डीएनए हिंदी: ISRO News- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने महत्वाकांक्षी रियूजेबल लॉन्च व्हीकल (RLV-TD) को टेस्ट करने की पूरी तैयारी कर ली है. इसरो के चेयरमैन (Chairmen Indian Space Research Organisation) डॉ. एस सोमनाथ के मुताबिक, RLV-TD का लैंडिंग टेस्ट शनिवार को करने जा रहा है. इस टेस्ट के सफल होने पर भारत ऐसी महाशक्ति बन जाएगा, जो हॉलीवुड फिल्मों की तरह अंतरिक्ष यान में अपने जवान बैठाकर आसमान में भेजने और वहां से सुरक्षित वापस धरती पर लैंड कराने में सफल होगा. इससे भारत के अंतरिक्ष अभियानों की लागत भी कई गुना घट जाएगी, जिनके लिए अब हर बार नया रॉकेट तैयार करना होता है.
पहले जान लेते हैं RLV-TD मिशन क्या है
दरअसल अभी तक किसी भी सैटेलाइट को लॉन्च करने के लिए रॉकेट का इस्तेमाल किया जाता है, जो बेहद खर्च वाला साबित होता है. RLV-TD विमान जैसा दिखने वाला स्पेस शटल है, जो दो स्टेज में काम करता है. इसकी पहली स्टेज में शटल के नीचे लगा रॉकेट उसे सैटेलाइट के साथ आसमान में उड़ाकर ले जाएगा. इसके बाद वहां यह रॉकेट अलग हो जाएगा और स्पेस शटल सैटेलाइट को विमान की तरह ड्राइव करते हुए उसके ऑर्बिट में सेट करेगा. फिर यह स्पेस शटल वापस जमीन पर ठीक किसी विमान की तरह लैंड कर जाएगा.
ISRO Chairman Dr. S Somanath has said RLV-TD's Landing Experiment (LEX) is going to take place this Saturday/Jan 28!! pic.twitter.com/9UWSAOchek
— ISRO Spaceflight (@ISROSpaceflight) January 25, 2023
हालांकि अभी यह मानवरहित होगा यानी इसके स्टेयरिंग का कंट्रोल किसी ड्रोन विमान या UAV की तरह कंट्रोल रूम में बैठे पायलट के हाथ में होगा, लेकिन ऑपरेशनल होने के बाद यह इंसान को भी अंतरिक्ष में ले जा सकेगा. लैंड करने के बाद यह दोबारा हल्के मेंटिनेंस के साथ अगले मिशन के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा. यह सैटेलाइट पूरी तरह स्वदेशी है यानी इसमें यूज की जा रही तकनीक से लेकर इसमें इस्तेमाल हो रहे पुर्जे तक, हर चीज भारत में ही डेवलप की गई है और यहीं बनाई गई है.
क्या किया जाएगा शनिवार को
शनिवार को RLV-TD को एक हेलिकॉप्टर की मदद से अंतरिक्ष में करीब 3 किलोमीर की ऊंचाई तक ले जाएंगे. इसके बाद वहां से इस स्पेस शटल को रिलीज कर देंगे. इसके बाद यह गाइडेंस एंड कंट्रोल सिस्टम की मदद से नीचे लैंड कराया जाएगा. इसकी लैंडिंग कर्नाटक के चल्लाकरे स्थित डिफेंस रनवे पर की जाएगी. इस दौरान इस शटल का लैंडिग से जुड़ा एयरोडायनामिक्स समझने की कोशिश की जाएगी.
साल 2016 में हो चुका है पहला सफल परीक्षण
इसका पहला सफल परीक्षण साल 23 मई, 2016 को किया गया था. जिसमें इस मिशन की कई अहम तकनीक जैसे, ऑटोनोमस नेविगेशन, गाइडेंस एंड कंट्रोल, रियूजेबल थर्मल प्रोटेक्शन सिस्टम और रि-एंट्री मिशन मैनेजमेंट को टेस्ट किया गया था. ये सारे टेस्ट सफल रहे थे. तब यह अंतरिक्ष में 64.8 किलोमीटर की ऊंचाई तक स्पेशल एटमॉसफियर बूस्टर रॉकेट की मदद से भेजा गया था और वहां से इसे 180 डिग्री पर घुमाकर बंगाल की खाड़ी में तट से करीब 500 किलोमीटर दूर बने वर्चुअल रनवे पर लैंड कराया गया था. अब इसका सबसे खास टेस्ट होने जा रहा है. यह टेस्ट इसके दोबारा सफल तरीके से हवाई पट्टी पर विमान की तरह लैंड करने का है.
1.62 लाख रुपये प्रति किलो तक घट जाएगी अंतरिक्ष अभियानों की लागत
इस स्पेस शटल लॉन्च व्हीकल के जरिये अंतरिक्ष में किसी भी सैटेलाइट को ऑर्बिट में सेट करने की लागत बेहद कम हो जाएगी. साल 2016 में इसके पहले सफल टेस्ट के समय इसरो के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि इससे ऑपरेशनल होने पर किसी सैटेलाइट को आसमान में भेजने के लिए यूज होने वाले पेलोड की लागत 2000 डॉलर प्रति किलोग्राम (मौजूदा डॉलर भाव से करीब 1.62 लाख रुपये प्रति किलोग्राम) तक कम हो जाएगी.
मौजूदा वर्जन प्रोटोटाइप, असली वर्जन साल 2030 तक लाने की तैयारी
ISRO फिलहाल 6.5 मीटर लंबे और करीब 1.75 टन वजन वाले जिस RLV-TD को टेस्ट में यूज कर रहा है, वो महज एक प्रोटोटाइप है. इसरो की योजना है कि असली RLV-TD साल 2030 तक ऑपरेशन में आ जाए. वह इस प्रोटोटाइप से करीब 5 गुना बड़ा होगा.
अभी 5 ही देश बना पाए हैं रियूजेबल स्पेस शटल
दुनिया में अब तक 5 देश ही रियूजेबल स्पेस शटल बना पाए हैं. इनमें अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, और जापान शामिल हैं. हालांकि सही मायने में केवल अमेरिका ही इसमें सफल रहा है, जिसके रियूजेबल स्पेस शटल ने करीब 135 बार सफल उड़ान भरी थीं. अमेरिका के रियूजेबल स्पेस शटल ने आखिरी बार साल 2011 में उड़ान भरी थी. हालांकि अब वह इसका एडवांस वर्जन तैयार कर रहा है. रूस ने 1989 में जो शटल बनाया, वह एक बार ही उड़ पाया था. चीन ने भी पिछले साल ही अपने रियूजेबल शटल का सफल टेस्ट किया है.
भारत सफल रहा तो ऐसे बनेगा गेम चेंजर
- अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजना आसान और कम लागत वाला हो जाएगा.
- यह हाइपरसोनिक गति से चलता है, जिससे इसकी सफलता बेहद तेज मिसाइल बनाने में काम आएगी.
- किसी देश के हमला करने पर भारतीय इंजीनियर स्पेस में जाकर दुश्मन का कम्युनिकेशन सिस्टम फेल कर सकते हैं.
- इससे किसी अनमैन्ड अटैकिंग ड्रोन की तरह अंतरिक्ष में बिना इंसान भेजे ही दुश्मन की सैटेलाइट नष्ट कर सकते हैं.
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