डीएनए हिंदी: गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) के एक बयान ने देश में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) पर नई बहस छेड़ दी है. अमित शाह ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकारें यूनिफॉर्म सिविल कोड पर काम कर रही हैं. कोल्हापुर में एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने ट्रिपल तलाक खत्म किया और मुस्लिम महिलाओं को अधिकार दिलाया. 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 और 35 A उखाड़कर फेंक दिया. एक देश में दो निशान, दो प्रधान, दो विधान नहीं चलेंगे. अमित शाह ने साफ इशारा किया है कि अब यूनिफॉर्म सिविल कोड पर केंद्र सरकार काम करेगी.
एक देश में दो निशान, दो प्रधान, दो विधान के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी हमेशा मुखर रही है. देश में दक्षिणपंथी गुट हमेशा से मांग करते रहे हैं कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होना चाहिए. लोग अपने धार्मिक कानूनों को सरेंडर नहीं करना चाहते हैं, यही वजह है कि कभी कोई सरकार इसे लागू करने का साहस नहीं कर पाई. बीजेपी सरकार के प्रमुख एजेंडे में यह शुमार हो रहा है. अब अनुच्छेद 370, तीन तलाक और राम मंदिर की तरह यह भी बीजेपी सरकार की प्राथमिकता बनता जा रहा है. आइए जानते हैं क्या है यह कानून, क्यों इसे लेकर होती है बहस और इसे लागू करने में चुनौतियां क्या हैं.
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
भारतीय संविधान का भाग 4 में 'राज्य की नीति के निदेशक तत्व' हैं. ये तत्व केवल राज्यों को एक निर्देश देते हैं, ये किसी भी कोर्ट में प्रवर्तनीय नहीं हैं. राज्य की नीति के निदेशक तत्व राज्यों के लिए एक सलाह की तरह हैं. इसे मुताबिक, 'केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देशित किया जाता है कि कानून बनाते समय उन्हें निदेशक तत्वों का ध्यान रखना चाहिए. संविधान का अनुच्छेद 44 कहता है कि नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता होनी चाहिए.'
अनुच्छेद 44 कहता है, 'राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा.'
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अनुच्छेद की व्याख्या करें तो यह स्पष्ट है कि यह महज एक सलाह है. धार्मिक संगठन यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध करते हैं. धार्मिक संगठनों को लगता है कि अगर यह कानून लागू हो गया तो उनके व्यक्तिगत कानून खतरे में पड़ जाएंगे. इस कानून का सबसे ज्यादा विरोध इस्लामिक संगठन करते हैं.
क्यों यूनिफॉर्म कोड का विरोध करते हैं धार्मिक संगठन?
संवैधानिक मामलों पर नजर रखने वाले अधिवक्ता अनुराग कहते हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड अगर लागू किया जाता है तो सभी धर्मों को अपने व्यक्तिगत कानून सरेंडर करने होंगे. अभी हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी समुदाय के लिए अलग-अलग नियम हैं.
सिद्धार्थनगर यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई करने वाले स्कॉलर मृत्युंजय शुक्ल कहते हैं कि मुसलमान शरियत कानूनों को मानते हैं. द मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 उनका व्यक्तिगत कानून है, जो अधिकांशत: कुरान और हदीस पर आधारित है. इस्लामिक संगठन अपने धार्मिक कानूनों में किसी भी तरह का कानूनी दखल नहीं मानते हैं. ऐसे में वह लगातार इसका विरोध करते हैं.
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विशाल अरुण मिश्रा कहते हैं कि मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 कहता है कि एक मुस्लिम पुरुष को बिना पहली पत्नी की सहमति के 4 शादियां करने की इजाजत है. अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो अन्य धर्मों की तरह मुस्लिम पुरुषों पर भी बहुविवाह प्रथा का पालन करने पर जुर्माना और जेल हो सकती है.
