डीएनए हिंदी: जम्मू-कश्मीर के बारामूला में आज सुरक्षाबलों और आतंकवादियों के बीच एक एनकाउंटर हुआ. इस एनकाउंटर में सुरक्षाबलों ने एक आतंकवादी को ढेर कर दिया. इस एनकाउंटर में भारतीय सेना के तीन जवान जख्मी हुए हैं. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, जब सुरक्षाबलों ने बारामूला के वानीगाम बाला में आतंकवादियों को घेरा तो उनकी तरफ से फायरिंग की गई. आतंकियों द्वारा जो गोलियां भारतीय जवानों पर चलाई गईं वो कोई आम गोली नहीं बल्कि स्टील बुलेट (Steel Bullet) थीं. स्टील बुलेट आम बुलेट से थोड़ा अलग होती है. यह एक खास तरह की स्टील से बनाई जाती है, जिस वजह से यह बहुत घातक हो जाती है. स्टील बुलेट एक बुलेट प्रूफ जैकेट को भेद देती है.
हालांकि यह पहली बार हीं है कि कश्मीर में आतंकियों द्वारा स्टील बुलेट का इस्तेमाल किया गया हो. कश्मीर में आतंकियों ने सबसे पहले साल 2016 में पुलवामा में इस घातक बुलेट का इस्तेमाल किया. तब से लेकर आज तक कई मौकों पर आतंकियों के द्वारा कई बार इस बुलेट से हमारे जवानों को निशाना बनाने की कोशिश की गई है. दिसंबर 2017 और जून 2019 में भी आतंकियों ने सुरक्षाबलों पर हमला करने के लिए स्टील बुलेट का इस्तेमाल किया था. कई बार आतंकियों की गिरफ्तारी पर उनके पास से स्टील बुलेट्स भी बरामद की गई हैं.
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Why Steel Bullet is Dangerous?
एक सामान्य AK-47 राइफल या फिर किसी अन्य राइफल में इस्तेमाल की जाने वाली बुलेट में आगे का हिस्सा तांबे का बना होता है. यह आमतौर पर बुलेट प्रफू स्टील या कांच के कवच को पार नहीं कर पाता लेकिन स्टील बुलेट एक खास तौर पर तैयार की गई स्टील के जरिए बनाई जाती है. यह बुलेट छह से सात इंच मोटी स्टील की चादर या बुलेट प्रूफ जैकेट को भी आसानी से पार कर सकती है.
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आतंकियों को कौन देता है स्टील बुलेट?
यह पूरी दुनिया जानती है कि कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा पाकिस्तान द्वारा दिया जाता है. आतंकियों की ट्रेनिंग से लेकर हथियार तक पाकिस्तान की तरफ से ही भेजे जाते हैं. पिछले कुछ सालों में कश्मीर में आतंकियों द्वारा स्टील बुलेट का इस्तेमाल बढ़ा है. इसके पीछे भी पाकिस्तान का ही हाथ है. पहले पाकिस्तान को यह बुलेट्स चीन द्वारा दी जाती थीं लेकिन पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान यह बुलेट्स खुद ही बना रहा है. इसके लिए चीन द्वारा पाकिस्तान को टेक्नोलॉजी दी गई है.स्टील बुलेट्स स्विस आर्मी के कर्नल एडवर्ड रुबिन द्वारा साल 1982 में बनाई गई थी. इसका इस्तेमाल साल 1986 में फ्रांस में पहली बार किया किया गया था.
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भारत क्या कर रहा है?
स्टील बुलेट या इससे भी ज्यादा घातक हथियारों से अपने जवानों के बचाव के लिए भारतीय सेना लगातार नई तकनीक के इस्तेमाल की कोशिश कर रही है. हाल ही कश्मीर में आतंकियों द्वारा जिन गोलियों का इस्तेमाल किया गया है, वह भी बुलेटप्रूफ जैकेट आसानी से पार कर जाती हैं. ये गोलियां अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में छोड़ गई थी, जिनमें से कुछ पाकिस्तान के रास्ते कश्मीर पहुंची हैं. हालांकि भारतीय सेना स्टील बुलेट को रोकने वाली जैकेट्स की खरीद पहले करती रही है लेकिन अब इस नई मुश्किल से पार पाने के उपाय खोजे जा रहे हैं.
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