रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष जारी है और पुतिन फिलहाल पीछे हटने के मूड में नहीं नजर आ रहे हैं. रूस के लिए पूर्वी यूक्रेन का हिस्सा अहम है और पुतिन 2014 से ही उस पर कब्जे की रणनीति पर काम कर रहे हैं. 2019 में यूक्रेन ने अपने संविधान में संशोधन कर आग में घी डालने का काम किया था. रूस के हमले के बाद अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस समेत कई पश्चिमी देशों ने रूस पर सख्त प्रतिबंध लागू किए हैं लेकिन पुतिन इन सबसे बेखबर अपने रूख पर अडिग हैं.
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यूक्रेन के समर्थन में अमेरिका, ब्रिटेन, जापान समेत कई देशों ने कठोर प्रतिबंध लगाए हैं. ये प्रतिबंध भी मॉस्को पर दबाव बनाने में नाकाम रहे हैं. जर्मनी ने तो रूस की गैस पाइपलाइन नॉर्ड स्ट्रीम-2 पर ही रोक का ऐलान कर दिया है. इन सबके बाद भी पुतिन अपने स्टैंड पर कायम हैं. उनकी ओर से अब तक पीछे हटना तो दूर यथास्थिति माने रहने का भी कोई संकेत नहीं दिया गया है. रूस ने तो यूक्रेन के 2 इलाकों को स्वतंत्र देश की मान्यता तक दे दी है और अपना स्टैंड स्पष्ट कर दिया है. खुद व्लादिमीर पुतिन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यूक्रेन पर रूसी भाषी लोगों के नरसंहार करने का आरोप लगाया है.
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अमेरिका ने पिछले कुछ सालों में यूक्रेन में भारी निवेश किया है. यूक्रेन की सीमाएं रूस से सटी हैं और वह उसके लिए बफर जोन है. ऐसे में रूस को यह आशंका है कि यूक्रेन में अमेरिका के भारी निवेश से दुश्मनों की पहुंच उसकी सीमा तक हो जाएगी. दूसरी ओर पूर्वी यूक्रेन का इलाका आर्थिक तौर पर समृद्धि का क्षेत्र है. वहां लोहे और कोयले के खान हैं. रूस के आर्थिक और सामरिक हितों के लिए यह इलाका महत्वपूर्ण है. रूस ने क्रीमिया को मिलाकर 2014 में ही संकेत दे दिया था कि उसका अगला निशाना यूक्रेन है.
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यूक्रेन रूस से अलग होकर ही नया देश बना है. 2014 तक दोनों देशों के बीच तनातनी जैसे हालात नहीं थे. देश में बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे हावी थे. इसके अलावा दशकों से यूक्रेन के मूल लोगों को यह बात खटक रही थी कि मुट्ठी भर रूसी लोग उन पर शासन कर रहे हैं. देश की राजनीति से लेकर अर्थव्यवस्था तक उनका दबदबा है. इस वजह से विद्रोह की चिंगारी सुलगती रहती थी लेकिन 2014 में बड़ा बवाल हुआ था. यूक्रेनी लोगों के विद्रोह ने संसद को अपने रूसी समर्थक राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को हटाने के लिए बाध्य कर दिया था. उसी साल यूक्रेन ने अमेरिका और यूरोप समर्थक नेता पेट्रो पोरोशेंको को राष्ट्रपति चुन लिया था.विक्टर यानुकोविच रूस में निर्वासन काट रहे हैं. 2019 में यूक्रेन ने संविधान में संशोधन कर खुद को यूरोपीय संघ और नाटो सैन्य संगठन का हिस्सा बनने का ऐलान कर दिया था. नाटो सदस्यता और संविधान संशोधन ने पुतिन को गुस्से से बेहाल कर दिया और नतीजा अब युद्ध जैसी परिस्थितियों के तौर पर दिख रहा है.
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यूक्रेन संकट पर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की है. इसमें उन्होंने बार-बार आधुनिक यूक्रेन कहा है. आधुनिक यूक्रेन से पुतिन का मतलब है कि यूक्रेन बोल्शेविक क्रांति का आविष्कार है. बहुसंख्य रूसियों की मान्यता है कि यूक्रेन अलग संप्रभु देश नहीं है. ऐसे में उस पर सैन्य हस्तक्षेप किसी देश पर हमला नहीं है. यूक्रेन का ज्यादातर हिस्सा रूसी जारशाही के अधीन रहा था लेकिन कुछ हिस्से पर तुर्की-ऑटोमन साम्राज्य का भी कब्जा रहा था. कैथरीन द ग्रेट ने 1764 में यूक्रेन को रूसी जारशाही के अधीन कर दिया था. एक अलग देश के तौर पर यूक्रेन का जन्म सोवियत रूस से अलग होने के बाद हुआ है.
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रूस के यूक्रेन से सामरिक और रणनीतिक हित जुड़े हैं. साथ रूस और यूक्रेन का पुराना साझा अतीत भी है. ऐसे में सवाल उठता है कि अमेरिका को इस छोटे से यूरोपीय देश में इतनी दिलचस्पी क्यों है? अमेरिका की विदेश नीति को करीब से समझने वाले जानते हैं कि अमेरिकी दुश्मन की हर ताकत, हर चाल पर नजर रखने और नियंत्रित करने ही नहीं मौका पड़ने पर उसे अलग-थलग करने में यकीन रखते हैं. यूक्रेन में अमेरिका के भारी सैन्य निवेश के पीछे भी यही रणनीति है. इसके अलावा 2014 में क्रीमिया को रूस में मिलाने के बाद से मॉस्को के हौसले बुलंद है. अमेरिका किसी सूरत में यूक्रेन मामले में ऐसा नहीं होने देना चाहता है.