डीएनए हिंदी: अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने मंगलावर को इतिहास रच दिया. नासा के अंतरिक्ष यान ने सुबह 4:45 बजे पृथ्वी को एस्टेरॉयड ( Asteroid) के खतरे से बचाने के मिशन डार्ट (DART Mission) को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. अब अगर भविष्य में पृथ्वी पर किसी तरह के एस्टेरॉयड के हमले की आशंका होती है तो इस तकनीक से धरती को बचाया जा सकता है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA के लिए ये मिशन बहुत ही महत्वपूर्ण था.
पृथ्वी से लगभग 1,13,000 किलोमीटर दूर एक एस्टेरॉयड पर यह परीक्षण किया गया और डबल एस्टेरॉयड डायरेक्शन टेस्ट (DART) नामक एयरक्राफ्ट ने 22,500 किलोमीटर की रफ्तार से एस्टेरॉयड डिडिमोस (Didymos) के चंद्रमा जैसे पत्थर डाइमॉरफोस (Dimorphos) को टक्कर मारी. इस परीक्षण का मकसद अंतरिक्ष यान से क्षुद्रग्रह को टक्कर मारकर उसकी दिशा को बदलना और भविष्य में खतरनाक क्षुद्रग्रहों को धरती की ओर आने से रोकना था.
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मिशन में लगे 32.5 करोड़ डॉलर
इस मिशन को करने वाले नासा के वैज्ञानिक एलेना एडम्स ने कहा, “हम कामयाब हुए. लगभग 32 करोड़ 50 लाख अमेरिकी डॉलर का यह मिशन अंतरिक्ष में किसी एस्टेरॉयड या किसी अन्य प्राकृतिक वस्तु की स्थिति बदलने का पहला प्रयास है. एडम्स ने कहा, जहां तक हम समझते हैं, हमारा पहला ग्रह रक्षा परीक्षण सफल रहा'.
क्या धरती के लिए खतरा था एस्टेरॉयड डिमोफोर्स?
नासा ने इसे क्यूब के शेप में डिजाइन किया था. इस इंपैक्टर व्हीकल का साइज किसी वेडिंग मशीन की तरह था. एक फुटबॉल स्टेडियम जितने बड़े आकार के एस्टेरॉयड को जब DART ने टक्कर मारी तो वह चखनाचूर हो गया. दरअसल, डिमोफोर्स हमारी धरती के लिए खतरा नहीं था. नासा का यह मिशन उसके धरती से टकराने के बारे में भी नहीं हुआ. यह टेस्ट इसलिए किया गया जिससे यह समझा जा सके कि किसी स्पेसक्राफ्ट की मदद से गतिज बल (Kinetic Force) लगाकर कैसे किसी क्षुद्रग्रह के प्रक्षेपवक्र (Trajectory) को बदला जा सकता है.
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नासा के लिए क्यों खास था मिशन DART?
अभी तक दुनिया के किसी भी स्पेस ऑर्गेनाइजेशन ने किसी क्षुद्रग्रह या खगोलीय पिंड की दिशा बदलने की कोशिश नहीं की थी. नासा के वैज्ञानिकों का इस दिशा में यह पहला कदम था.नासा के वैज्ञानिकों को मुताबिक, यह मिशन अब धरती के लिए बेहद मददगार साबित होगा. हालांकि, अब आने वाले 100 वर्षों में कोई भी ऐसा क्षुद्रग्रह नहीं है जो धरती से टकरा सकता है.
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NASA के लिए क्यों खास था DART मिशन, क्या धरती को बचाने में कामयाब होंगे वैज्ञानिक?