डीएनए हिंदीः गृह मंत्रालय ने पॉपुलर फ्रंड ऑफ इंडिया (PFI) के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है. केंद्र सरकार ने पीएफआई पर 5 साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया है. इसके अलावा उसके 8 सहयोगी संगठनों पर भी कार्रवाई की गई है. केंद्र सरकार ने इन संगठनों को गैर कानूनी करार दिया है. अहम बात यह है कि पिछले एक हफ्ते में दो बार PFI के ठिकानों पर केंद्रीय जांच एजेंसियों ED, NIA आदि ने छापेमारी कर अहम सबूत जुटाए थे और संगठन के कई कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया था. पीएफआई पर यह कार्रवाई यूएपीए (UAPA) कानून के तहत की गई है. आखिर यह कानून क्या है और इसमें कितनी सजा का प्रावधान है, विस्तार से समझते हैं.
PFI के अलावा किन संगठनों पर लगा बैन
केंद्र सरकार के मुताबिक पीएफआई पर प्रतिबंध का सख्त एक्शन लिया गया है. वहीं इसी आदेश में PFI के अन्य सहयोगी संगठनों को भी गैरकानूनी बताया गया है. केंद्र सरकार ने PFI के सहयोगियों में रिहैब इंडिया फाउंडेशन (RIF), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (AIIC), नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्ग (NCHRO), नेशनल विमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन रिहैब फाउंडेशन को गैरकानूनी संगठन घोषित किया है.
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क्या है UAPA कानून?
UAPA कानून का पूरा नाम Unlawful Activities (Prevention) Act यानी गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम है. इस कानून को मुख्य तौर पर आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए लाया गया है. इस कानून के तहत आतंकियों और ऐसे संदिग्ध लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है जो आतंकी गतिविधियों में शामिल हो. ऐसे मामलों में यूएपीए कानून के तहत कार्रवाई की जाती है. आतंकी मामलों को लेकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के पास काफी शक्तियां होती है. इस कानून के तहत एनआई संदिग्ध या आरोपी की संपत्ति जब्त औऱ कुर्क भी कर सकता है. इस कानून को 1967 में लाया गया था. इस कानून के लिए संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत दी गई बुनियादी आजादी पर तर्कसंगत सीमाएं लगाने के लिए लाया गया था.
2019 में कानून में हुआ बदलाव
आतंकी गतिविधि संबंधी POTA और TADA जैसे कानून खत्म करने के बाद केंद्र सरकार ने 2019 में इस कानून में कई अहम बदलाव किए. इसे पहले से भी अधिक मजबूत बनाया गया. इस बदलाव के बाद सरकार किसी भी संगठन को आतंकी संगठन घोषित कर सकती है. यह कानून पूरे देश में लागू होता है. इस कानून के तहत किसी व्यक्ति पर संदेह होने मात्र से ही पुलिस या जांच एजेंसी उसे आतंकवादी घोषित कर सकती है. इसके लिए यह भी मायने नहीं रखता कि उस संदिग्ध व्यक्ति का किसी आतंकी संगठन से संबंध है या नहीं. आतंकवादी का टैग हटवाने के लिए उसे सरकार द्वारा बनाई गई रिव्यू कमेटी के पास जाना होगा. हालांकि बाद में कोर्ट में भी अपील की जा सकती है.
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कितना मजूबत है यह कानून?
इस कानून में प्रावधान है कि एनआईए का जांच अफसर सिर्फ एनआईए के डीजी की इजाज़त से कोई भी कार्रवाई कर सकता है. यह कानून एनआईए को असीमित अधिकार दे देता है. UAPA की धारा-16a में कहा गया है कि अगर आतंकी गतिविधि के दौरान किसी भी वजह से कोई मौत हो जाती है तो उसमें अधिकतम फांसी की सजा होगी. या फिर आजीवन कारावास की सजा होगी. इसके साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है. यूएपीए में धारा 18, 16, 19, 20, 38 और 39 के तहत केस दर्ज होता है. आरोपी के आतंकी संगठन से जुड़े होने की बात सामने आने पर धारा 38 लगती है. वहीं, आतंकी संगठनों को मदद पहुंचाने पर धारा 39 लगाई जाती है. इस एक्ट के सेक्शन 43D (2) में किसी शख्स की पुलिस कस्टडी की अवधि दोगुना करने का प्रावधान है. इसके तहत पुलिस को 30 दिन तक की कस्टडी मिल सकती है. अन्य कानूनों की अपेक्षा इसमें न्यायिक हिरासत 30 दिन ज्यादा यानी 90 दिन की भी हो सकती है. UAPA कानून के प्रावधानों का दायरा बड़ा है. इसका इस्तेमाल आतंकियों और अपराधियों के अलावा एक्टिविस्ट्स और आंदोलनकारियों पर भी हो सकता है.
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अब तक कितनों पर हुई कार्रवाई
पिछले दिनों लोकसभा में दिए बयान में केंद्र सरकार ने बताया कि साल 2016 से 2020 के बीच कुल 24 हजार 134 लोगों को यूएपीए (UAPA) कानून के तहत गिरफ्तार किया गया और उनके खिलाफ सुनवाई हुई, लेकिन इनमें से केवल 212 लोग ही दोषी साबित हो सके. इस कानून के तहत इन चार सालों में 386 आरोपियों को देश की विभिन्न अदालतों ने रिहा कर दिया. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री ने बताया कि साल 2016-2022 के दौरान यूएपीए के तहत कुल 5 हजार 27 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से विचाराधीन लोगों की संख्या 24,134 थी. केंद्रीय मंत्री ने बताया कि इस कानून के तहत जिन लोगों के खिलाफ केस चलाया गया उनमें से 212 आरोपियों को दोषी ठहराया गया और 386 को रिहा कर दिया गया.
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