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सिद्धार्थनगर बार एसोसिएशन के सदस्य एडवोकेट आनंद मिश्र कहते हैं, 'तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह जैसी कुप्रथाओं को लेकर सरकार कड़े कदम उठा चुकी है. शरियत कानून इनकी इजाजत देता है लेकिन ये कानून मानवाधिकारों की नजर से भी गलत हैं. इन्हें तत्काल खत्म करने की जरूरत है. अगर देश में भेदभाव वाले सभी कानूनों को खत्म करने की जरूरत है. केंद्र सरकार ने अब तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित कर दिया है. संवैधानिक और विधिक दृष्टि से अगर समान नागरिक संहिता लागू की जाती है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं होगा. यह मौजूदा समय की मांग है.'
व्यक्तिगत कानूनों को खत्म करेगी समान नागरिक संहिता
एडवोकेट अनुराग कहते हैं, 'इस्लाम में तलाक से संबंधित अधिकार पुरुषों के पास अधिक हैं. महिलाओं के अधिकार बेहद सीमित हैं. इस्लाम में एज ऑफ प्यूबर्टी और विवाह से जुड़े नियम दूसरे धर्मों की तुलना में अलग है. अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो सभी को शादी और जमीन-जायदाद और वसीयत को लेकर बनाए गए एक कानून को ही मानना होगा. अभी धर्मों के अलग-अलग कानून हैं, जिसके हिसाब से कोर्ट में मुकदमे चलते हैं. यूनिफॉर्म सिविल कोड अगर लागू होता है तो व्यक्तिगत कानून खत्म हो जाएंगे.'
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
यूनिफॉर्म सिविल कोड एक पंथनिरपेक्ष या सेक्युलर कानून है, जिसके लागू होने के बाद सभी धर्मों के व्यक्तिगत कानून खत्म हो जाएंगे. अभी हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन और पारसी समुदाय के अलग-अलग धार्मिक कानून हैं. हिंदू लॉ ही बुद्ध, जैन और सिख धर्मों के अनुयायियों पर भी लागू होता है. वसीयत और शादी जैसे विषयों पर इन कानूनों को मानना ही होता है. तलाक और उसके बाद के भरण-पोषण को लेकर भी नियम पर्सनल लॉ के जरिए ही तय किए जाते हैं. ऐसे में अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो ये सभी व्यक्तिगत कानून खत्म हो जाएंगे और नागरिकों को एक समान सिविल संहिता पर जोर देना होगा.
क्यों सरकारों को यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने से डर लगता है?
यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू कराना आसान नहीं है. वजह इसके पीछे की राजनीति है. धार्मिक संगठन इसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं. हिंदू संगठन अपने व्यक्तिगत कानूनों को सरेंडर कर चुके हैं. जब-जब यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बहस होती है, तब-तब इस्लामिक संगठन इसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं.
शरियत कानून और यूनिफॉर्म सिविल कोड
एडवोकेट अनुराग कहते हैं कि मुस्लिम समाज शरियत कानूनों को लेकर बेहद कट्टर है. यही वजह है कि इसका विरोध इस्लामिक संगठन ज्यादा करते हैं. देश नागरिकता कानूनों और एनआरसी पर हिंसात्मक विरोध प्रदर्शन देख चुका है. सरकारें विरोध प्रदर्शनों से डरती हैं. नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ भड़के हिंसक आंदोलनों को अभी देश की जनता नहीं भूली है. धार्मिक संगठन इसे व्यक्तिगत कानूनों पर प्रहार के तौर पर देखते हैं. हंगामे से बचने के लिए सरकारें इस मुद्दे को टच नहीं करती हैं.
किन राज्यों में यूनिफॉर्म सिविल कोड पर चल रहा है विचार?
गोवा में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है. हाल ही में गुजरात सरकार ने समान नागरिक संहिता के लिए एक समिति का गठन किया है. असम सरकार इसे लागू करने पर विचार कर रही है. उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता पर ड्राफ्ट तैयार हो गया है. कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में समान नागरिक संहिता पर विचार चल रहा है. ऐसे में अमित शाह के इस बयान से संकेत लगाए जा रहे हैं कि अब इस पर भी केंद्र सरकार कानून बना सकती है.
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यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है, क्यों मोदी सरकार के लिए है ये सबसे बड़ा टास्क?