डीएनए हिंदी: मणिपुर में जातीय हिंसा अपने चरम पर है. महिलाओं को नंगा कर परेड कराने का वीडियो सामने आने के बाद देशभर में मणिपुर को लेकर आक्रोश की लहर है. संसद के मानसून सत्र के दौरान दोनों सदनों में जमकर हंगामा हो रहा है. एक तरफ लोकसभा की कार्यवाही दूसरे दिन भी बाधित रही, वहीं राज्यसभा में भी हंगामा बरपा है.
विपक्षी दलों ने गुरुवार को ही मांग की थी कि मणिपुर मुद्दे को उठाने के लिए दिन भर के लिए अन्य सभी कामकाज स्थगित कर दिए जाएं, लेकिन सरकार केवल "अल्पावधि चर्चा" के लिए सहमत हुई. इसी मुद्दे पर विपक्ष के जोरदार विरोध के बाद राज्यसभा और लोकसभा को दिन भर के लिए स्थगित कर दिया गया.
लोकसभा की बैठक शुरू होते ही विपक्षी दलों के सदस्य खड़े हो गए. कांग्रेस, द्रमुक और वाम दलों सहित सदस्यों ने नारे लगाए और अध्यक्ष ओम बिरला से कहा कि 'मणिपुर का खून बह रहा है.' स्पीकर ने विपक्षी सदस्यों से कहा कि नारेबाजी से समस्या का कोई समाधान नहीं निकलेगा, बल्कि संवाद और चर्चा से ही समाधान निकल सकता है. उन्होंने कहा, '
यह अच्छा नहीं है. बातचीत से ही समाधान निकाला जा सकता है.'
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रूल 267 पर ठनी है राज्यसभा में बहस
राज्यसभा में, सभापति जगदीप धनखड़ ने कार्यवाही दोपहर 2:30 बजे तक के लिए स्थगित कर दी है क्योंकि तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ'ब्रायन ने गुरुवार को सदन की कार्यवाही से कुछ शब्दों को हटाने पर व्यवस्था का प्रश्न उठाने की मांग की. कामकाज दोबारा शुरू होने के कुछ मिनट बाद ही उच्च सदन की कार्यवाही फिर से पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई.
विपक्ष नियम 267 के तहत लंबी चर्चा की मांग कर रहा है, जबकि केंद्र ने गुरुवार को कहा था कि वह केवल नियम 176 के तहत छोटी चर्चा के लिए "इच्छुक और सहमत" है.
हालांकि, संसदीय कार्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने आज दावा किया कि विपक्ष जानबूझकर मणिपुर पर चर्चा नहीं चाहता है. उन्होंने कहा, वे बार-बार अपना रुख बदल रहे हैं और नियमों का हवाला दे रहे हैं, उन्होंने कहा कि केंद्र मणिपुर पर चर्चा के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि गृह मंत्री इस पर जवाब देंगे.
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अर्जुन मेघवाल ने कहा कि विपक्षी सांसदों ने नियम 176 के तहत नोटिस भी जमा किया था. सभापति उन्हें पढ़ रहे थे, तभी विपक्ष ने शोर मचाया कि केवल नियम 267 के तहत चर्चा चाहते हैं. सभापति ने समझाया कि वह केवल एक क्रम में नोटिस पढ़ रहे थे और 267 पर भी आएंगे, लेकिन उन्होंने उनकी बात नहीं सुनी. फिर वे मांग करने लगे कि पीएम संसद में आकर बयान दें. वे अपना रुख बदलते रहते हैं. मेघवाल ने विपक्ष से अपील की कि वे इस पर राजनीति न करें क्योंकि यह एक संवेदनशील मुद्दा है.
संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी ने भी कहा कि सरकार चर्चा के लिए पूरी तरह से तैयार है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा कि वे चर्चा चाहते हैं.
क्या है नियम 267 के तहत मिलने वाला अधिकार?
विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने गुरुवार को कहा था, 'हमने 267 के तहत भी नोटिस दिया है. आपको अन्य सभी कामकाज निलंबित करना होगा और इसे लेना होगा. आधे घंटे के लिए नहीं.' नियम 267 राज्यसभा सांसद को सभापति की मंजूरी से सदन के पूर्व-निर्धारित एजेंडे को निलंबित करने की विशेष शक्ति देता है.
राज्यसभा की नियम पुस्तिका 'नियमों के निलंबन' के तहत 'नियम 267' को एक ऐसे उदाहरण के रूप में परिभाषित करती है, जहां कोई भी सदस्य, सभापति की सहमति से, यह कदम उठा सकता है कि उस दिन की परिषद के समक्ष सूचीबद्ध व्यवसाय से संबंधित प्रस्ताव के आवेदन में किसी भी नियम को निलंबित किया जा सकता है. यदि प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो विचाराधीन नियम को कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया जाएगा.'
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जगदीप धनखड़ ने कहा था कि यह व्यवधान पैदा करने का एक ज्ञात तंत्र बन गया है. हाल के इतिहास में शायद ही कभी स्वीकार किया गया हो. संसदीय रिकॉर्ड बताते हैं कि साल 1990 से 2016 के बीच 11 बार ऐसे मौके आए जब अलग-अलग चर्चाओं के लिए इस नियम का इस्तेमाल किया गया.आखिरी उदाहरण 2016 में देखने को मिला था, जब तत्कालीन सभापति हामिद अंसारी ने नोटबंदी पर बहस की इजाजत दी थी. जगदीप धनखड़ ने पहले कहा था कि उनके पूर्ववर्ती वेंकैया नायडू ने अपने छह साल के कार्यकाल के दौरान नियम के तहत एक भी नोटिस स्वीकार नहीं किया था.
