डीएनए हिंदी: उत्तराखंड (Uttarakhand) का आध्यात्मिक शहर, जोशीमठ डूब रहा है. जमीनें दरक रही हैं, घरों में दरारें पड़ गई हैं, जमीन के नीचे से डरावनी आवाजें आ रही हैं. जोशीमठ में तबाही के सारे संकेत नजर आ रहे हैं. अब इस शहर की विस्थापित हुई आबादी, कभी अपने घर नहीं लौट सकेगी, यही सच है. भू-धंसाव की शुरुआत हो चुकी है, जिसे रोकना किसी भी स्थिति में संभव नहीं है. इस शहर की नियति में ही पलायन है. साल 1976 से ही उत्तराखंड की इस धार्मिक नगरी में लोगों को संकेत मिल रहे थे कि तबाही मच सकती है. लोग 4 दशकों के संकेत समझने में फेल हुए, नतीजा यह निकला कि सबकुछ तहस-नहस हो रहा है. 

पुष्कर सिंह धामी सरकार ने शुक्रवार को जोशीमठ के प्राचीन कस्बे के भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) के कर्मचारियों की तैनाती के आदेश दिया हैं. ये कर्मचारी डूबते शहर का सर्वेक्षण करेंगे. लगातार हो रहे भूस्खलन से शहर के 700 से ज्यादा घरों, होटलों और दुकानों में भारी दरारें आ गई हैं. 

शहर की बर्बादी पर क्या कह रहे हैं लोग?

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शुक्रवार को कस्बे में बड़ा अस्थाई पुनर्वास केंद्र बनाने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने सचिवालय में एक उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता की. उन्होंने अधिकारियों को जोशीमठ में सुरक्षित स्थान पर अस्थाई पुनर्वास केंद्र स्थापित करने के निर्देश दिए. उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ कस्बे के स्थानीय लोगों का दावा है कि भूस्खलन के लिए चल रही जलविद्युत परियोजना और अन्य निर्माण कार्य जिम्मेदार हैं.

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अगर चेत जाती सरकार तो थम जारी बर्बादी

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी 7 जनवरी शनिवार को जोशीमठ का दौरा करने वाले हैं और वह यहां प्रभावित इलाकों का दौरा करेंगे. सीएम आम जनता से मुलाकात भी करेंगे. जगह-जगह दरारें क्यों आ रही हैं, इसका पता लगाने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम ने जोशीमठ में जांच शुरू कर दी है. NTPC के पावर प्रोजेक्ट के साथ जोशीमठ के नीचे बन रही टनल का काम भी बंद कर दिया गया है.एनटीपीसी टनल की भी जांच के आदेश दे दिए गए हैं. सरकारी प्रयासों को देखकर साफ कहा जा सकता है कि ऐसे प्रयास अगर सही समय पर शुरू होते तो एक आबाद शहर, खंडहर न बनता.

परियोजनाओं तबाह किया जोशीमठ?

जोशीमठ के लोग टनल और इससे जुड़ी परियोजनाओं को दरार और भूस्खलन के लिए दोष दे रहे हैं. उनका ऐसा कहना गलत नहीं है. जमीन के अंदर बनी गहरी सुरंगों ने जमीन के ऊपरी स्तर को तहस-नहस कर दिया है. अवैध कंस्ट्रक्शन,  विकास से नाम पर अंधाधुंध तब्दीलियों ने जोशीमठ को तबाह करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है. 


कितना अहम है जोशीमठ?

जोशीमठ शहर, देश के प्राचीनतम शहरों में से एक है. यह ऋषिकेश-बद्रीनाथ नेशनल हाईवे (NH-7) पर स्थित है. बद्रीनाथ, औली और हेमकुंड साहिब जाने वाले लोगों के लिए सुरक्षित ठिकाना रहा है. लोग यहां रात रुकते थे. यह शहर किसी धार्मिक पर्यटन स्थल की तरह हमेशा से रहा है. जोशीमठ भारतीय सशस्त्र बलों के लिए भी रणनीतिक तौर पर अहम है. यह सेना की सबसे महत्वपूर्ण छावनियों में से एक है. इस शहर के अस्तित्व पर ही अब खतरा मंडरा रहा है.

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क्यों धंसता जा रहा है जोशीमठ?

यह शहर धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों के संगम, विष्णुप्रयाग को जोड़ती हुई एक पहाड़ी पर स्थित है. 2022 की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जोशीमठ की जमीन पर भार अधिक है. यह भार अब टूट रहा है और इसके धंसने की वजह बन रहा है.

