डीएनए हिंदी: शराब के कारोबार (Liquor Business) को लेकर राज्यों की नीतियां, ठेकों के लाइसेंस और शराब से होने वाली कमाई लंबे समय से चर्चा में रही है. हाल ही में दिल्ली सरकार की एक्साइज पॉलिसी (Excise Policy) पर इतना विवाद छिड़ा कि दिल्ली सरकार को अपनी नई आबकारी नीति ही वापस लेनी पड़ गई. विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं (Welfare Schemes) को चलाने के लिए जो पैसा आता है उसका मुख्य स्रोत शराब से मिलने वाला राजस्व (Liquor Revenue) ही होता है. भारत के राज्य सालभर में शराब बेचने से ही लगभग तीन लाख करोड़ रुपये की कमाई करते हैं. कई राज्यों की कुल कमाई का 10 से 20 फीसदी हिस्सा शराब की बिक्री से ही आता है. यही वजह है कि राज्य सरकारें (State Governments) शराब की नई दुकानें खोलने और शराब से मिलने वाले राजस्व को बढ़ाने के लिए अलग-अलग कदम उठाती हैं.

कर्नाटक सरकार के कुल राजस्व का 14.27  प्रतिशत, दिल्ली सरकार का 11.37 प्रतिशत, हरियाणा सरकार का 10.49 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश सरकार का 9.92 प्रतिशत, तेलंगाना सरकार का 9.65 प्रतिशत, मध्य प्रदेश का 7.35 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल का 8.62 प्रतिशत और पंजाब सरकार का 7.35 प्रतिशत राजस्व सिर्फ़ शराब की बिक्री से ही आता है. बिहार सरकार शराब से कोई कमाई नहीं करती है क्योंकि बिहार में पूरी तरह से शराबबंदी लागू है.

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शराब जैसी कमाई किसी दूसरी चीज में नहीं
एक्सपर्ट्स का मानना है कि शराब से मिलने वाला राजस्व देश के कई राज्यों जैसे कि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और अन्य के लिए एक प्रमुख स्रोत है. मद्रास स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के निदेशक डॉ केआर शनमुगम ने बताया कि भारतीय राज्यों को शराब की बिक्री से 2.70 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा की कमाई होती है. यह एक प्रमुख स्रोत है और इस तरह का दूसरा स्रोत नहीं मिल सकता. उनके मुताबिक, राज्य सरकारें शराब पर उत्पाद शुल्क, वैट और अन्य टैक्स वसूलते हैं.

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राज्य सरकारें लाइसेंस देकर शराब की दुकानें खोलती हैं. हाल ही में तमिलनाडु ने शराब की कीमतों में बढ़ोतरी की है. डॉ. शनमुगम ने कहा कि तमिलनाडु शराब से राजस्व के रूप में लगभग 37,000 करोड़ रुपये कमाता है, जो कि राज्य के कुल राजस्व का लगभग 21 प्रतिशत है. डॉ. शनमुगम ने कहा, 'इसके अलावा राज्य का कर्ज वित्त वर्ष 2013 के अंत में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (एसजीडीपी) 26 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान है.' उनके अनुसार, राज्य के स्थायी कर्ज और एसजीडीपी का अनुपात 20 प्रतिशत होगा.

'कम समय में कमाई तो लेकिन स्वास्थ्य पर बढ़ता है खर्च'
भारतीय राज्यों को अपने कर्ज को नियंत्रित करने और अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार करने के लिए अपनी फिजूलखर्ची पर अंकुश लगाना चाहिए. डॉ. शनमुगम ने कहा कि शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और कम समय में इससे सरकार को ज्यादा राजस्व मिल सकता है लेकिन लंबे समय में स्वास्थ्य सेवा के रूप में खर्च अधिक होगा.

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इसके अलावा शराब का सेवन करने वाले व्यक्ति की आर्थिक लागत को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, 'आजकल स्कूल जाने वाले भी शराब पीने लगे हैं, जो राज्य और देश के लिए स्वस्थ संकेत नहीं है.' राज्यों के लिए वैकल्पिक राजस्व स्रोतों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह बहुत सीमित है. शराब पर उत्पाद शुल्क राज्य के अपने टैक्स रेवेन्यू का एक बड़ा हिस्सा है. इसलिए राज्य इसे वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था के तहत नहीं चाहते हैं.

'शराबबंदी से नहीं चलेगा काम'
डॉ. शनमुगम ने कहा, 'शायद केंद्र सरकार राज्यों को अपने नागरिकों पर आयकर लगाने की अनुमति दे सकती है. ऐसे राज्य हैं जो शिकायत कर रहे हैं कि उनके नागरिक केंद्र सरकार को बड़ी मात्रा में टैक्स देते हैं लेकिन केंद्र सरकार से राज्य सरकारों को बहुत कम पैसे ही मिल पाते हैं.' अलग-अलग राज्यों द्वारा शराबबंदी लागू करने से काम नहीं चलेगा क्योंकि शराब का सेवन करने वाले लोग पड़ोसी राज्यों से शराब खरीद सकते हैं.

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शनमुगम ने कहा, 'केंद्र सरकार की ओर से शराब बिक्री की एक अखिल भारतीय नीति होनी चाहिए. साथ ही, राज्यों द्वारा शराब की उपलब्धता को प्रतिबंधित करने के लिए लागू की जानी चाहिए.' तमिलनाडु में, दो प्रमुख दल-एआईएडीएमके और डीएमके शराबबंदी लागू नहीं करना चाहते क्योंकि शराब एक प्रमुख राजस्व स्रोत है. सत्ता से बाहर रहते हुए तमिलनाडु में शराबबंदी की मांग करने वाली डीएमके भी अब इस मुद्दे पर खामोश है.

केवल पीएमके ही ऐसी पार्टी है जो शराब पर प्रतिबंध लगाने की अपनी मांग पर अडिग है. पीएमके के मुताबिक, सरकारी अस्पतालों में आने वाले करीब 30 फीसदी लोगों की सेहत से जुड़ी समस्याएं शराब से जुड़ी होती हैं. पीएमके का कहना है, 'इस खर्च में कमी से सरकार के पास उपलब्ध राशि में बढ़ोतरी होगी.' हालांकि, राजनीतिक दलों के पास सत्ता पर कब्जा करने/बनाए रखने का एक अल्पकालिक लक्ष्य है और मुफ्त उपहार एक उपकरण बन गए हैं जबकि सुप्रीम कोर्ट मुफ्तखोरी के खिलाफ एक मामले की सुनवाई कर रहा है.

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why liquor revenue is very important for governments here is how much they earn
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शराब पर टिका है राज्यों का 'अर्थशास्त्र', जानिए सख्त फैसले लेने में क्यों हिचकती
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शराब से जमकर कमाई करती हैं सरकारें
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शराब से जमकर कमाई करती हैं सरकारें

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शराब पर टिका है राज्यों का 'अर्थशास्त्र', जानिए क्यों आसान नहीं है शराबबंदी जैसा फैसला