डीएनए हिंदी: पंजाब में अकाल तख्त एक बार फिर से चर्चा में है. राज्य की राजनीति, धर्म और सामाजिक तंत्र में अच्छा-खासा दखल रखने वाले अकाल तख्त को सिखों की सबसे मजबूत और ताकतवर संस्था माना जाता है. अमृतपाल सिंह के फरार होने के बाद से पंजाब में सैकड़ों लोगों को या तो हिरासत में लिया गया है या गिरफ्तार किया गया है. इसी को लेकर सोमवार को अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरपीत सिंह ने पंजाब की भगवंत मान सरकार को 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया कि पकड़े गए युवाओं को जल्द से जल्द रिहा किया जाए.
अकाल तख्त की ताकत और अहमियत को देखते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि उन्होंने पुलिस महानिदेशक से उन लोगों को रिहा करने के लिए कहा है जिन्हें एहतियातन हिरासत में लिया गया था और उनकी किसी भी राष्ट्र विरोधी गतिविधि में संलिप्तता नहीं पाई गई. इससे पहले, सिखों की सर्वोच्च पीठ अकाल तख्त के जत्थेदार ने सिख संगठनों, बुद्धिजीवियों, सिख वकीलों, पत्रकारों, धार्मिक और सामाजिक नेताओं की बैठक बुलाई थी, जिसमें 18 मार्च को अमृतपाल के नेतृत्व वाले संगठन 'वारिस पंजाब दे' से जुड़े लोगों के खिलाफ कार्रवाई के बाद पंजाब के मौजूदा हालात पर चर्चा की गई.
क्या है अकाल तख्त?
सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद साहब ने श्री अकाल तख्त की स्थापना साल 1609 में की थी. इसी तरह सिध धर्म में कुल पांच तख्त हैं. श्री अकाल साहिब तख्त, श्री दममदा साहिब, श्री केशवगढ़ साहिब, श्री हुजूर साहिब और श्री पटना साहिब. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी SGPC के 160 सदस्य और एग्जीक्यूटिव कमेटी के 15 सदस्य मिलकर अकाल तख्त के जत्थेदार को चुनते हैं. किसी भी समय पर अकाल तख्त के जत्थेदार का ओहदा सबसे बड़ा होता है. सिख धर्म में अकाल तख्त के फैसले को न मानने वाले का बहिष्कार कर दिया जाता है.
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सिख धर्म के लोगों की सर्वोच्च पीठ होने के नाते राजनीतिक या धार्मिक मामलों में भी इसकी ताकत सबसे ज्यादा होती है. किसी भी हाल में कोई सरकार भी अकाल तख्त का खुला विरोध करने की हिम्मत नहीं कर पाती है. पूर्व में अकाल तख्त ने महाराजा रणजीत सिंह, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और गृहमंत्री रहे बूटा सिंह जैसी शख्सियतों को भी सजा सुनाई और इन्हें वह सजा स्वीकार करनी पड़ी.
बूटा सिंह से साफ करवाए जूते, रणजीत सिंह को पड़े कोड़े
अकाल तख्त की ताकत यह है कि महाराजा रणजीत सिंह को 100 कोड़ों की सजा सुनाई गई थी. यह सजा मुस्लिम लड़की से प्यार करने पर सुनाई गई थी. अकाल तख्त के आदेश पर पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को भी हाजिर होने का आदेश दे दिया गया था. दरअसल, 1984 के सिख दंगों के समय बूटा सिंह राजीव गांधी सरकार में केंद्रीय गृहमंत्री थे. ज्ञानी जैल सिंह उस समय देश के राष्ट्रपति थे.
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उन्होंने संदेश भिजवाया कि भारत के राष्ट्रपति के तौर पर वह अकाल तख्त में पेश नहीं हो सकते. उन्होंने अपना प्रतिनिधि मंडल भेजा. उनके प्रतिनिधि मंडल के जवाब से संतुष्ट होकर अकाल तख्त ने ज्ञानी जैल सिंह को माफ कर दिया. राष्ट्रपति पद से हटने के बाद वह अकाल तख्त गए और माफी मांगी. बूटा सिंह को 1994 में अकाल तख्त ने सजा सुनाई. सजा के मुताबिक, उन्हें पांचों तख्तों में जाकर एक-एक हफ्ते के लिए बर्तन साफ करने, झाड़ू लगाने और जूते साफ करने का काम दिया गया. इतना ही नहीं, इस दौरान उनके गले में माफीनामे की तख्ती भी लटकाई गई.
अकाल तख्त के मौजूदा जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह हैं. वह बताते हैं कि अकाल तख्त की कोई कानूनी मान्यता नहीं है लेकिन इसकी धार्मिक मान्यता सर्वोच्च है. सिख समुदाय में कोई भी अकाल तख्त के फैसले के खिलाफ नहीं जा सकता. जो खिलाफत करता है उसे सिख समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है. कोई भी सिख ऐसे शख्स से संबंध नहीं रखता है.
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अकाल तख्त क्या है जिसने गृहमंत्री से साफ करवाए थे जूते? अब पंजाब सरकार को दिया अल्टीमेटम