डीएनए हिंदी: Mahatma Gandhi- यूं तो आजादी की लड़ाई के दौरान सत्याग्रह के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चरण पूरे देश में जगह-जगह पड़े थे, लेकिन इनमें से कुछ जगह हमेशा के लिए खास बनकर रह गई. ऐसी ही एक जगह गुजरात के साबरमती आश्रम से सैकड़ों मील दूर उत्तराखंड के कौसानी शहर में भी मौजूद है, जो 'बापू' का दूसरा घर कही जाती थी. एक ऐसी जगह, जहां पूरी दुनिया को शांति का उपदेश देने वाले महात्मा गांधी को खुद ऐसी आत्मिक शांति का अहसास हुआ था कि उन्होंने महज 14 दिन में अनासक्ति योग (Anasakti Yoga) जैसी किताब लिख डाली थी. गांधीजी कौसानी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसे भारत का स्विटजरलैंड (India's Switzerland) नाम दे दिया. बागेश्वर जिले में मौजूद कौसानी में वैसे तो पर्यटक विश्व प्रसिद्ध स्नो व्यू देखने आते हैं, लेकिन यहीं पर अनासक्ति आश्रम में प्रवेश करने मात्र से उन्हों आज भी राष्ट्रपिता की मौजूदगी का अहसास हो जाता है.
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खराब स्वास्थ्य खींचकर लाया था बापू को कौसानी
नैनीताल-बागेश्वर मार्ग पर मौजूद कौसानी (Kausani) में महात्मा गांधी के चरण पहली बार 1929 में तब पड़े थे, जब वे अपने खराब स्वास्थ्य के कारण उत्तराखंड (तब नॉर्दर्न प्रॉविंस का हिस्सा) की वादियों में स्वच्छ जलवायु की खोज में पहुंचे थे. यहां मशहूर स्नो व्यू पॉइंट पर बने डाक बंगले में महात्मा गांधी का प्रवास महज 2 दिन का था, लेकिन पहली ही सुबह सबकुछ बदल गया. योग करने के लिए डाक बंगले से बाहर आए बापू को शांतिपूर्ण माहौल में सुदूर सामने सजी नंदा देवी समेत 7 बर्फीली चोटियों पर पड़ती सूरज की किरणों ने मंत्रमुग्ध कर दिया. नतीजतन यह प्रवास 2 दिन से आगे बढ़ता चला गया और बापू पूरे 14 दिन यहां रहे.
अनासक्ति योग से करा दिया बापू का मिलन
हिंदुस्तान की आजादी को लेकर अंदर से बेचैन बापू को कौसानी में आकर आत्मिक शांति मिली और उनका उस अनासक्ति योग से मिलन करा दिया, जो आगे आखिरी सांस तक उनकी दिनचर्या का हिस्सा रहा. यहां 14 दिन के प्रवास के दौरान बापू ने भगवद् गीता के श्लोकों का हिंदी अनुवाद कर एक किताब भी लिख दी, जिसे नाम दिया गया अनासक्ति योग. इसके बाद जब भी बापू को आत्मिक शांति की तलाश हुई तो उनके कदम खुद ब खुद कौसानी की तरफ बढ़ चले और वे कई बार इस शहर में आकर डाक बंगले में रहे. इस कारण ही वे इसे अपना दूसरा घर भी कहते थे.
यहीं से मिली डांडी आंदोलन की प्रेरणा
कहते हैं कि बापू के स्वाधीनता आंदोलन को असली धार डांडी के नमक सत्याग्रह आंदोलन से मिली थी, जहां उन्होंने अंग्रेजों का कानून तोड़कर नमक बनाया था. क्या आप जानते हैं कि डांडी आंदोलन की प्रेरणा बापू को कौसानी में रहते हुए ही मिली थी. दरअसल कुमाऊं में अंग्रेजों ने कुली बेगार प्रथा लागू की हुई थी, जिसके चलते यहां की जनता से जबरन सामान की ढुलाई कराई जाती थी और उन्हें बदले में कुछ नहीं मिलता था. इसके खिलाफ बद्रीदत्त पांडे, लाला चिरंजीलाल और पंडित हरगोविंद पंत की अगुआई में 14 जनवरी, 1921 को सरयू बगड़ के उत्तरायणी पर्व के मेले में आंदोलन शुरू हुआ. करीब 40 हजार लोगों की भीड़ ने शांतिपूर्ण सत्याग्रह किया और कुली बेगार प्रथा के लिए गांवों में बने रजिस्टर फाड़कर सारा रिकॉर्ड सरयू में बहा दिया.
