डीएनए हिंदी: माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद को शनिवार की रात में प्रयागराज में सरेआम गोलियों से भून दिया गया. दोनों को तब गोली मारी गई, जब पुलिस उनका मेडिकल कराने के लिए लेकर जा रही थी. इसी दौरान तीन हमलावरों ने उत्तर प्रदेश के सबसे कुख्यात दबंग माफिया में से एक पूर्व सांसद अतीक अहमद और उसके भाई की हत्या कर दी. अतीक अहमद को उमेश पाल हत्याकांड में सुनवाई के लिए गुजरात की साबरमती जेल से प्रयागराज लाया गया था. उमेश पाल ही वह शख्स थे, जिनके चलते अतीक का चार दशक से चल रहा उत्तर प्रदेश में माफियाराज रसातल में जाना शुरू हुआ और आखिरकार उसकी मौत का कारण भी बन गया.
दरअसल साल 2006 में उमेश पाल का अपहरण किया गया था. इसका आरोप अतीक अहमद और उसके गैंग पर लगा था. इसके बाद से ही अतीक कानून के चंगुल में फंसना शुरू हुआ और उसका साम्राज्य ढहता चला गया.
इस सबकी शुरुआत हुई साल 2005 में 25 जनवरी को हुए राजू पाल हत्याकांड से. राजू पाल उस समय बसपा के विधायक थे और उनको दिनदहाड़े प्रयागराज की सड़कों पर गोली मार दी गई. उमेश पाल इस केस में गवाह थे. आरोप है कि उमेश पाल की गवाही रोकने के लिए 28 फरवरी 2006 को उमेश पाल का अपहरण कर लिया गया. इसके एक साल बाद उमेश पाल ने प्रयागराज के धूमनगंज थाने में साल 2007 में केस दर्ज करवाया.
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गवाही बदलने के लिए किडनैपिंग का आरोप
2007 में यूपी में मायावती की सरकार बन गई थी. मायावती की सरकार बनने के बाद इस एक साल पुराने केस में गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया. इसमें कुल 11 लोगों को नामजद किया गया जिसमें अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ का नाम भी शामिल था. अब 28 मार्च को इसी केस के सिलसिले में अतीक अहमद को स्पेशल एमपी/एमएलए कोर्ट में व्यक्तिगत तौर पर पेश किय जाएगा. कहा जा रहा है कि उमेश पाल अपहरण केस में अब फैसला सुनाया जा सकता है.
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उमेश पाल ने अपनी शिकायत में कहा था कि 28 फरवरी 2006 को अतीक अहमद और उसका भाई अशरफ अपने साथियों के साथ आया और उमेश को उठाकर अपने दफ्तर ले गया. वहां उमेश को जमकर मारा-पीटा गया और गवाही न पलटने पर जान से मारने की धमकी दी. उमेश पाल ने पांच लोगों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस ने जब जांच की तो और भी लोगों के नाम इसमें शामिल किए गए.
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उमेश पाल अपहरण: क्या है 17 साल पुराना वह केस जिसने अतीक को पहले दर-दर का भिखारी बनाया, आखिर में मौत मिली