डीएनए हिंदीः अग्निपथ स्कीम (Agneepath Scheme) को लेकर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है. दिल्ली से लेकर बिहार और झारखंड तक प्रदर्शन हो रहे हैं. कई जगहों पर यह प्रदर्शन हिंसक भी हो गए हैं. करोड़ों रुपये की सरकारी संपत्ति बर्बाद हो चुकी है. छात्रों से शुरू हुआ यह प्रदर्शन अब किसानों तक पहुंच चुका है. किसान संगठन भी इस लड़ाई में कूद चुके हैं. किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने कहा है कि देशभर में एक बड़े आंदोलन की जरूरत, अंतिम सांस तक हक के लिए लड़ेंगे. आखिर किसान इस आंदोलन की अगुवाई को आगे क्यों आ गए हैं. इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं.
अग्निवीरों की लड़ाई में क्यों कूदे किसान?
रविवार को तीनों सेनाओं की संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में यह साफ कर दिया गया कि अग्निवीर स्कीम का सीधा असर ग्रामीण युवाओं पर पड़ेगा. दरअसल सेना में 70 फीसदी युवा ग्रामीण इलाकों से ही आते हैं. यूपी से लेकर बिहार तक ग्रामीण इलाकों में रहने वाले युवाओं में सेना में शामिल होने का जुनून रहता है. यह युवा किसान परिवार से ही आते हैं. ऐसे में किसान भी धीरे-धीरे अपने बच्चों के भविष्य की चिंता के लिए सामने आ रहे हैं.
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राकेश टिकैट को आंदोलन से होगा फायदा?
कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन का चेहरा रहे राकेश टिकैत इस योजना को लेकर खुलकर सामने आ गए हैं. उन्होंने कहा कि इस योजना को लेकर बड़े आंदोलन की जरूरत है. दरअसल पीएम मोदी के कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान के बाद किसान आंदोलन एक झटके में समाप्त हो गया. राकेश टिकैत ने यूपी समेत कई राज्यों में बीजेपी के खिलाफ वोट देने की अपील भी की लेकिन नतीजों में उसका असर नहीं दिखा. खुद राकेश टिकैत को ही उनके संगठन से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. कई जगहों पर उनके साथ दुर्व्यवहार की भी खबरें सामने आई. ऐसे में राकेश टिकैत अग्निवीर योजना के बहाने नए आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं.
किसान संगठनों को एकजुट करना भी मजबूरी?
कृषि कानूनों को लेकर हुए आंदोलन को लेकर किसान संगठनों में फूट खुलकर सामने देखी गई. संयुक्त किसान मोर्चा से धीरे-धीरे कई संगठन अलग हो गए. कुछ किसान संगठनों ने राकेश टिकैत और उनके सहयोगियों पर आंदोलन के बहाने राजनीति का भी आरोप लगाया. पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में जब राकेश टिकैत बीजेपी के खिलाफ प्रचार के लिए उतरे तो कई लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया. ऐसे में अग्निवीर योजना के खिलाफ आंदोलन को लेकर इस किसान संगठनों को फिर एक मंच पर लाने की तैयारी की जा सकती है.
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किसान के बेटे भरेंगे सेना में 'जोश'
सेना में अग्निवीरों को शामिल करने का फैसला नया नहीं है. इस पर पिछले तीन दशक में कई बार बहस हो चुकी है. कारगिन युद्द के दौरान इसकी सबसे ज्यादा जरूरत देखी गई. इसे लेकर कई रिपोर्ट भी सामने आ चुकी हैं. स्वामीनाथन अय्यर की रिपोर्ट में कहा गया कि भारत को साइबर युद्ध, ड्रोन, मिसाइल और यहां तक कि स्पेस वॉर पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी सैन्य क्षमता का तत्काल आधुनिकीकरण करने की जरूरत है. जमीन पर सैनिकों के बूट अब भी मायने रखते हैं, लेकिन पहले से कम. सेना में जोश (युवा) के साथ होश (अनुभव) के कॉम्बिनेशन पर सहमति बनाई गई है. सेना में 10वीं और 12वीं पास कर भर्ती होने वाले युवा ग्रामीण इलाके से ही आते हैं.
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Agneepath Scheme का विरोध क्यों कर रहे हैं किसान, क्या छात्रों की लड़ाई अब अन्नदाता लड़ेंगे?