डीएनए हिंदी: 7 अक्टूबर 2023 को जैसा हमला हमास ने इजरायल पर किया था, वैसा हमला भारत पर न हो, इसके लिए सेना तैयारियों में जुट गई है. हमास जैसे हमले से बचने के लिए भारत अपनी सीमाओं ड्रोन के साथ एक विजिलेंस सिस्टम स्थापित करने जा रहा है. देश के रक्षा अधिकारियों ने हाल ही में 6 स्वदेशी ड्रोन विक्रेताओं के साथ बातचीत की है. सीमाओं पर ड्रोन के जरिए सेना सीमा पर होने वाली हर गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखेगी. ड्रोन, सीमावर्ती इलाकों में मंडराएंगे और दुश्मनों पर नजर रखेंगे.
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगले नवंबर में इसके संबंध में कोई आदेश जारी हो सकता है. हालांकि ज्यादातर सुरक्षा अधिकारियों ने इस मामले पर चुप्पी साधी है. रिपोर्ट के मुताबिक सेना इस प्रणाली को मई की शुरुआत में सीमा के कुछ हिस्सों में करेगी.
क्यों सेना को उठाना पड़ा है ये कदम?
भारत, चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों से परेशान है. कभी पाकिस्तान की ओर से आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है तो कभी पीपल्स लिबरेशन आर्मी भारतीय सीमा में दाखिल होने की कोशिश करने लगती है. हिमालयी क्षेत्रों में तनावपूर्ण स्थितियां जस की तस बनी हुई हैं.
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भारत सरकार ने हाल के दिनों में छिड़े कई युद्धों से सबक ली है. यूक्रेन और रूस के युद्ध की शुरुआत में ही भारत को सबक मिल गया था कि हमेशा अपने शस्त्रागार तैयार रखने चाहिए. युद्ध की तैयारियां हमेशा ऐसी ही हों कि कल की जंग होने वाली हो. इजरायल और हमास के बीच शुरू जंग से भी भारत को यही सबक मिल रहा है. हमास के हमले ने देश को और ज्यादा मंथन करने के लिए मजबूर कर दिया है.
पहले भी हमलों का शिकार हो चुका है भारत
भारत पहले भी ऐसे हमलों का शिकार हो चुका है. साल 2008 में पाकिस्तान की ओर से हमलावर आतंकी हथियारों और हथगोले से लैस होकर मुंबई समुद्री सीमा से भारत में घुस गए थे. तीन दिनों तक मुंबई कैप्चर हो गई थी. 166 लोग मारे गए थे, वहीं सैकड़ों लोग घायल हुए थे.
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पश्चिमी सीमा से हथियारों की हो रही तस्करी
भारत के पश्चिमी सीमा से ड्रोन के जरिए हथियारों और ड्रग्स की स्मगलिंग हो रही है. अगर भारत, आज से ड्रोन प्रणाली को सक्रिय करता है तो पूरे इलाकों को कवर करने में करीब 18 महीने लग जाएंगे. इसकी लागत 500 मिलियन डॉलर तक हो सकती है.
क्या होगा ड्रोन का काम?
हाई एल्टीट्यूड वाले स्यूडो सैटेलाइट सौर ऊर्जा से संचालित होंगे. ये बिना लैंडिंग के लंबे समय तक काम कर सकते हैं. ये 24 घंटे सीमावर्ती इलाकों में मंडरा सकते हैं. ये पारंपरिक रडार नेटवर्क के बैकअप के तौर पर भी काम कर सकते हैं. ये सीधे स्थानीय कमांड सेंटरों को सीधे तस्वीरें भेजेंगे.
कैसे भारत हासिल करेगा इतनी बड़ी संख्या में ड्रोन?
ड्रोन सपोर्टेड सॉफ्टवेयर को भारत में ही विकसित किया जाएगा. भारतीय सेना, अभी तक हथियारों के लिए रूसी सपोर्ट पर निर्भर है. भारत 10 साल के 250 अरब डॉलर के सैन्य आधुनिकीकरण प्रयास के बीच स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है.
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अगर भारत अपने ड्रोन सिस्टम को मजबूत कर ले जाता है तो देश की 22,531 किलोमीटर में फैली संवेदनशील सीमाओं पर 24 घंटे देश की नजर होगी. सरकार ने निगरानी और जासूसी करने वाले दो ड्रोन, अमेरिका से मंगवाए थे. चीन और भारत के बीच जब तनाव बढ़ा था तो सरकार ने यह कदम उठाया था.
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