बीच अंतर (Gap between ARR and ACS) 0.48 रु प्रति किलोवाट था. वित वर्ष 2020 में ये कम होकर 0.30 रु प्रति किलोवाट पहुंच गया है.
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बिजली कंपनियों का बकाया 1 लाख करोड़ के पार, 6 साल में 6 गुना बढ़ा, जानिए अपने राज्य का हाल