क्यों खास है रूल 267?
रूल 267 सांसदों के लिए सरकार से सवाल पूछने और प्रतिक्रिया मांगने का एकमात्र तरीका नहीं है. वे प्रश्नकाल के दौरान किसी भी मुद्दे से संबंधित प्रश्न पूछ सकते हैं जिसमें संबंधित मंत्री को मौखिक या लिखित उत्तर देना होता है. कोई भी सांसद शून्यकाल के दौरान इस मुद्दे को उठा सकता है. हर दिन 15 सांसदों को शून्यकाल में अपनी पसंद के मुद्दे उठाने की अनुमति होती है. कोई सांसद इसे विशेष उल्लेख के दौरान भी उठा सकता है. एक अध्यक्ष प्रतिदिन 7 विशेष उल्लेखों की अनुमति दे सकता है.
क्यों सरकार चाहती है रूल 176 के तहत हो बहस?
कुछ सदस्यों ने नियम 176 के तहत मणिपुर के मुद्दों पर अल्पकालिक चर्चा की मांग की है. सदस्य मणिपुर के मुद्दों पर चर्चा में शामिल करना चाहते है. सरकार भी चाहती है कि इसी के तहत चर्चा हो. मणिपुर पर केंद्र सरकार बुरी तरह घिरी है.
नियम 176 किसी विशेष मुद्दे पर अल्पकालिक चर्चा की अनुमति देता है, जो ढाई घंटे से अधिक नहीं हो सकती. इसमें कहा गया है कि अत्यावश्यक सार्वजनिक महत्व के मामले पर चर्चा शुरू करने का इच्छुक कोई भी सदस्य महासचिव को स्पष्ट रूप से और सटीक रूप से उठाए जाने वाले मामले को निर्दिष्ट करते हुए लिखित रूप में नोटिस दे सकता है. शर्त यह है कि नोटिस के साथ एक व्याख्यात्मक नोट दिया जाएगा जिसमें विचाराधीन मामले पर चर्चा शुरू करने के कारण बताए जाएंगे, नोटिस को कम से कम दो अन्य सदस्यों के हस्ताक्षर द्वारा समर्थित किया जाएगा.'
नियम 176 के अनुसार, मामले को तुरंत, कुछ घंटों के भीतर या अगले दिन भी उठाया जा सकता है. हालांकि, नियम स्पष्ट है कि अल्पकालिक चर्चा के तहत कोई औपचारिक प्रस्ताव या मतदान नहीं किया जाएगा.
किन सांसदों ने दिया बिजनेस सस्पेंशन नोटिस?
कांग्रेस के सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे, प्रमोद तिवारी, रंजीत रंजन, सैयद नसीर हुसैन, इमरान प्रतापगढ़ी के साथ-साथ शिवसेना (UBT) की प्रियंका चतुर्वेदी, तृणमूल कांग्रेस (TMC) के डेरेक ओ'ब्रायन, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के तिरुचि शिवा, राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा, सीपीएम के एलाराम करीम और सीपीआई के बिनॉय विश्वम ने चर्चा के लिए राज्यसभा में नियम 267 के तहत बिजनेस सस्पेंशन नोटिस पेश किया. विषय रखा गया, मणिपुर में जारी हिंसा पर प्रधानमंत्री की चौंकाने वाली चुप्पी.'
पीएम नरेंद्र मोदी ने कल मणिपुर हिंसा पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि इस भयावह वीडियो को लेकर उनका दिल पीड़ा और गुस्से से भर गया है. पीएम मोदी ने संसद के मानसून सत्र की शुरुआत से पहले अपनी टिप्पणी में कहा, 'मैं देश को आश्वस्त करना चाहता हूं कि किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा. कानून के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी. मणिपुर की बेटियों के साथ जो हुआ उसे कभी माफ नहीं किया जा सकता.'
पीएम मोदी ने कहा, 'जैसे ही मैं लोकतंत्र के इस मंदिर के सामने खड़ा हूं, मेरा दिल दर्द और गुस्से से भर गया है. मणिपुर की घटना किसी भी सभ्य राष्ट्र के लिए शर्मनाक है. पूरा देश शर्मसार हुआ है.'
पीएम ने कांग्रेस शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ की घटनाओं का भी जिक्र किया और कहा, 'मैं सभी मुख्यमंत्रियों से अपने राज्य में कानून-व्यवस्था मजबूत करने की अपील करता हूं.'
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने संसद के अंदर बयान नहीं देने के लिए पीएम की आलोचना की. उन्होंने ट्वीट किया, 'अगर आप गुस्से में थे तो कांग्रेस शासित राज्यों के साथ झूठी तुलना करने के बजाय आप सबसे पहले अपने मणिपुर के मुख्यमंत्री को बर्खास्त कर सकते थे.'
मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि विपक्षी गठबंधन INDIA, उनसे उम्मीद करता है कि वह आज संसद में एक विस्तृत बयान देंगे, न केवल एक घटना पर, बल्कि 80 दिनों की हिंसा पर, जिस पर राज्य और केंद्र में आपकी सरकार बिल्कुल असहाय दिख रही है.
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क्या है रूल 267, कैसे मिलता है राज्यसभा सदस्यों को सस्पेंशन ऑफ बिजनेस का अधिकार?