ऐसा नहीं है कि यह शहर एक दिन में ही डूबने लगा है. इसकी चेतावनी भूवैज्ञानिक साल 1976 से ही दे रहे हैं. इस क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिक और भूवैज्ञानिक दशकों से कह रहे हैं कि यह शहर तबाह हो सकता है. जोशीमठ की तबाही को लेकर डराने वाली एक रिपोर्ट साल 1976 में सामने आई थी. सरकार की ओर से नियुक्त मिश्रा आयोग ने यह संकेत दिया था कि जोशीमठ एक भूस्खलन स्थल पर बसा हुआ है. यहां दोबारा जमीन दरक सकती है. अंधाधुंध निर्माण ने समय से पहले ही जोशीमठ को तबाह कर दिया है.

कमजोर जमीन पर बसा है जोशीमठ, नहीं झेल सकता विकास का भार

जोशीमठ के डूबने की सबसे बड़ी वजह शहर की भौगोलिक स्थिति है. जोशीमठ भूस्खलन के बाद उभरे मलबे पर स्थापित है. जोशीमठ की जमीन मलबे के भार से दबी हुई है, जिसके दरकने की आशंका हमेशा बनी हुई थी. यह शहर अंधाधुंध निर्माण को सहने में असक्षम है. अंधाधुंध निर्माण, पनबिजली परियोजनाएं, नेशनल हाईवे के नाम पर पेड़ों-पर्वतों की कटाई ने पहाड़ी इलाकों की तबाही की पटकथा लिख दी है. जोशीमठ में कुछ भी अप्रत्याशित नहीं हो रहा है. 

विष्णुप्रयाग से बहने वाली धाराओं के कारण कटाव से जोशीमठ पहले ही जूझ रहा है. साल-दर-साल यह शहर दरकता रहा है. इस इलाके में कई बिखरी हुई चट्टानें, भूस्खलन के बाद जमे मलबे पर टिकी हुई हैं. बोल्डर, कायांतरित शैलों और भुरभुरी मिट्टी से बनी जोशीमठ की जमीन का दरकरना, कहीं से भी चौंकाने वाला नहीं है.  

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वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के शोधकर्ताओं ने 2022 एक रिपोर्ट तैयार की थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि कायांतरित शैलें, तेजी से अपक्षयित होती हैं. मानसून, बारिश और भौगोलिक उत्परिवर्तनों की वजह से इनमें बदलाव आता है. जोशीमठ में यही हो रहा है. 

क्या जोशीमठ को बचाया जा सकता है?

जोशीमठ शहर को पूरी तरह से बचा लेना बेहदम मुश्किल है. यह जमीन भूस्खलन के बाद तैयार हुई है. इसकी भूपर्पटी बेहद कमजोर है. जमीन के भीतर अस्थिर चट्टानें हैं, जो खिसक रही हैं. ऐसी स्थिति भी आ सकती है यह शहर दरककर नीचे आ गिरे. यहां लगातार निर्माण हो रहा है, जो पहले से कमजोर जमीन को और कमजोर कर रहा है. 

जोशीमठ की जमीनों से पानी निकल रहा है. सड़कें धंस रही हैं. यह साफ इशारा है कि यहां की मिट्टी बेहद कमजोर है, जिस पर स्थाई, बड़े निर्माण का टिकना असंभव है. भूमिगत जल, ऊपरी सतह की ओर आ रहा है. मटमैला पानी साफ इशारा कर रहा है कि जल तल और भूतल के बीच दूरी कम हो गई है. धौलीगंगा, अलकनंदा से सजा यह शहर, बर्बाद हो रहा है. जोशीमठ का रख-रखाव अब बेहद मुश्किल है. यह शहर अपनी अंतिम यात्रा पर नजर आ रहा है. 

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2013 में जब हिमालयी सुनामी आई थी, तब उसके कीचड़ों से शहर के नाले पट गए. बारिश की अधिकता की वजह से नए कटान बने, जमीन और दरकने की स्थिति में पहुंची. 2021 में इस शहर में भीषण बारिश हुई. पहाड़ों के लिए बारिश पहले ही काल होती है. इन दिनों भूस्खलन की घटनाएं तेजी से बढ़ जाती हैं. अब वैज्ञानिक अगर इस शहर को बचाना चाहते हैं तो उन्हें नई रणनीतियों पर काम करना होगा.

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Why is Joshimath sinking factors responsible for uttarakhand land sinking
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जोशीमठ हो रहा है तबाह, 4 दशकों से वैज्ञानिकों को सता रहा था डर, क्या अब रोकी जा
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Joshimath News: दरकने लगी है जोशीमठ की जमीन. (तस्वीर-PTI)
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Joshimath News: दरकने लगी है जोशीमठ की जमीन. (तस्वीर-PTI)

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जोशीमठ हो रहा है तबाह, 4 दशक से वैज्ञानिकों को सता रहा था डर, क्या रोकी जा सकती है बर्बादी?