डीएनए हिंदीः लोकसभा में देशभर के अलग-अलग राज्यों से सांसद चुनकर पहुंचते हैं. संसद में सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व होता है. इनमें अलग-अलग समुदायों का प्रतिनिधित्व हो जाता है. क्या आप जानते हैं तो देश में एक ऐसा भी समुदाय है जिसके प्रतिनिधि राष्ट्रपति खुद चुनकर लोकसभा में भेजते थे. इनके लिए दो सीटें भी आरक्षित थी. एंग्लो इंडियन (Anglo Indian) समुदाय के लोगों को लेकर देश में काफी समय से बहस चल रही है. इस समुदाय के लोगों को राष्ट्रपति खुद चुनकर संसद में भेजते रहे हैं. आइये क्या है कि यह समुदाय कौन है और इससे जुड़ा इतिहास क्या रहा है.
कौन होते हैं एंग्लो इंडियन? (Who are Anglo Indians)
एंग्लो इंडियन का जिक्र संविधान के अनुच्छेद 366 (2) के तहत है. इसमें एंग्लो इंडियन ऐसे किसी व्यक्ति को माना जाता है जो भारत में रहता हो और जिसका पिता या कोई पुरुष पूर्वज यूरोपियन वंश के हों. यह शब्द मुख्य रूप से ब्रिटिश लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो कि भारत में काम कर रहे हों और भारतीय मूल के हों. इतिहास पर नजर डालें को एंग्लो-इंडियन के भारत में आने की शुरुआत उस समय हुई थी जब अंग्रेज भारत में रेल की पटरियां और टेलीफोन लाइन बिछा रहे थे. इस काम के लिए यूरोप से लोग भारत आए थे और बाद में उन्होंने यहीं शादी की और भारत में ही बस गए.
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लोकसभा और विधानसभाओं में होते थे मनोनीत
एंग्लो इंडियन्स भारत का अकेला समुदाय हैं जिनका अपना प्रतिनिधी संसद और राज्यों की विधानसभा में मनोनीत करके भेजा जाता है. लोकसभा में कुल 545 सीटें होती हैं इनमें से 543 पर सांसद चुनकर आते हैं. अगर इनमें कोई भी सांसद इस समुदाय का नहीं होता है तो राष्ट्रपति इस समुदाय के दो लोगों को चुनकर लोकसभा में भेज सकते हैं. वहीं राज्यों में राज्यपाल को यह अधिकार है कि (यदि विधानसभा में कोई एंग्लो इंडियन चुनाव नहीं जीता है) वह 1 एंग्लो इंडियन को सदन में चुनकर भेज सकता है. अगर यह जनता द्वारा ना चुनने के बजाए राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं तो उन्हें राष्ट्रपति पद के चुनाव में वोट देने का अधिकार नहीं होता है. डेरेक ओ ब्रायन संभवतः अकेले एंग्लो इंडियन हैं, जिन्होंने 2012 में राष्ट्रपति चुनाव में वोट डाला था हालाँकि उन्होंने यह मतदान तृणमूल कांग्रेस से सांसद होने के नाते किया था.
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2019 में खत्म हुआ प्रतिनिधित्व
2019 में मोदी सरकार ने फैसला लेकर संसद में इनके प्रतिनिधित्व को खत्म कर दिया. बता दें कि हर दस साल के बाद आरक्षण को लेकर समीक्षा होती है. इस समीक्षा में तय होता है कि इन दो आरक्षित सीटों पर आरक्षण रखा जाए या नहीं. 25 जनवरी 2020 को आरक्षण की अवधि समाप्त हो गई. इसे बाद में कैबिनेट ने नहीं बढ़ाया. इस तरह जॉर्ज बेकर और रिचर्ड हे एंग्लो इंडियन समुदाय के आख़िरी सांसद हो गए.
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एंग्लो इंडियन कौन होते हैं? क्यों संसद और विधानसभा में इनके लिए खाली रहती थी सीटें