इस आंदोलन के चलते अंग्रेज सरकार को सदन में सदन में विधेयक लाकर यह प्रथा खत्म करनी पड़ी. इस सत्याग्रह के बारे में सुन चुके गांधी जी ने कौसानी प्रवास के दौरान विस्तार से यहां के लोगों से मिलकर इस अवज्ञा आंदोलन की पूरी जानकारी ली. इस दौरान उन्होंने चनौंदा में गांधी आश्रम भी स्थापित किया. उन्होंने यंग इंडिया अखबार में इस आंदोलन के बारे में लिखा, यह संपूर्ण प्रभाव वाली रक्तहीन क्रांति थी. इस दौरान उन्होंने कुमाऊं में कुल 22 दिन का प्रवास किया था, जिसमें 26 जगह भाषण देकर लोगों को स्वतंत्रता के लिए खड़ा होने को प्रेरित किया था. बाद में उन्होंने कुली बेगार आंदोलन से प्रेरित होकर खुद भी अंग्रेजों के बनाए गलत कानूनों को तोड़कर उनका विरोध करने का निर्णय लिया, जिसकी शुरुआत डांडी आंदोलन में नमक कानून से की गई.
बापू के बचपन से आखिरी पल तक का पूरा जीवन तस्वीरों में सुरक्षित
कौसानी में बापू की यादों को संजोने के लिए यहां के डाक बंगले को अनासक्ति आश्रम में बदल दिया गया. यह काम साल 1966 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी ने किया. उन्होंने यह डाक बंगला उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि को सौंप दिया, जो आज भी इसकी देखरेख करती है. उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि की तरफ से कौसानी में अनासक्ति आश्रम की देखरेख से जुड़े सदानंद के मुताबिक, यहां बापू के बचपन से लेकर आखिरी पल तक की यादों को तस्वीरों में संजोया गया है. इसके अलावा यहां उनके जीवन से जुड़ी चीजें और किताबें आदि भी संरक्षित हैं.
आश्रम के अंदर प्रार्थनास्थल भी बना हुआ है, जहां सुबह-शाम 'रघुपति राघव राजा राम' की धुनों पर गांधीवादी जुटते हैं और राष्ट्रपिता को याद करते हैं. यहां महात्मा गांधी पर रिसर्च के लिए पूरी दुनिया से लोग आते हैं, जिनके ठहरने के लिए आश्रम में ही व्यवस्था की गई है. आश्रम परिसर में एक छोटे से पत्थर पर यहां के बारे में जानकारी दी गई है. पहले एक बोर्ड पर बापू के परदादा से लेकर पोतों तक पूरे परिवार की जानकारी भी मौजूद थी, लेकिन अब उसे हटा दिया गया है. बापू की पद यात्राओं की झलक दिखाती उनकी विशाल मूर्ति के पास उनके तीन बंदरों की भी मूर्तियां लगी हुई हैं.
सुमित्रा नंदन पंत भी 'संजोकर' रखे हैं कौसानी ने
कौसानी जिसने कभी मशहूर लेखक धर्मवीर भारती को 'ठेले पर हिमालय' जैसा लेख लिखने पर मजबूर कर दिया था, वही कौसानी एक और मशहूर कवि-लेखक को अपने अंदर संजोए हुए है. दरअसल मशहूर छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौसानी में ही 20 मई, 1900 को हुआ था. कौसानी के मुख्य बाजार के चौक से करीब 100 कदम ऊपर पतली पहाड़ी गली में मौजूद पंत का मकान अब संग्रहालय में बदल दिया गया है, जहां उनके जीवन से जुड़े चित्र, उनकी अटैची, उनकी कुर्सी-टेबल, कपड़े आदि संजोकर रखे गए हैं.
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DNA Exclusive: साबरमती से सैकड़ों मील दूर उत्तराखंड में है वो जगह, जिसे 'दूसरा घर' मानते थे महात्मा गांधी