डीएनए हिंदी: भारतीय संविधान (Constitution) का भाग 4, 'राज्य की निति के निदेशक तत्व' की बात करता है. संविधान का यह भाग किसी भी न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं है, यही इसकी सबसे बड़ी खामी है. यह एक सलाह है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देशित किया जाता है कि कानून बनाते समय उन्हें निदेशक तत्वों का ध्यान रखना चाहिए. संविधान का अनुच्छेद 44 कहता है कि नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता (Uniform Civil Code) होनी चाहिए.
अनुच्छेद 44 के मुताबिक, 'राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा.'
'प्राप्त करने का प्रयास.' अगर व्याख्या के लिए गुंजाइश बचे तो सुविधानुसार इसका दुरुपयोग हो सकता है. किसी भी सरकार ने एक समान सिविल संहिता बनाने का साहस नहीं लिया.
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अगर समान नागरिक संहिता लागू हो जाए तो क्या होगा?
अगर समान नागरिक संहिता लागू हो जाए तो सभी धर्मों के व्यक्तिगत कानून खत्म हो जाएंगे. अभी हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लिए अलग-अलग नियम हैं. मुस्लिम शरियत कानून को मानते हैं. इसका संहिताकरण द मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 के तौर पर किया गया है.
मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 के मुताबिक एक मुस्लिम पुरुष को बिना पहली पत्नी की सहमति के 4 शादियां करने की इजाजत है. तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह जैसी कुप्रथाओं को लेकर आए दिन बहस होती है. केंद्र सरकार ने अब तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित कर दिया है.
हर धर्म के हैं अपने व्यक्तिगत कानून
मुस्लिम लॉ में तलाक से संबंधित अधिकार पुरुषों के पास ज्यादा हैं, महिलाओं के पास बेहद कम. एज ऑफ प्यूबर्टी और विवाह संबंधी अधिकार भी बाकी धर्मों की तुलना में अलग हैं. ऐसे में अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो सभी को शादी और जमीन-जायदाद और वसीयत को लेकर बनाए गए एक कानून को ही मानना होगा. अभी धर्मों के अलग-अलग कानून हैं, जिसके हिसाब से कोर्ट में मुकदमे चलते हैं.
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यूनिफॉर्म सिविल कोड एक पंथनिरपेक्ष या सेक्युलर कानून है, जिसके लागू होने के बाद सभी धर्मों के व्यक्तिगत कानून खत्म हो जाएंगे. अभी हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन और पारसी समुदाय के अलग-अलग धार्मिक कानून हैं. हिंदू लॉ ही बुद्ध, जैन और सिख धर्मों के अनुयायियों पर भी लागू होता है. वसीयत और शादी जैसे विषयों पर इन कानूनों को मानना ही होता है. तलाक और उसके बाद के भरण-पोषण को लेकर भी नियम पर्सनल लॉ के जरिए ही तय किए जाते हैं. ऐसे में अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो ये सभी व्यक्तिगत कानून खत्म हो जाएंगे और नागरिकों को एक समान सिविल संहिता पर जोर देना होगा.
क्यों सरकारों को यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने से डर लगता है?
यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू कराना आसान नहीं है. वजह इसके पीछे की राजनीति है. अपने-अपने धार्मिक कानूनों के प्रति कुछ लोग बेहद पूर्वाग्रही होते हैं. जब-जब यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बहस होती है, तब-तब समुदाय विशेष के लोग इसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं.
मुस्लिम समाज भी शरियत कानूनों को लेकर बेहद कट्टर है. ऐसे में सबसे ज्यादा मुखर विरोध इसी समाज की ओर से होता है. सरकारें हिंसात्मक और उग्र विरोध प्रदर्शनों से डरती हैं. नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ भड़के हिंसक आंदोलनों को अभी देश की जनता नहीं भूली है. धार्मिक कानूनों के संहिताकरण पर भी ऐसे ही घमासान होने की आशंका में सरकार भी लागू करने से पहले सौ दफा सोचती है.
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भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने साल 2019 के लोकसभा चुनावों में अपने मेनिफेस्टो में दावा किया था कि अगर सरकार बनी तो यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करेगी. तीन साल बीतने के बाद भी अभी तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है.
क्यों एक बार फिर चर्चा में है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
गुजरात में विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की बीजेपी सरकार ने शनिवार को समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए एक समिति गठित करने का फैसला किया है. सीएम भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने समिति के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दी है. गुजरात के इस फैसले की वजह से एक बार फिर देश में नई बहस शुरू हो गई है.
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क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड, लागू करने में क्या हैं चुनौतियां, क्यों हिचकती है सरकारें?